December 22, 2016

महान अक्टूबर क्रान्ति के दिनों की वीरांगनाएं

रूसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका-IV
 महान अक्टूबर क्रान्ति में हिस्सा लेने वाली महिलाएं कौन थीं? क्या वे अलग-थलग व्यक्ति थीं? नहीं, वे बहुतायत में थीं, वे दसियों हजार या लाखों में अनाम वीरांगनाएं थीं, जो लाल झंडे के पीछे और सोवियतों के नारों के साथ मजदूरों और किसानों से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ीं और जारशाही, धर्म तंत्र के खंडहरों को नष्ट करते हुए नए भविष्य की ओर आगे बढीं।

    
यदि कोई पीछे की ओर मुड़ कर देखे तो इन अनाम वीरांगनाओं की व्यापक आबादी को देख सकता है। ये वे वीरांगनाएं थीं जो अक्टूबर में भुखमरी से ग्रस्त शहर में रहने वाली थीं, जो युद्ध द्वारा जर्जर दरिद्रीकृत गांवों में रहती थीं। उनके सर में एक रूमाल (यद्यपि कम लोगों के पास था तथापि लाल रूमाल), चिथड़ी हुई स्कर्ट, चकत्ते लगे जाड़े के जैकेट रहते थे। इन में नौजवान और बुजुर्ग मजदूर महिलाएं, सैनिकों की पत्नियां व किसान महिलाएं और शहर के गरीबों से गृहणियां होती थीं। कम संख्या में, उन दिनों बहुत ही कम संख्या में दफ्तरों में काम करने वाली मजदूर महिलाएं और विभिन्न पेशों की शिक्षित और सुसंस्कृत महिलाएं भी होती थीं। इसके साथ ही बुद्धिजीवी वर्ग से भी महिलाएं थीं जो लाल झंडे को हाथ में लेकर अक्टूबर में विजय की ओर आगे बढ़ीं। इनमें अध्यापक, कार्यालय के कर्मचारी, हाई स्कूल और विश्व विद्यालयों की छात्राएं एवं महिला डाक्टर थीं। वे खुशी-खुशी निस्वार्थ भाव से और स्वौद्देश्य आगे बढीं। उन्हें जहां भी भेजा  गया वे वहां गयीं, मोर्चों में उन्होंने सैनिक की टोपी लगाईं और लाल सेना की सैनिक हो गईं।

    यदि वे केरेंस्की के विरुद्ध गैतचीना में लाल मोर्चे की मदद करने के लिए गईं तो उन्होंने आनन-फानन में अपने हाथों में प्राथमिक चिकित्सा की लाल पट्टी बांध ली। उन्होंने सेना के संचार तंत्र में काम किया। वे खुशी-खुशी काम करती थीं और इस विश्वास से ओत-प्रोत थीं कि कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण हो रहा है और कि वे क्रान्ति के समूचे काम में पुर्जे मात्र हैं।

    गांवों में किसान महिलाओं ने (उनके पतियों को मोर्चे पर भेज दिया गया था) भू-स्वामियों के हाथ से जमीन छीनी और सैकड़ों वर्षों से अपनी जड़ें जमाये अभिजात तबकों को उनके घोसलों से निकाल कर खदेड़ दिया।

    जब कोई अक्टूबर की घटनाओं को याद करता है तो उसे अलग-अलग व्यक्तियों के चेहरे नहीं बल्कि व्यापक जन-समुदाय दिखाई देता है। असंख्य जन-समुदाय, मानवता की लहरों के समान जन-समुदाय दिखाई देते हैं, उन्हें कोई कहीं भी देख सकता है। वे सभाओं में, समूहों में, प्रदर्शनों में देखे जा सकते हैं। वे लोग तब यह निश्चित तौर पर नहीं जानते थे कि असल में वे क्या चाहते थे, कि वे किस चीज के लिए लड़ रहे थे, लेकिन वे एक चीज जानते थे कि अब युद्ध किसी भी हालत में जारी नहीं रहना चाहिए। और न ही वे भू-स्वामियों और सम्पत्तिवानों को चाहते थे। 1917 के साल से मानवता का विशाल महासागर हिलोरें ले रहा था। और इस महासागर का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का था।

    जब कभी इतिहासकार क्रान्ति की इन अनाम वीरांगनाओं के कार्यों के बारे में लिखेंगे जो मोर्चे पर मारी गईं, जिन्हें श्वेत गार्डों ने गोलियों से छलनी कर दिया और जिन्होंने क्रांति के कुछ सालों के दौरान बेहद अभाव झेला तो वे यह भी लिखना नहीं भूलेंगे कि उन्होंने सोवियत सत्ता और कम्युनिज्म के लाल पताके को ऊंचा उठाए रखा।

