November 27, 2023

बढ़ती महिला हिंसा के खिलाफ जंतर-मंतर पर आक्रोश प्रदर्शन

समाज में बढ़ती महिला हिंसा और उसके प्रति शासकों की उदासीनता के खिलाफ आम मजदूर मेहनतकश महिलाओं को आवाज को बुलंद करने की अपनी मुहिम में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र ने देश की राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर 26 नवंबर को एक आक्रोश प्रदर्शन किया जिसमे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश हरियाणा था दिल्ली से सैकड़ों महिलाओं तथा विभिन्न जन संगठनों ने भागीदारी की। 
कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की महासचिव रजनी जोशी और कार्यकारिणी सदस्य ऋचा ने किया।
जंतर-मंतर पर आयोजित सभा में शुरुआती वक्तव्य रखते हुए संगठन की उपाध्यक्ष ने कहा कि 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। हमारे देश की सरकार ने भी महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया है। लेकिन महिला हिंसा खत्म होने के बजाय बढ़ती जा रही है। ओपचारिक तौर पर घोषणा करने मात्र से महिला हिंसा को खत्म नहीं किया जा सकता है। इसको सीधे तौर पर देखा जा सकता है कि देश में हर साल महिला हिंसा के आंकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। बुजुर्ग महिलाओं से लेकर छोटी बच्चियों तक के लिए भारतीय समाज असुरक्षित बनता जा रहा है। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, छेड़छाड़ आदि तरीकों से महिलाएं निरंतर हिंसा की मार सह रही हैं।*बढ़ती महिला हिंसा के खिलाफ जंतर-मंतर पर आक्रोश प्रदर्शन*
महिला हिंसा की घटनाएं न केवल सार्वजनिक स्थलों पर हो रही है बल्कि घरों की चारदीवारी में, कार्यस्थलों पर, जातीय दंगों के दौरान और यहां तक की खुद राज्य सत्ता द्वारा भी महिलाओं के साथ हिंसा, यौन हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रही है।
सभा में वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि बी एच यू जैसे कॉलेज परिसर में आई आई टी की छात्रा के साथ छेड़ छाड़ व सामूहिक बलात्कार जैसी जघन्य घटना को अंजाम दिया गया। हाल ही मे हुए मणिपुर दंगों में दो कुकी जाति की महिलाओं को नग्न कर सड़क पर दौड़ाया गया। गुजरात दंगों के दौरान बिल्किस बानो के साथ जैसी तमाम घटनाएं घटी जिनमें मुस्लिम समुदाय के घरों में घुस कर मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया उन महिलाओं की आंखो के सामने ही उनके छोटे छोटे बच्चों को पत्थर पर पटक पटक कर मार दिया गया। बिल्किस बानो ने काफी संघर्ष किया तब जाकर उसके 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा मिली थी लेकिन 15 अगस्त 2022 में उन 11 अपराधियों को भाजपा सरकार ने रिहा कर दिया। इससे यह साबित होता है कि भाजपा सरकार महिलाओं के साथ अपराध करने वालो को बचाने का काम कर रही है।
सभा में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा सरकार अपने फासीवादी ऐजडे के तहत आम मेहनतकश जनता के जनवादी अधिकारों को सीमित करती जा रही है। उसी में वह महिलाओं के जनवादी अधिकारों को भी खत्म कर 150 साल पुरानी स्थिति में पहुंचा देना चाहते है। भाजपा सरकार एक तरफ तो महिला सशक्तिकरण की बड़ी बड़ी बाते करती है लेकिन वहीं दूसरी तरफ महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले बृजभूषण शरण को सजा देने के बजाय उसको बचाने का काम कर रही है। इसी जंतर मंतर पर देश दुनिया में नाम कमाने वाली महिला पहलवानों पर लाठी चार्ज करने, उनके धरने को खत्म करने का काम किया। जब देश का नाम ऊंचा करने वाली महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है तो सोच सकते हैं कि आम मजदूर महिला को इस शासन में कैसे न्याय मिल पायेगा? 
महिलाओं को आगे बढ़ाने के, उनको आत्म निर्भर बनाने की बड़ी बड़ी बाते करती है लेकिन स्कीम वर्कर (भोजनमाता, आंगनबाड़ी, आशा वर्कर आदि) को न्यूनतम मानदेय देकर उनका आर्थिक शोषण के साथ-साथ मानसिक उत्पीड़न भी किया जा रहा है।
सभा के अंतिम वक्ता के तौर पर प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की अध्यक्ष बिन्दु गुप्ता ने कहा कि महिला हिंसा को खत्म करने के लिए उसके कारणो को खत्म करने की जरूरत है। यानी घरेलू दासता, पुरानी सामंती मूल्य मान्यताओं की दासता और उजरती दासता से जब तक महिलाओं को मुक्त नही किया जाएगा तब तक महिला हिंसा को भी खत्म नहीं किया जा सकता है। 
साथी ने आहवान करते हुए कहा कि समाज के मजदूर मेहनतकशों को एकजुट होकर इस पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा कर एक नए समाज समाजवाद के लिए संघर्ष को तेज करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र, बेलसोनिका मजदूर यूनियन (गुड़गांव), क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, सीमेंस वर्कर्स यूनियन, एवरेडी मजदूर यूनियन (हरिद्वार), इंटरार्क मजदूर संगठन (रुद्रपुर पुर), इफ्टू (सर्वहारा), जन संघर्ष मंच (हरियाणा), गार्गी महिला टीम, मजदूर सहयोग केंद्र विमुक्तता स्त्री मुक्ति संगठन, एसोसीएशन फौर डैमोक्रेटिक राइट्स, मजदूर सहयोग केंद्र, संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन आदि संगठनों के साथियों ने अपने वक्तव्य रखे और कार्यक्रम का समर्थन किया।

November 6, 2023

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस में छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों, आवाज उठायें!

