March 4, 2016

8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जिंदाबाद

8 मार्च महिला मुक्ति के लिए संघर्ष का प्रतीक दिन है। 8 मार्च, उन मजदूर महिलाअों का दिन है, जिन्होंने अपने मजदूर साथियों के साथ मिलकर 8 घंटे काम, मताधिकार तथा महिलाअों के अन्य अधिकारों के लिए संघर्ष किया। तब से लेकर आज तक यह संघर्ष लगातार जारी है। 

शासक वर्ग की सारी लफ्फाजी के बावजूद महिलायें शोषित-उत्पीडि़त हैं। दोहरी गुलामी में जकड़ी हुई हैं। लेकिन इस जकड़न से मुक्ति पाने की छटपटाहट भी बढ़ती जा रही है। कामगार महिलाअों ने अपने जुझारू संघर्ष के दम पर शासक वर्ग के कठोर पंजें से अपने लिए बहुत से अधिकार छीने। जिसके कारण पुराने सामन्ती समाज की तुलना में महिलाअों की स्थिति काफी हद तक सुधरी है। लेकिन आज भी  घोषित तौर पर बराबरी व कानूनी समानता के बावजूद वास्तव में महिलायें बराबरी हासिल नहीं कर पाई हैं। 

पूंजीवाद ने महिलाअों को पितृसत्ता से तो मुक्त नहीं किया लेकिन उन्हें सबसे सस्ते मजदूर के रूप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। घरों से निकलकर कारखानों में काम करने के बावजूद वास्तव में महिलाअों की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं आया। पूंजीवाद के शुरुआती दौर में महिलायें बहुत कम वेतन पर अंधेरी, सीलन भरी कोठरियों में 16-16 घंटे काम करती थीं, जो बीमारियों का घर होती थीं। ये महिलायें युवावस्था में ही मरने की स्थितियों में पहुंच जाती, उनका अौसत जीवन मुश्किल से 36 वर्ष का होता था। अौद्योगिक क्रांति ने महिलाअों के श्रम का जबरदस्त शोषण किया लेकिन इसने उन्हें अपनी संगठित ताकत का एहसास कराया। 
स्वतंत्रता-समानता-भ्रातृत्व का नारा बुलन्द करने वाली फ्रांसीसी क्रांति व 1793 के संविधान ने भी जब महिलाअों के कई अधिकार नहीं दिये तब 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के बाद महिला श्रमिकों के संघर्ष की शुरुआत हुई। 

March 3, 2016

जेएनयू छात्रों पर लगे देशद्रोह के आरोप के विरोध में अभियान



28 फरवरी, रविवार को दिल्ली के शाहबाद डेयरी की मजदूर बस्ती में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा जेएनयू के छात्रों पर लगे फर्जी देशद्रोह के आरोप में एक संयुक्त अभियान चलाया गया। अभियान के दौरान पूरी बस्ती में रैली निकाल कर पर्चे बांटे गए। जगह-जगह नुक्कड़ों पर सभा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज भाजपा सरकार पूरे देश में आम जनता के मौलिक अधिकारों को कुचलने पर तुली हुई है। सरकार के खिलाफ उठी हर आवाज को देशद्रोह का नाम देकर मिटा देने की कोशिश की जाती है।
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