    महान अक्टूबर क्रांति के दौरान ये वे महान अनाम वीरांगनाएं थीं जिन्होंने मेहनतकश आवाम के नए जीवन के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए थे। नया सोवियत गणतंत्र इनको इस बात के लिए सलाम करता है कि ये समाजवाद के आधार का निर्माण करने की दिशा में खुशमिजाज और उत्साही नौजवान लोगों द्वारा किया गया प्राणोत्सर्ग है। 

    तब भी महिलाओं के इस समुद्र में से जिनके सर पर फटे रूमाल और चिथड़ी टोपियां थीं, अवश्यम्भावी तौर पर कुछ ऐसे चेहरे उभर कर आएंगे जिन पर किसी विशेष इतिहासकार का उस समय ध्यान जाएगा जो आज से कई साल बाद महान अक्टूबर क्रान्ति और उसके नेता लेनिन के बारे में लिखेगा।

    इनमें से पहली तस्वीर लेनिन की विश्वसनीय सहयोगी नदेज्दा कौस्तांतिनोव्ना क्रूप्सकाया की उभर कर सामने आती है। वह सादी धूसर पोशाक पहने हमेशा अपने को पृष्ठभूमि में रखने की कोशिश करती थीं। वह किसी भी सभा में ध्यान में आए बगैर किसी खम्भे के पीछे खड़ी हो जाती थीं, लेकिन वह प्रत्येक चीज को देखती और सुनती थीं, जो कुछ भी हो रहा होता था, सभी पर निगाह रखती थीं, जिससे कि वह ब्लादमीर इल्यीच को पूरा ब्यौरा पेश कर सकें। इसके साथ ही वह अपनी खुद की टिप्पणियां जोड़ देती थीं और उनमें समझदारी भरी, उपयुक्त व उपयोगी विचार का प्रकाश डाल देती थीं।

    उन दिनों जो अनेकानेक तूफानी मीटिंगें होती थीं जिनमें लोग इस बड़े प्रश्न पर बहस किया करते थेः सोवियत सत्ता विजयी होगी या नहीं? उनमें नदेज्दा कोंस्तांतिनोव्ना नहीं बोलती थीं। लेकिन वह ब्लादीमिर इल्यीच के दाहिने हाथ के बतौर बिना थके काम करती रहती थीं। वह पार्टी मीटिंगों में कभी कभार संक्षिप्त परन्तु महत्वपूर्ण टिप्पणी कर देती थीं। सबसे भयंकर कठिनाई और खतरे के क्षणों में जब ज्यादा मजबूत साथी अपना हौंसला खो देते थे और संदेह का शिकार हो जाते थे, उस समय नदेज्दा कोंस्तांतिनोव्ना हमेशा की तरह बनी रहती थीं। वह ध्येय की सच्चाई और उसकी निश्चित विजय पर पूर्ण दृढ़ निश्चय के साथ यकीन करती थीं। वह अडिग विश्वास से ओतप्रोत रहती थीं और भावना की यह दृढ़ता दुर्लभ विनम्रता के पीछे छिपी रहती थी। अक्टूबर क्रांति के महान नेता के इस सहयोगी के साथ जो भी संपर्क में आता था उस पर हमेशा खुशगवार प्रभाव छोड़ती थीं।

    दूसरी तस्वीर जो उभरती है- और वह भी ब्लादीमिर इल्यीच की एक अन्य विश्वसनीय सहयोगी की, भूमिगत काम के कठिन वर्षों के दौरान एक सहयोद्धा की, पार्टी की केंद्रीय कमेटी के सचिव येलेना द्विमित्रियेव्ना स्तासोवा की है। उनकी साफ, ऊंची भौंहें थी। उनमें दुर्लभ सटीकता थी और काम करने की अद्भुत क्षमता थी। किसी काम के लिए सही व्यक्ति को ढूंढ निकालने की उनमें दुर्लभ योग्यता थी। उनकी लंबी, मूर्तीनुमा तस्वीर को सर्वप्रथम ताव्रिचोस्की महल में सोवियतों में उसके बाद क्शेसिंस्काया के मकान पर और अंत में स्मोल्नी में देखा जा सकता था। वह अपने हाथों में एक नोटबुक लिए रहती थीं और वह मोर्चे से आए कामरेडों से, मजदूरों, लाल गार्डों, महिला मजदूरों, पार्टी और सोवियतों के सदस्यों से घिरी रहती थीं, जो तुरंत, स्पष्ट जवाब या आदेश चाहते थे।