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस में IIT BHU में सेकेंड ईयर की एक छात्रा के यौन उत्पीड़न के विरोध में बी0एच0यू0 के हजारों छात्र-छात्राएं कक्षाएं छोड़कर धरने पर बैठे हैं। 1 नवंबर 2023 को देर रात  प्रॉक्टोरियल बोर्ड के बूथ से कुछ ही दूरी पर जहां बी.एच.यू. के सुरक्षाकर्मी कैम्पस व छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के लिये तैनात रहते हैं, वहां पर चार शोहदों ने IIT BHU में सेकेंड ईयर की एक छात्रा के साथ दुव्यवहार किया। मीडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुछ युवकों ने छात्रा के साथ मारपीट की, जबरन उसके कपड़े उतरवाए और तस्वीरें खींचीं। इस मामले में IPC की धारा 354, 506 की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। आई.आई.टी. डायरेक्टर द्वारा छात्रों से बात नहीं किया जाने के कारण प्रदर्शनकारी छात्र-छात्रायें दिन भर प्रदर्शन करते रहे। जिसके बाद बी.एच.यू. कैम्पस में बी.एच.यू. डायरेक्टर के आफिस में डायरेक्टर, पुलिस अधिकारी व अन्य अधिकारियों व जिम्मेदार लोगों के बीच बैठक हुई और इस दौरान भी छात्र अपनी मांगों को मनवाने के लिये बी.एच.यू. डायरेक्टर के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन कर डटे रहे। बैठक के बाद प्रदर्शनकारी छात्रों को उनकी सभी मांगों को माने जाने का आश्वासन दिये जाने के बाद प्रदर्शनकारी छात्रों ने बृहस्पतिवार की रात 11 बजे धरना खत्म कर दिया।  

बी.एच.यू. में ही पिछले महीने बीएचयू स्थित आईआईटी की दो शोध छात्राओं के साथ उनके हॉस्टल के पास ही चार युवकों ने छेड़खानी और बदसलूकी की थी। आईआईटी की एक शोध छात्रा देर रात अपनी एक सहपाठी के साथ हॉस्टल के समीप मौजूद थी। इसी दौरान चारपहिया वाहन सवार चार मनचले दुव्र्यवहार करने लगे। सभी शराब के नशे में धुत थे। लेकिन अपराधियों को पकड़ने, गिरफ्तार करने के स्थान पर हर बार छात्राओं पर और ज्यादा बंदिशें लगा दी जाती हैं।

आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं का कहना है कि बीएचयू में साल 2017 में हुई छेड़खानी के बाद अबकी बार हुई वारदात बेहद वीभत्स है। बी.एच.यू. कैंपस में आए दिन घटनाएं होती रहती हैं, छात्र धरना प्रदर्शन करते हैं प्रशासन आश्वासन देता है और धरना-प्रदर्शन खत्म हो जाते हैं। लेकिन शर्मनाक बात यह है कि इतना सब होने के बाद भी अभी तक यहां छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं किये गये हैं। 

यह वही उत्तर प्रदेश है जहां 2022 में यू0पी0 विधान सभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह कह रहे थे कि उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए इतना सुरक्षित हो गया है कि वह रात में 12 बजे भी गहने पहन कर अकेले बाहर जा सकती हैं। जबकि हकीकत हम देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के धार्मिक नगरी में स्थित छात्राओं को आये दिन छेड़छाड़ व हिंसा का शिकार होना पड़ता है।

पतित पूंजीवादी-साम्राज्यवादी उपभोक्तावादी नीति के प्रभाव में अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिये रात-दिन महिलाओं के सम्मान को गिराने वाली, महिलाओं का अश्लील चित्रण कर उनको उपभोग की वस्तु के तौर पर प्रदर्शित करने वाली सोच को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों व अश्लील फिल्मों को रोके बिना इन अपराधों में जरा भी कमी नहीं लायी जा सकती। 

इन घटनाओं के कारण ही बहुत से परिवार अपनी बहनों-बेटियों को उच्च शिक्षा के लिये घरों से दूर उच्च शिक्षा के लिये भेजने से कतराते हैं। लड़कियां इस तरह घटनाओं को घरों में नहीं बतातीं। इस डर से कि यदि वे अपने साथ घटी इन घटनाओं को घर में बतायेंगी तो उनकी पढ़ाई बीच में छुड़ाई जा सकती है। ऐसे में ये घटनायें छात्रों की आधी आबादी लड़कियों को उच्च शिक्षा के अधिकार से वंचित रखने में मदद करती हैं।

 लेकिन उन लोगों से छात्राओं की सुरक्षा के इंतजाम करने की उम्मीद करना बेमानी है, जिसके दर्जनों सांसद-विधायक महिलाओं से छेड़छाड़-बलात्कार के आरोपी हैं। कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानन्द, बृज भूषण शरण सिंह तो इसके मात्र प्रतिनिधिक उदाहरण मात्र हैं।  

 प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, BHU में छात्रा के साथ हुई यौन हिंसा का पुरजोर विरोध करता है। और मांग करता है कि परिसरों में छात्राओं के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित किया जाये। साथ ही देशभर के छात्र-छात्राओं व न्यायप्रिय लोगों से छात्राओं-महिलाओं के साथ हो रही हिंसा, यौन उत्पीड़न के विरोध में एकजुट होकर आवाज उठाने का आह्वान करता है।

 हम मांग करते हैंः- 

·         IIT BHU के निदेशक व लंका थाने के SHO इस्तीफा दो।

·         सभी संस्थानों में GSCASH की स्थापना करो।

·         छात्राओं-महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करो।

·         महिला विरोधी अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति पर रोक लगाओ।

 

 प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी

 

 

 

 

 

  

September 29, 2023

नारी शक्ति वंदन अधिनियमः खोदा पहाड़ निकली चुहिया

 


नई संसद के पहले दिन 19 सितम्बर को मोदी सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक बिल नारी शक्ति वंदन बिल (संविधान में 128 वें संशोधन के द्वारा) पेश किया। यह बिल लोक सभा से पास होने के बाद राज्य सभा में भेजा गया और वहां पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अधिनियम में बदल जायेगा। इस अधिनियम के बाद लोक सभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू हो जायेगा। अभी लोकसभा के अंदर महिलाओं की उपस्थिति 15 प्रतिशत है।


हालाँकि लोक सभा में 2 सांसदों ने इसके विरोध में मतदान किया और इसके अलावा सभी ने इस बिल का समर्थन किया साथ ही इसमें ओ बी सी महिलाओं के आरक्षण की मांग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने आवाज़ उठायी। फिलहाल इसमें अभी एस सी और एस टी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

इस बिल की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं -

1. ‘नारी शक्ति वंदन बिल’ के तहत प्रावधान है कि महिला आरक्षण लागू होने के बाद अगले 15 साल तक लागू रहेगा, लेकिन इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन अभ्यास के बाद रोटेट किया जाएगा।

2. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और सीधे चुनाव से भरी जाएंगी। साथ ही, आरक्षण राज्यसभा या राज्य विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।

3. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की एक-तिहाई सीटें इन्हीं जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। महिलाओं के लिए आरक्षित कुल एक तिहाई सीटों में से एस सी-एस टी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर शेष सीटों पर किसी भी जाति की महिला चुनाव लड़ सकेगी। 

4. अधिनियम के प्रावधान ‘संविधान (128 वां संशोधन) अधिनियम 2023 के शुरू होने के बाद ली गई पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होने’ के बाद निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या पुनर्निर्धारण के बाद लागू होंगे।

5. लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 महिला लोकसभा सदस्यों से बढ़कर 181 हो जाएगी यानी कुल 543 लोकसभा सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। जिनमें 43 सीटें एस सी-एस टी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र शुरु होने तक इस बात पर रहस्य बनाये रखा कि संसद के विशेष सत्र में क्या होने वाला है और जब संसद में नारी शक्ति वंदन बिल पेश हुआ तो ऐसा लगा कि अब लोक सभा और विधान सभाओं में शीघ्र ही महिलाओं की मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ हो जाएगी और भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण होने के लिए बस इसी बिल की कमी थी। लेकिन धीरे धीरे परतें हटने लगीं और एक बार फिर मोदी सरकार के बारे में यह सच साबित हुआ कि वे जादूगर की तरह एक खेल दिखाते हैं और जब तक जनता को यह समझ में आता है कि वह ठगी गयी है तब तक वे अपना झोला उठाकर चलते बनते हैं एक और नया खेल दिखाने के लिए। 

दरअसल जिस बिल के जरिये वे महिलाओं को संसद और विधान सभा के अंदर 33 प्रतिशत आरक्षण की बात कर रहे थे वह कब तक लागू होगा इसके बारे में अभी कोई स्पष्ट रूप रेखा नहीं है। इस बिल को लागू होने के लिए पहले जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन। इसके बाद ही यह बिल लागू होगा। और जनगणना कब होगी, यह 2026 के बाद होगी। जनगणना की कोई निश्चित तिथि अभी घोषित नहीं है। कम से कम यह तो तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने वाला नहीं है। 

देश की आबादी में 50 प्रतिशत की आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर मोदी कह रहे हैं कि इस महान काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का मोदी का यह मर्ज़ पुराना है। हर काम की शुरुवात वे ऐसे करते हैं मानो इससे पहले किसी ने यह काम किया ही न हो। 

दरअसल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल 1996 में पहली बार पेश किया गया था। उसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में भी इसे पेश किया गया और अंतिम बार इसे 2010 में यू पी ए सरकार के समय राज्य सभा से पास कर लोक सभा में भेजा गया था। उसके बाद भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी। अगर मोदी चाहते तो उसी समय यह बिल लोक सभा से पास हो जाता लेकिन मोदी को अपने 10 साल शासन के अंतिम समय में इस बिल की याद आ रही है और अभी भी यह कब लागू होगा यह मालूम नहीं है।

इस बिल के द्वारा किन महिलाओं का सशक्तिकरण होगा यह साफ है। यह दरअसल शासक वर्ग की महिलाओं का ही सशक्तीकरण होगा। महिला आरक्षण बिल पर ज्यादातर राजनैतिक दलों की औपचारिक सहमति के बावजूद इसका लगभग 3 दशक तक लटकना दिखाता है कि शासक वर्ग अपने वर्ग की महिलाओं को भी लोक सभा और विधान सभाओं में आने देना नहीं चाहता रहा है (राज्य सभा और विधान परिषद में यह आरक्षण लागू नहीं होगा)। और 1996 से इस बिल को लटकाये हुए है। यह दरअसल भारतीय समाज के पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान होने को ही दिखाता है। पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत जिला प्रमुख, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान के रूप में जो महिलाएं चुनी जाती हैं उनकी जगह पर उनके पति ही काम संभालते दिखाई देते हैं। कुछ जगह पर ही महिलाएं वास्तव में अपनी स्वतंत्र पहलकदमी लेती दिखाई पड़ती हैं।

अगर भारतीय समाज में महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो सबसे पहले पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान समाज को बदलने की जरूरत है। क्या मोदी सरकार ऐसा करेगी।

नहीं! मोदी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। इसकी एक वजह खुद इसका आर एस एस जैसे संगठन से नाभिनालबद्ध होना है। आर एस एस अपनी मूल विचारधारा में महिला विरोधी संगठन है। यह संगठन हिटलर की तरह महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है और महिलाओं को केवल रसोई में झोंक देना चाहता है। खुद आर एस एस में कोई महिला पदाधिकारी केंद्रीय स्तर पर नहीं है। संघ प्रमुख पुरुष ही होता है। यह मनुस्मृति पर आधारित समाज बनाना चाहता है जिसमें महिलाओं का स्थान पशुओं के साथ रखा गया है। अगर आज संघ या भाजपा महिलाओं के सशक्तीकरण की बात करती हैं तो इसकी वजह उनकी इस मूल विचारधारा में परिवर्तन होना नहीं है वरन महिलाओं की समाज में उत्पादन या अन्य क्षेत्रों में बढ़ती भागीदारी है। वरना तो संघ और भाजपा नेता कभी महिलाओं से दस-दस बच्चे पैदा करने की बात करते हैं और उनके साथ होने वाली यौन हिंसा के लिए उनके चाल चलन को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले में अगर भाजपा के लोग लिप्त पाए जा रहे हैं यह दरअसल उनके महिला विरोधी रुख की वजह से भी है।

मोदी ने नई संसद में पहले दिन ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बिल पेश तो किया पर उन्हें संसद भवन के उद्घाटन के समय महिला पहलवानों के साथ उनकी सरकार का व्यवहार याद नहीं आया। ये महिला पहलवान कई महीनों से इस बात के लिए प्रदर्शन कर रही थीं कि उनके साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाले भाजपा सांसद ब्रज भूषण के खिलाफ कार्यवाही की जाये लेकिन मोदी सरकार ने ब्रजभूषण पर कोई कार्यवाही नहीं की उलटे उन महिला पहलवानों का प्रदर्शन भी जोर जबरदस्ती से ख़त्म करवा दिया।

इसी तरह जब वे महिला सशक्तीकरण की अच्छी-अच्छी बातें कर रहे थे तो मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की घटना याद आ गयी। बिल्कीस बानो की भी याद आयी और हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार दलित युवती के शव को किस तरह रात में जबरदस्ती जला दिया गया था यह घटना भी कोई नहीं भूल सकता। कठुआ की वह 8 साल की बच्ची आसिफा की भी याद आयी जिसके बलात्कारियों को बचाने के लिए भाजपा के मंत्री तिरंगा लेकर सड़क पर उतर पड़े थे। 

इसके अलावा मोदी सरकार ने महिला सशक्तीकरण के नाम पर 4 श्रम संहिताओं में महिलाओं को रात की पाली में काम करने की छूट देने का प्रावधान पहले ही कर चुकी है। इस प्रावधान के द्वारा मोदी ने महिलाओं के सस्ते श्रम को पूंजीपतियों को रात में भी लूटने का अधिकार दे दिया है। 

क्या मोदी का नारी शक्ति वंदन अधिनियम महिलाओं का सशक्तीकरण करेगा? इसे हम अभी की महिला सांसदों या विधायकों के व्यवहार से समझ सकते हैं। अभी संसद में जो महिला सांसद मौजूद हैं वे किसी भी पार्टी से हों लेकिन वे कभी महिलाओं के साथ हो रही घरेलू या यौन हिंसा के मामलों को लेकर सड़क पर नहीं उतरतीं। वे मज़दूर महिलाओं के लिए रात की पाली में काम करवाने वाले कानून के खिलाफ नहीं बोलतीं। वे कोरोना काल में हज़ारों किलोमीटर पैदल चलती और सड़कों पर बच्चे पैदा करती मेहनतकश महिलाओं के लिए आवाज़ नहीं उठातीं। वे लगातार देश के अंदर बढ़ती महंगाई से परेशान महिलाओं के लिए कोई राहत भरे कदम नहीं उठातीं। 

कुल मिलाकर नारी शक्ति वंदन अधिनियम अगर लागू भी हो जाता है तो इससे केवल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या ही बढ़ेगी और वो भी शासक वर्ग की, इससे आम महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं होने वाला। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए तो मेहनतकश महिलाओं को इस पितृसत्तात्मक और पूंजीवादी समाज के खिलाफ संघर्ष छेड़ना होगा। 

फिलहाल आनन-फानन में महिला आरक्षण बिल संसद से पास करना 2024 के चुनाव के लिए मोदी सरकार की बैचेनी का परिणाम है। आगामी चुनाव में मोदी खुद को महिलाओं के सबसे बड़े हितेषी के रूप में पेश करेंगे। यह इसके बावजूद कि 2024 के चुनाव में इस बिल के प्रावधानों की वजह से महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। संसद-विधान सभाओं में महिला आरक्षण लम्बे वक्त से महिला आंदोलन की मांग रही है। अब महिला वोटरों को लुभाने की खातिर ही सही महिला विरोधी संघ-भाजपा इस बिल को पारित करने को मजबूर हुई है। इस तरह एक मायने में यह महिला आंदोलन की जीत है। अब महिला आंदोलन को इस बिल को जल्द से जल्द व्यवहार में उतारने का संघर्ष करना होगा। 

यह संघर्ष इसलिए भी जरूरी है कि एक बार व्यवहार में लागू होने के बाद ही व्यापक महिलाओं को यह समझाना आसान होगा कि उनकी दुर्दशा की वजह किसी आरक्षण या अन्य क़ानूनी प्रावधानों की नामौजूदगी नहीं बल्कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था है। तभी मेहनतकश महिलाओं के सामने यह स्पष्ट होगा कि सांसद-मंत्री किसी महिला के बन जाने से उनके बदहाल जीवन में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है। बुनियादी बदलाव के लिए इंक़लाब जरूरी है।

#नारी_शक्ति_वंदन_अधिनियम

साभारः 


नागरिक

बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण पर हुए हमले का विरोध करो

23 सितंबर 2023 को हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार चंडीगढ, हरियाणा सरकार ने ठेका मजदूर को सदस्यता देने के मामले को लेकर   शनिवार, को छुट्टी के दिन अपना कार्यालय खोल कर बेलसोनिका इम्पलाइज यूनियन के पंजीकरण को रद्द कर दिया है। जबकि इस मामले को लेकर यूनियन की सदस्यता से सस्पेंड ठेका वर्कर तथा यूनियन दोनों के अलग अलग केस में माननीय उच्च न्यायालय चंडीगढ से प्रबंधन व श्रम विभाग को नोटिस हो चुके हैं। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार ने प्रबंधन के पत्र के बाद ही यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की थी और उच्च न्यायालय के नोटिस का जवाब देने की जगह पर यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया गया।

बेलसोनिका कंपनी में प्रबंधन व यूनियन के बीच पिछले ढाई साल से संघर्ष चला हुआ है। प्रबंधन बड़ी संख्या में स्थाई व पुराने ठेका श्रमिकों की छंटनी करना चाह रहा है जिस काम में यूनियन द्वारा चलाया जा रहा संघर्ष निरंतर आड़े आ रहा है। 

हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा उठाया गया यह कदम आज इस व्यवस्था की हकीकत बयां करती है जहां अब पूंजीपति वर्ग जनतंत्र के आवरण को हटाकर खुलकर मजदूर वर्ग के शोषण उत्पीड़न के लिए सामने आ चुका है और इसमें उसकी मदद कर रही है पूरी प्रशासन व्यवस्था। श्रम कानूनों में बदलाव कर लेबर कोड्स लाने से लेकर तमाम फैक्ट्री संस्थानों में छंटनी, तालाबंदी, इत्यादि मजदूर कार्रवाईयों में भारत के पूंजीपति वर्ग को राज्य द्वारा पूर्ण संरक्षण प्राप्त हो रहा है।

ऐसी मजदूर विरोधी हालातों में बेलसोनिका यूनियन अपने मजदूर साथियों के साथ लगातार प्रबंधन तथा श्रम विभाग की मनमानियों का जवाब दे रही है। बेलसोनिका यूनियन द्वारा लगातार चलाए जा रहे इस संघर्ष पर मारूती प्रबंधन के इशारे पर प्रशासन द्वारा यूनियन पंजीकरण को रद्द कर तीखा प्रहार किया गया है लेकिन यूनियन अभी भी मजदूरों के हितों के लिए चल रहे अपने संघर्ष को लगातार आगे बढ़ा रही है। 

बेलोसनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने के माध्यम से किया गया यह हमला सिर्फ बेलसोनिका यूनियन पर नहीं बल्कि मजदूर वर्ग पर हमला है । यह आने वाले उस खतरे की घंटी है जिसमें यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में मजदूर वर्ग द्वारा अपने शोषण-उत्पीड़न के लिए उठाई गई हर आवाज को यूं ही कुचला जाएगा। ऐसे में अब यह मजदूर आंदोलन का कार्यभार बनता है कि वह एकजुट हो एक दूसरे के संघर्षों में भागीदारी कर अपनी लडाई को मजबूत करें। 


प्रगतिशील महिला एकता केंद्र हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने की इस मजदूर विरोधी कृत्य की तीखी निंदा करता है तथा बेलसोनिका यूनियन के इस संघर्ष में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इंकलाब जिंदाबाद
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी

July 24, 2023

इंकलाबी मजदूर केंद्र तथा परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथियों पर हमला करने वालो को सजा दो