    स्तासोवा अनेक महत्वपूर्ण मसलों की जिम्मेदारी उठाए रहती थीं, लेकिन उन तूफानी दिनों में यदि कोई कामरेड किसी जरूरत या परेशानी में होता था, तो वह हमेशा मदद के लिए प्रस्तुत रहती थीं। वह उसकी मदद के लिए जो कुछ भी कर सकती थीं, करती थीं। ऊपर से वह कठोर जवाब देते दिखाई पड़ती थीं। वह हमेशा काम में तल्लीन रहती थीं और हमेशा अपनी जगह पर तैनात रहती थीं। तब भी वह कभी भी अपने को अगली कतार में, नाम के प्रदर्शन में नहीं रखती थीं। वह लोगों के आकर्षण के केंद्र में रहना पसंद नहीं करती थीं। उनका सरोकार अपने लिए नहीं बल्कि ध्येय के लिए था।

    कम्युनिज्म के नेक और उदात्त ध्येय के लिए, जिसके लिए येलेना स्तासोवा ने देश-निकाला और जारशाही जेलों में यंत्रणा झेली थी, जिससे उनका स्वास्थ्य जर्जर हो चुका था। उस ध्येय के लिए वह फौलाद की तरह कठोर थीं। लेकिन अपने कामरेडों की परेशानियों के लिए उनमें संवेदनशीलता और हर संभव मदद करने का गुण कूट-कूट कर भरा था जो सिर्फ एक सहृदय और गर्म दिल रखने वाली महिला में ही पाया जा सकता है।

    क्लाव्दिया निकोलायेवा एक साधारण परिवार से आई कामकाजी महिला थीं। वह प्रतिक्रिया के वर्षों में 1908 में बोल्शेविकों की कतार में शामिल हुई थीं और निर्वासन तथा जेलों की यातना झेली थी। 1917 में वह लेनिनग्राद (पेत्रोगाद) वापस आईं और महिला मजदूरों की पहली पत्रिका कोम्युनिस्तका का हृदय हो गईं। वह उस समय भी जवान थीं। आग और अधैर्य से भरी हुई थीं। वह पताके को दृढ़ता से उठाए रखतीं और बहादुरी से घोषणा करतीं कि महिला मजदूरों, सैनिकों की पत्नियों और किसान महिलाओं को पार्टी में लाना होगा। उन्हें सोवियतों और कम्युनिज्म की रक्षा के लिए काम के लिए लाना होगा।

    वह जब मीटिंगों में बोलती, वह तब भी बेचैन और खुद अपने बारे में अनिश्चित रहती थीं, इसके बावजूद वह दूसरों को अनुसरण करने के लिए आकर्षित करती थीं। वह उनमें से एक थीं जो दो मोर्चों पर- सोवियतों और कम्युनिज्म के लिए और इसके साथ ही नारी मुक्ति के लिए- क्रांति में महिलाओं की व्यापक, जनभागीदारी का रास्ता तैयार करने में मौजूद सभी कठिनाइयों को अपने कंधों पर उठाती थीं। क्लाव्दिया निकोलायेवा और कोंकर्दिया समोइलोवा के नाम ऐसे थे जो मजदूर महिला आंदोलन के साथ विशेष तौर पर लेनिनग्राद (पेत्रोगाद) के मजदूर महिला आंदोलन के शुरुआती और कठिन कदमों के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। कोंकोर्दिया समोइलोवा 1921 में क्रांतिकारी काम करते हुए हैजे से मर गई थीं। वे अतुलनीय निस्वार्थ भाव से काम करने वाली पार्टी कार्यकर्ता थीं। वह बेहतरीन कामकाजी वक्ता थीं जो कामकाजी महिलाओं के दिलों को जीतना जानती थीं। जिन लोगों ने कोंकोर्दिया समोइलोवा के साथ काम किया है, वह उन्हें लंबे समय तक याद रखेंगे। वह तौर-तरीकों में सहज थीं, सामान्य पोशाक पहनती थीं, निर्णयों को लागू करने में दृढ़ थीं, वह अपने और दूसरों दोनों के साथ कड़ाई बरतती थीं। 