 दिनांक 23 जुलाई को इंकलाबी मजदूर केन्द्र और परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा मणिपुर की घटना के विरोध में गोछी (फरीदाबाद) में रैली का आयोजन किया गया था। रैली जब विभिन्न इलाकों से गुजरते हुए आगे बढ़ी तो सहदेव नाम के एक गुंडे के नेतृत्व में कुछ लड़कों ने रैली को रोकने की कोशिश की। उनकी ना सुनकर रैली जब आगे बढ़ने लगी तो उनमें से एक गुंडे ने पीछे से लोहे के डंडे से हमारे एक साथी पर हमला किया और भाग गया। उसका पीछा कर रहे 2 साथियों पर भी गली में छिपे आर एस एस - भाजपा के गुंडों द्वारा जानलेवा हमला किया गया। जिनके सिरों में चोटें आई हैं।
इस हमले में इंकलाबी मजदूर केंद्र के तीन साथी संतोष, दीपक और नितेश को गंभीर चोटें आई हैं। तीनों साथियों के सिर पर हमला किया गया है। 

घटना के बाद गोछी थाने ने भी अपराधियों को बचाने की ही कोशिश की। शुरूवात में गोछी पुलिस चौकी में पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करते रहे। लेकिन जनदबाव बढ़ने के बाद पुलिस को इन फासीवादी गुंडों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी।

ये घटना दिखाती है कि बीजेपी और आरएसएस किस तरह का भारत बनाना चाहते हैं। पहले बीजेपी द्वारा महज सत्ता के लिए मणिपुर में मैतई और कुकी के बीच में दंगे करवाए गए। तीन महीनों से जारी इन राज्य प्रायोजित हिंसा में अब तक 160 लोग मारे जा चुके हैं। 50 हजार लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं। अनेकों महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घृणित घटनाएं घटी हैं। दो महिलाओं के साथ हुए वीभत्स कांड को तो पूरा देश देख ही चुका है। इन घटनाओं का देश और दुनिया में हर जगह विरोध हो रहा है। हर जगह मोदी सरकार की थू-थू हो रही है। ऐसे में देश के भीतर अपने विरोध से बौखलाई बीजेपी और पूरी संघ मंडली अपने खिलाफ उठ रही हर आवाज को दबाने पर आमादा हैं। गोछी में इमके व पछास के साथियों पर हुआ हमला इसी की तसदीक करता है।

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र इंकलाबी मजदूर केंद्र तथा परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथियों पर हुई इस हमले तथा पुलिस प्रशासन की लापरवाही की कठोर निंदा करता है तथा इमके और पछास के साथियों के साथ उनके संघर्ष में खड़ा है ।

*क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र

July 21, 2023

मणिपुर की महिलाओं के साथ हुई हिंसा के खिलाफ एकजुट हो!

मणिपुर मई माह की शुरुआत से ही जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। जब से मणिपुर में हिंसा की घटनाऐ होनी शुरु हुई तब से ही वहां इंटरनेट बंद कर रखा था। आज लगभग ढाई महीने बाद मणिपुर में जब इंटरनेट खोला गया है तब दिल को दहला देने वाला खौफनाक वीडियो सामने आया है। 19 जुलाई को सोशल मीडिया पर जारी इस वीडियो में दंगाई पुरुषों का एक समूह दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाते हुए और उनका यौन उत्पीड़न करते हुए नजर आ रहा है। इनमे से एक महिला जो 19 वर्षीय लड़की है को खेत में ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। यह घटना 3 या 4 मई की बतायी जा रही है। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद मणिपुर में तनाव और अधिक फैल गया है। 
           बताया जा रहा है कि यह घटना राजधानी इंफाल से 35 किमी. दूर कांगपोकपी जिले में बी फेनोम गांव की है। ये महिलायें कुकी समुदाय की हैं और दोषी मैतेई समुदाय से हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि मणिपुर में पिछले ढाई महीने से जारी हिंसा में महिलाओं के साथ किस तरह की यौन बर्बरता की गयी होगी। ज्ञात हो कि अब तक मणिपुर में हुई हिंसा में 160 लोग मारे जा चुके हैं और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। घटना के वीडियो के सामने आने के बाद मोदी सरकार की चारों तरफ थू थू हो रही है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली भाजपा सरकार के राज में महिलाओं के साथ इतनी बर्बरता की जा रही है जो कि शर्मनाक है।

            मणिपुर हिंसा पर लगातार विपक्ष और सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी से प्रश्न होते रहे हैं। लेकिन मोदी हैं कि बिलकुल चुप लगाकर बैठे हुए हैं। न केवल वे चुप लगाये हैं बल्कि वे इस बीच लगातार विदेशों के दौरे करते रहे हैं लेकिन मणिपुर जाने का समय वे नहीं निकाल पाये। प्रधानमंत्री मोदी के इस व्यवहार से स्पष्ट होता जा रहा है कि वे तभी किसी राज्य में जाते हैं जब वहां चुनाव होते हैं। चुनाव में बड़े-बड़े वायदे और भाषणबाजी करके वे वहां से निकल आते हैं और फिर वहां क्या हो रहा है इससे उन्हें कोई खास मतलब नहीं होता है। हां, किसी भी मौके पर वे विपक्ष खासकर कांग्रेस को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निशाना बनाने से नहीं चूकते हैं। मणिपुर के वीडियो के वायरल होने पर अपना मुंह खोलते हुए उन्होंने इस घटना की निंदा की और दोषियों को सख्त सजा देने की बात की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ या मणिपुर कोई भी राज्य हो इस तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती। और साथ ही उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों को भी कहा कि वे अपने-अपने यहां कानून व्यवस्था को सख्त रखें। आखिर ज्ञान देने में मोदी जी कभी भी पीछे नहीं रहते।

          प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र का स्पष्ट मानना है कि न तो मणिपुर में यह एक मात्र घटना है और न समाज में। इस तरह की जातीय, नस्लीय, सांप्रदायिक हिंसा में ऐसी तमाम घटनाएं होती हैं। चाहे वह 1984 के दंगे हो या फिर 2002 के गुजरात के दंगे हो या दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हो इन दंगो और उसके बाद बिस्थापन का सबसे ज्यादा दंश महिलाओं और बच्चों को ही झेलना पड़ता है।

           मणिपुर में महिलाओं के साथ जो हुआ उसके पीछे की मूल वजह देखी जाये तो वही है जो सदियों से युद्ध के समय होती आ रही है। वह है एक समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार करके या अन्य कोई वीभत्स अपराध करके उस समुदाय को अपमानित महसूस कराया जा सके। लेकिन आज अगर मणिपुर में ऐसा हो रहा है तो उसके पीछे इस मानसिकता के साथ साथ कहीं न कहीं संघ-भाजपा का वो नजरिया है जो उसने महिलाओं के मामले में अपनाया हुआ है। कुछ घटनाओ से उनके इस नजरिये का पता चलता है।

       15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने महिलाओं के साथ हो रहे अपराधो पर घड़ियाली आंसू बहाए, महिलाओं का सम्मान करने को लेकर एक सुन्दर सा भाषण लाल किले से दिया था। लेकिन उसके बाद उसी दिन गुजरात में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 अपराधियों को छोड़ दिया गया। ये अपराधी कौन थे? इस बारे में सभी जानते हैं। इसी प्रकार कठुआ कांड में आसिफा प्रकरण के दौरान भी भाजपा से जुड़े लोगों ने अपराधियों को बचाने के लिए तिरंगा रैली निकाली थी। अभी हाल ही में महिला पहलवानों ने बृजभूषण शरण के ऊपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और पोस्को के तहत मुकदमा भी दर्ज हो गया लेकिन आज तक उसके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं हुई है आज भी वह भाजपा पार्टी और संसद में बैठा हुआ है। 

       प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र समाज में हो रही वीभत्स घटनाओ पर क्षोभ व्यक्त करता है। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र का स्पष्ट मानना है कि समाज में इन घटनाओ के बाद कुछ प्रतिक्रिया तो हुई लेकिन जैसी तीखी प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी वैसी नहीं हो पाई। क्योंकि संघ-भाजपा ने पिछले 9 सालों में समाज को हिन्दू-मुसलमान, जाति-धर्म में इतना बांट दिया है कि वे ऐसी घटनाओं को भी हिन्दू-मुसलमान, जाति-धर्म के नजरिये से देखते हैं। 

          संघ-भाजपा ने मणिपुर में भी वर्षों से मैतेई समुदाय का हिन्दूकरण किया है और कुकी सहित अन्य जनजातियां जो ईसाई धर्म को मानती हैं के खिलाफ नफरत का बीज बोया है जिसकी फसल वे मणिपुर विधानसभा चुनाव के दौरान काट चुके हैं। दरअसल जो भीड़ उन महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रही थी और बलात्कार कर रही थी वह पुरुष प्रधान मानसिकता से लैस तो थी ही लेकिन संघ-भाजपा ने जो उनका हिन्दूकरण कर साम्प्रदायिकता का बीज बोया है, उससे भी लैस थी। इसलिए मणिपुर में इतनी खौफनाक और वीभत्स घटना हुई है।

          यह मामला इतना बड़ा बन चुका है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को ढाई महीने बाद मजबूरी में इस घटना पर बोलना पड़ा और सभी मुख्यमंत्रियों से कानून व्यवस्था कड़ी करने की बात करनी पड़ी और हो सकता है कि इस दवाब में कुछ अपराधियों को सजा हो भी जाये। 

          लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान होगा? जाहिर सी बात है कि जब तक पुरुष प्रधान मानसिकता और उस मानसिकता को जिसे संघ-भाजपा ने वर्षों से समाज में बोयी है को खत्म नहीं किया जायेगा तब तक इस तरह की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है।

          इसके लिए आम मेहनतकश मजदूरों, महिलाओं को एकजूट होकर संघ-भाजपा जैसी घोर जनविरोधी, महिला विरोधी फासीवादी सरकार के खिलाफ संघर्ष करने की जरुरत है और ऐसे समाज को बनाने की जरुरत है जिसमें महिलाओं को बराबरी व सम्मान मिले।

May 28, 2023

संघर्ष करती महिला पहलवानों पर हमला करवाने वाली भाजपा सरकार मुर्दाबाद!!!

भारतीय कुश्ती की महिला पहलवान लंबे समय से दिल्ली के जंतर मंतर पर दिन-रात धरना प्रदर्शन कर रही हैं। वे यौन शोषण व पोक्सो एक्ट में लगे मुकदमे के तहत बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रही है। लेकिन अभी तक बृजभूषण शरण की गिरफ्तारी नहीं हुई है। जिसके विरोध में आज दिनांक 28 मई को महिला पहलवानों ने महिला सम्मान महापंचायत रखी थी जोकि नये भारतीय कुश्ती की महिला पहलवान लंबे समय से दिल्ली के जंतर मंतर पर दिन-रात धरना प्रदर्शन कर रही हैं। वे यौन शोषण व पोक्सो एक्ट में लगे मुकदमे के तहत बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रही है। लेकिन अभी तक बृजभूषण शरण की गिरफ्तारी नहीं हुई है। जिसके विरोध में आज दिनांक 28 मई को महिला पहलवानों ने महिला सम्मान महापंचायत रखी थी जोकि नये संसद भवन के नजदीक है। आज इस नए संसद भवन का उदघाटन भी होना था।
             इस महापंचायत में महिला पहलवानों का समर्थन करने के लिए जगह जगह से न्याय प्रिय लोग शामिल होने आने थे। 
महापंचायत का कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही महिला पहलवानों के ऊपर बर्बर लाठी चार्ज किया गया और महिला पहलवानों व उनके समर्थन में आए लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। अंतराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ियों को जंतर मंतर से घसीटते हुए ले गए। उनके धरने को उजाड़ दिया गया।
         इसके अलावा इस महापंचायत में शामिल होने जा रही महिलाओं, छात्रों व आंदोलनकारियों को पुलिस ने जगह-जगह रोककर उन पर अत्याचार किये। उनके साथ ऐसे व्यवहार किया गया जैसे कि वे अपराधी हों।  
         सरकार की इस दमनकारी व  तानाशाही पूर्ण कार्यवाही की प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र कड़े शब्दो मे निंदा करता है। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र का कहना है कि एक तरफ  देश के प्रधानमंत्री मोदी पैसे वालों के लोकतंत्र को लागू कराने वाले संसद भवन का उद्घाटन कर एक बड़ा जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ तानाशाही पूर्ण तरीके से न्याय मांगने वालों का निमर्म दमन कर रही है। एक तरफ यौन अपराधी भाजपा सांसद बृजभूषण को गिरफ्तार करने के बजाय उसको संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बृजभूषण शरण पर आरोप लगाने वाली, न्याय की लड़ाई लड़ रही महिला पहलवानों व उनके समर्थकों पर निर्मम लाठी चार्ज कर गिरफ्तार कर रहे है। इस तरह की कार्यवाही कर देश में लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं। अपराध करने वाले संसद भवन में सांसद बने बैठे हैं और जिनके ऊपर अपराध हुआ है जब वह न्याय की मांग कर रहे तो उनको जेलों में डाला जा रहा है। यह कैसा लोकतंत्र है? किसके लिए संसद बनाई जा रही है जनता के लिए या फिर अपराधियों को संरक्षण देने के लिए? 
आज देश की राजधानी दिल्ली मे जहाँ एकतरफ जहाँ नई संसद का उद्घाटन हो रहा था वहीं दूसरी तरफ ठीक शहर के मध्य मे महिला पहलवानों पर निर्मम कर इस बात को स्पष्ट किया जा रहा था कि ये जनतंत्र किसका और किसके लिए है
        प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र सरकार और पुलिस प्रशासन के इस तानाशाही पूर्ण दमनकारी रवैये की घोर निन्दा करता है और पोक्सो एक्ट व यौन  उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को अभी तक गिरफ्तार न करने की घोर भर्त्सना करता है। संगठन सरकार से मांग करता है कि यौन अपराधी भाजपा सांसद बृजभूषण को तुरंत गिरफ्तार करके कठोर से कठोर दंड दिया जाए। गिरफ्तार किए गए महिला पहलवानों समेत सभी नेताओं, महिलाओं, किसानों को तुरंत रिहा किया जाए। भवन के नजदीक है। आज इस नए संसद भवन का उदघाटन भी होना था।
             इस महापंचायत में महिला पहलवानों का समर्थन करने के लिए जगह जगह से न्याय प्रिय लोग शामिल होने आने थे। 
महापंचायत का कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही महिला पहलवानों के ऊपर बर्बर लाठी चार्ज किया गया और महिला पहलवानों व उनके समर्थन में आए लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। अंतराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ियों को जंतर मंतर से घसीटते हुए ले गए। उनके धरने को उजाड़ दिया गया।
         इसके अलावा इस महापंचायत में शामिल होने जा रही महिलाओं, छात्रों व आंदोलनकारियों को पुलिस ने जगह-जगह रोककर उन पर अत्याचार किये। उनके साथ ऐसे व्यवहार किया गया जैसे कि वे अपराधी हों।  
         सरकार की इस दमनकारी व  तानाशाही पूर्ण कार्यवाही की प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र कड़े शब्दो मे निंदा करता है। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र का कहना है कि एक तरफ  देश के प्रधानमंत्री मोदी पैसे वालों के लोकतंत्र को लागू कराने वाले संसद भवन का उद्घाटन कर एक बड़ा जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ तानाशाही पूर्ण तरीके से न्याय मांगने वालों का निमर्म दमन कर रही है। एक तरफ यौन अपराधी भाजपा सांसद बृजभूषण को गिरफ्तार करने के बजाय उसको संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बृजभूषण शरण पर आरोप लगाने वाली, न्याय की लड़ाई लड़ रही महिला पहलवानों व उनके समर्थकों पर निर्मम लाठी चार्ज कर गिरफ्तार कर रहे है। इस तरह की कार्यवाही कर देश में लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं। अपराध करने वाले संसद भवन में सांसद बने बैठे हैं और जिनके ऊपर अपराध हुआ है जब वह न्याय की मांग कर रहे तो उनको जेलों में डाला जा रहा है। यह कैसा लोकतंत्र है? किसके लिए संसद बनाई जा रही है जनता के लिए या फिर अपराधियों को संरक्षण देने के लिए? 
        प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र सरकार और पुलिस प्रशासन के इस तानाशाही पूर्ण दमनकारी रवैये की घोर निन्दा करता है और पोक्सो एक्ट व यौन  उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को अभी तक गिरफ्तार न करने की घोर भर्त्सना करता है। संगठन सरकार से मांग करता है कि यौन अपराधी भाजपा सांसद बृजभूषण को तुरंत गिरफ्तार करके कठोर से कठोर दंड दिया जाए। गिरफ्तार किए गए महिला पहलवानों समेत सभी नेताओं, महिलाओं, किसानों को तुरंत रिहा किया जाए।