    विशेष तौर पर ध्यान देने लायक इनेस्सा आरमांड की सुंदर और आकर्षक तस्वीर उभर कर सामने आती है, जिनके ऊपर अक्टूबर क्रांति की तैयारी संबंधी अति महत्वपूर्ण पार्टी के कामों की जिम्मेदारी थी और जिन्होंने बाद में महिलाओं के बीच काम करने के बारे में अनेक सृजनात्मक विचारों से योगदान दिया था। अपनी तमाम नारी सुलभता और तौर-तरीकों में कोमलता के साथ इनेस्सा आरमांड अपने विश्वासों में अडिग रहती थीं और जिस बात को वह सही समझती थीं उसको सही सिद्ध करने में असमर्थ थीं। वह इसके असंदिग्ध विरोधियों का सामना करने के लिए भी तैयार रहती थीं। क्रांति के बाद, इनेस्सा आरमांड ने कामकाजी महिलाओं के व्यापक आंदोलन को संगठित करने में अपने को लगा दिया था और प्रतिनिधि सम्मलेन उनके दिमाग की उपज थी। 

    मास्को में अक्टूबर क्रांति के कठिन और निर्णायक दिनों के दौरान वार्वरा निकोलायेव्ना याकोव्लेवा ने बहुत सारा काम किया था। खाइयों के युद्ध क्षेत्र में उन्होंने पार्टी के सदर मुकाम के नेता सरीखी दृढ़ता का परिचय दिया था। उस समय के कई कामरेडों ने उनकी दृढ़ता और अडिग साहस को देखकर कहा था कि इससे कई ढुलमुल लोगों के अंदर उन्होंने विश्वास का संचार किया था और जो लोग मन से हार मान चुके थे उनके अंदर प्रेरणा प्रदान की थी। साथियों, ‘‘विजय की ओर आगे बढ़ो’’।

    जब भी कोई महान अक्टूबर क्रांति में भाग लेने वाली महिलाओं को याद करता है तो यादों के जादूघर से अधिकाधिक नाम और चेहरे उभर कर आते-जाते हैं। क्या हम वेरा स्लुव्स्काया को याद करने की भूल कर सकते हैं जिन्होंने क्रांति की तैयारी करने में निस्वार्थ भाव से काम किया था और जिन्हें पेत्रोगाद के नजदीक प्रथम लाल मोर्चे पर कज्जाकों द्वारा गोलियों से भून दिया गया था?

    क्या हम येव्गेनिया बोश को भूल सकते हैं जिनका गर्म मिजाज था और जो हमेशा लड़ाई के लिए उत्सुक रहती थीं? वह भी अपनी क्रांतिकारी तैनाती के दौरान मारी गई थीं।

    क्या हम वी.आई.लेनिन के जीवन और गतिविधियों से घनिष्ठता से जुड़ी उनकी दो बहनों और सह योद्धाओं- अन्ना इल्यिच्ना येलिजारोवा और मारिया इल्यिच्ना उल्योनोवा- के नामों का जिक्र करना भूल सकते हैं?

    और कामरेड वार्या जो मास्को की रेल कार्यशाला से थीं। हमेशा जीवंत, हमेशा जल्दी में? और फ्योदोरोवा, लेनिनग्राद( पेत्रोगाद) की टेक्सटाइल मजदूर, अपने खुशनुमा, मुस्कुराते चेहरे के साथ और जब खाइयों पर लड़ने की बात हो तो उनकी निर्भीकता को क्या हम भूल सकते हैं?

    उन सभी को सूचीबद्ध करना असम्भव है और कितनी सारी अनाम रह जाती हैं। अक्टूबर क्रांति की वीरांगनाएं एक समूची सेना थीं और यद्यपि उनके नाम यदि भूल भी जाएं, तथापि उनकी निस्वार्थ भावना जीवित रहेगी। यह उस क्रांति की विजय के लिए थी जिसके सारे फायदे और उपलब्धियां आज सोवियत संघ की मजदूर महिलाएं हासिल कर रही हैं।

    यह स्पष्ट और अखंडनीय तथ्य है कि महिलाओं की भागीदारी के बगैर, अक्टूबर क्रांति लाल झण्डे की विजय तक नहीं जा सकती थी। अक्टूबर क्रांति के दौरान लाल फरहरे के नीचे आगे बढ़ने वाली महिला मजदूरों को शानदार सलाम! अक्टूबर क्रांति को शानदार सलाम जिसने महिलाओं को मुक्त किया!

(अलेक्सांद्रा कोल्लोन्ताई के लेख ‘‘महान अक्टूबर क्रांति के दिनों की महिला वीरांगनाएं’’, 1927 का हिंदी भावानुवाद)

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