May 26, 2023

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए फिल्मों का इस्तेमाल

 फिल्में समाज का आइना कही जाती हैं। एक दौर में सामूहिक एकता और सामूहिक संघर्ष पर आधारित फिल्में बनाई जाती थीं, क्योंकि वह दौर समाज में संघर्षो का दौर था और उस समय  संघर्षों को स्थापित किया जाता था।

लेकिन अब जब से समाज में सांप्रदायिक/फासीवादी ताकतों ने ध्रुवीकरण शुरू किया है और ये ताकतें देश की सत्ता पर काबिज हुई हैं तब से वे समाज में अपने वोट बैंक के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज करने के लिए फिल्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित फिल्मों में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, गलत तथ्यों पर फिल्में बना रहे हैं। कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी जैसी फिल्मों के माध्यम से समाज में ध्रुवीकरण करने का काम कर रहे हैं।                                                      

इन दिनों 'द केरल स्टोरी' फिल्म चर्चा में है। द केरल स्टोरी का ट्रेलर पहले 2 नवंबर 2022 को यूट्यूब पर अपलोड किय गया था। ट्रेलर में दिखाया जा रहा था कि ये केरल की 32,000 महिलाओं की कहानी है। फिल्म निर्देशक सुदिप्तो सेन ने दावा किया था कि मैंगलुरु और केरल से वर्ष 2009 से लेकर अब तक 32,000 इसाई और हिंदू लड़कियों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन किया गया और उन्हें सीरिया और अफगानिस्तान जैसे इलाकों में आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों में भेजा गया है। 

फिल्म के इस दावे को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और फिल्मकार अपने दावे की प्रमाणिकता साबित नहीं कर पाए। जिस वजह से उस ट्रेलर को यूट्यूब से हटाना पड़ा। दोबारा तथ्यों की छानबीन करने पर 32,000 का आंकड़ा घटकर 3 पर आ गया। कहां 32,000 और कहां 3 इतना बड़ा अंतर कैसे हो सकता है इस पर गंभीर सवाल खड़े होते है। इस तरह की फिल्म के माध्यम से फिल्मकार जानबूझकर इस तथ्यविहीन झूठ को फैला रहे थे। इसके माध्यम से समाज में मुसलमानो और इस्लामिक राज्यो के प्रति नफरत फैलाने का काम कर रही है।

अब अगर तथ्यों की बात करे कि किस धर्म के कितने लोगो ने अपना धर्म छोड़ा और दूसरे धर्म को अपनाया है। 2021 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार केरल में वर्ष 2020 में 222 लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ा है जबकि अन्य धर्मों से 241 लोगों ने हिंदू धर्म अपनाया है। 242 लोगों ने इसाई धर्म छोड़ा है जबकि अन्य धर्म के 119 लोगों ने इसाई धर्म अपनाया है। इसी प्रकार 40 लोगों ने इस्लाम धर्म छोड़ा है और अन्य धर्म के 144 लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया है।

इन तथ्यों को देखे तो सभी धर्मो के कुछ लोगो ने अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाया है। लेकिन समाज में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि बड़ी संख्या में हिंदुओं को जबरन धर्मांतरण करवाया जा रहा है। जबकि आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि सबसे ज्यादा लोगो ने हिंदू धर्म को अपनाया है। इससे स्पष्ट जाहिर होता है कि इस तरह के मुद्दे उठा कर केवल सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का काम किया जा रहा है।

फिल्म में दूसरा दावा किया गया है कि हजारों मासूम लड़कियों का केरल में योजनाबद्ध तरीके से गायब कर उनका धर्म-परिवर्तन कराया गया और उन्हें आतंकवाद की तरफ धकेल दिया गया।

भाजपा केरल को आतंकवाद के गढ़ के तौर पर दिखाने की कोशिश करती है और गुजरात को विकास के मॉडल की तरह पेश करती है। केरल के लिए पहले कहा गया कि 32,000 लड़कियां लापता हुई हैं और वे आईएसआईएस में भर्ती हो गई हैं और इसे इस तरह से पेश किया गया जैसेकि लापता होने वाली केरल की हर लड़की आईएसआईएस में भर्ती हो जाती है। ये तर्क एकदम बेतुका है। अगर लापता लड़कियों के आंकड़े की भी बात करें तो गुजरात राज्य में लड़कियों के गायब होने की संख्या बहुत अधिक है जहां भाजपा की सरकारें हैं और भाजपा गुजरात को एक मॉडल के तौर पर प्रस्तुत करती है।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में 8,290 महिलाओं के लापता होने की सूचना है। गुजरात में 5 साल के दौरान 41,000 से अधिक महिलाओं के लापता होने के मामले सामने आए हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में 7,105, वर्ष 2017 में 7,712, वर्ष 2018 में 9,246 और वर्ष 2019 में 9,268 और वर्ष 2020 में 8,290 महिलाएं लापता हुई है।इतने सालों में तो किसी को गुजरात स्टोरी बनाने की याद नहीं आई। 5 सालो में इतनी ज्यादा गायब लड़कियों पर तो गुजरात स्टोरी बनाई ही जानी चाहिए।
दूसरी बात लड़कियों का लापता होना गंभीर विषय है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लापता होने वाली सभी लड़कियां आईएसआईएस में शामिल हो गई है। 

जैसा कि आज समाज में बड़े स्तर पर मानव तस्करी हो रही है। हो सकता है कि उसमे हिस्से के बतौर ये लापता लड़कियां मानव तस्करी का शिकार हुई हो और उनको दूसरे राज्यों में ले जाकर बेच दिया जाता है। इसके अलावा एक जगह से लड़कियों को गायब कर दूसरी जगह पर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। इसके अलावा भी लड़कियों के गायब होने के और भी कारण होते हैं।

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र का स्पष्ट मानना है कि 'द केरला स्टोरी' तथ्यों और सच्चाई से परे है और समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए भाजपा का पूरा तानाबाना (नेताओ से लेकर आई टी सेल तक) इस फिल्म का प्रचार कर रहे हैं। कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस फिल्म को अपने राज्यों में टैक्स फ्री कर दिया है। भाजपा के अनुसार ये फिल्म आतंकवादी गतिविधियों और उनकी साजिश को बेपर्दा करती है। इसी तरह कुछ समय पहले कश्मीर फाइल फिल्म का प्रचार भाजपा के द्वारा किया गया था। इस तरह की फिल्मों के माध्यम से हिन्दू फासीवादी समाज में धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यानी अपने नफरती उन्मादी विचारों को फैलाने के लिए फिल्मों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। 
ऐसी सांप्रदायिक उन्मादी विचारों को फैलाने वाली फिल्मों पर तत्काल प्रतिबंधित करना चाहिए।

March 20, 2023

बेलसोनिका मजदूर यूनियन का संघर्ष जिंदाबाद

 हरियाणा के मानेसर में ऑटो पार्ट्स बनाने वाली बेलसोनिका कंपनी है जिसका प्रबंधन कम्पनी में
स्थाई मजदूरों की जगह ठेके के मजदूरों को रखने की कार्यवाही कर रहा है। इस कार्यवाही को प्रबंधन स्थाई मजदूरों की घरेलू जांच के बहाने खुली छिपी छंटनी कर रहा है और कंपनी में ठेका प्रथा को बढ़ावा दिया जा रहा है। साल 2022 में कंपनी प्रबंधन ने बेलसोनिका के तीन स्थाई मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया था जिसकी वजह से इन मजदूरों का परिवार संकट में आ गया है। कंपनी प्रबंधन के मनमाना तरीके से मजदूरों को निकाले जाने के विरोध में मजदूर जब भी विरोध करते हैं तो कंपनी प्रबंधन द्वारा गुंडे बुलाकर उकसावे पूर्ण कार्वाईयां करने की कोशिश कर रहा है। कंपनी में आए दिन बाउंसर्स तथा पुलिस प्रशासन द्वारा मजदूरों में भय का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

कंपनी प्रबंधन के इस छंटनी की कार्रवाई की वजह से बेलसोनिका के न सिर्फ मजदूर बल्कि उनके परिवार भी तलवार की धार पर चल रहे हैं। लगातार छंटनी का खतरा मजदूरों के परिवारों तथा उनके बच्चों का भविष्य खतरे में डाल रहा है। बेलसोनिका कंपनी में स्थाई मजदूर कई सालों से कंपनी के लिए काम कर रहे हैं।

कंपनी के इस अन्यायपूर्ण कार्रवाईयों के खिलाफ बेलसोनिका यूनियन लंबे समय से संघर्ष कर रही है। यूनियन के इस संघर्ष को दबाने के लिए प्रबंधन तमाम तरीके की साजिशें रच रहा है। संघर्ष को रोकने के पहले प्रबंधन द्वारा एक ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने के बहाने यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द करवाने की कोशिश की गई। इस पर भी जब यूनियन का संघर्ष नहीं रुका तो प्रबंधन द्वारा 17 मार्च 2023 को यूनियन के तीन पदाधिकारियों मोहिंदर कपूर (प्रधान), अजीत सिंह (महासचिव) तथा सुनील कुमार (संगठन सचिव) को निलंबित कर दिया गया। प्रबंधन द्वारा तीनों पदाधिकारियों पर अशांति फैलाने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है। जबकि यूनियन लागातर अपने मंच से मजदूरों से शांति बनाए रखने तथा प्रबंधन के उकसावे पूर्ण कार्रवाईयों में न फंसने की अपील कर रही है।

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र बेलसोनिका मजदूरों तथा उनके परिवारों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करता है तथा उनके साथ उनके संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने का संकल्प लेता है। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र मांग करता हैः

बेलसोनिका प्रबंधन द्वारा की जा रही मजदूरों की छंटनी पर रोक लगाओ!”

बेलसोनिका प्रबंधन द्वारा निकाले गए मजदूरों को तुरंत बहाल करो!”

निलंबित किए गए यूनियन पदाधिकारियों को तुरंत बहाल करो!”

                                                                      

इंकलाब जिंदाबाद

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी

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