September 23, 2017

बीएचयू के गेट परः अभी लड़ाई जारी है..

फोटो साभारः सिद्धांत मोहन
शुक्रवार, 22 सितंबर, की शाम से ही बनारस विश्वविद्यालय के गेट के बाहर छात्राओं का एक हुजूम शांतिपूर्ण तरीके से छात्राओं की सुरक्षा को लेकर प्रदर्शन कर रहा है।"बचेगी बेटी तभी तो पढ़ेगी बेटी" के नारे के साथ यह छात्राएं बनारस विश्वविद्यालय के गेट के बाहर छात्रा सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं। गौरतलब है कि 21 सितंबर की शाम को विश्वविद्यालय के गेट के बाहर एक छात्रा के साथ तीन बाइक सवारों ने छेड़खानी की। जब छात्रा मदद के लिए चिल्लाई तो गेट पर बैठे सुरक्षाकर्मियों ने उसे नजरअंदाज कर दिया। इस घटना की शिकायत लेकर जब छात्रा वार्डन और प्रॉक्टर के पास गई तो उन्होंने भी मामले को हल्के में लेते हुए उल्टा उस छात्रा को सीख देना शुरु कर दिया और कहा कि अब महिला छात्रावास के गेट बंद होने का समय शाम 7 बजे से 6 बजे कर दिया जाएगा। विश्वविद्यालय प्रशासन के इस रवैए से नाराज छात्राओं ने शुक्रवार की शाम से ही विश्वविद्यालय गेट पर धरना शुरु कर दिया।
आरएसएस और एबीवीपी का गढ़ माने जाने वाले बनारस विश्वविद्यालय के गेट पर चल रहा यह धरना संघियों के लिए पचा पाना मुश्किल हो रहा है। वह बार-बार छात्राओं को उकसाने और माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन न सिर्फ छात्राएं बल्कि उनके बाहर घेरा बनाकर खड़े विश्वविद्यालय के छात्र उनकी इस कोशिश को नाकाम कर दे रहे हैं।
बनारस विश्वविद्यालय में घटी यह घटना और उस पर विश्वविद्यालय प्रशासन की यह प्रतिक्रिया कोई नई नहीं है। हम देख रहे हैं कि मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद से ही संघ और उससे जुड़े मंत्रियों और प्रशासनिक अफसरों ने महिलाओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का ठेका खोल लिया है। महिला के विरुद्ध हिंसा, उत्पीड़न या फिर इस तरह के किसी भी वारदात की प्रतिक्रिया में यह लोग महिलाओं को ही दोष देते हैं। काफी समय से समाज में यह स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले यह बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाओं के पीछे इनके पहनावा या घूमने फिरने का समय और तरीका ही जिम्मेदार है। वह चाहे बंगलूरु में हुई घटना हो या फिर चंडीगढ़ की, संघ के प्रतिनिधियों द्वारा हर जगह जिम्मेदार महिलाओं को ही ठहराया जाता है। महिलाएं अगर छोटे कपड़े पहनेंगी तो छेड़-छाड़ तो होगी ही....लड़कियां अगर शाम होने के बाद सड़कों पर घूमेंगी तो बलात्कार की घटनाएं होंगी ही..इस तरह के फिकरे आए दिन सुनने को मिलते रहते हैं।
और मामला सिर्फ महिला सुरक्षा तक ही नहीं सीमित है संघ और उसके समवैचारिक संगठन महिलाओं के पहनावे और रहन-सहन से लेकर हर तरीके की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है। 2016 में जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में हुए आंदोलन के बाद से राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय छात्राओं पर एबीवीपी और संघ के लोगों ने तरह-तरह के भद्दी टिप्पणियां, उनके चरित्र के बारे में अफवाह फैलाने से लेकर सोशल मीडिया पर उनके बारे में कुत्सा प्रचार करने तक जो कुछ संभव है वह किया। महिला अधिकारों की बात करने वाली हर महिला को समाज में एक उत्श्रृंख्ल महिला के रूप में पेश किया जाता है।
किंतु इस सबके बावजूद न तो हमारी छात्राएं पीछे हटीं हैं और न ही उनका मनोबल टूटा है। और इस बात का जीता जागता प्रमाण है समय-समय पर महिला मुद्दों को लेकर समाज में महिलाओं द्वारा किया जा रहा यह प्रतिरोध फिर वह चाहे दिल्ली में रामजस और जे.एन.यू की छात्राओं की आंदोलन में व्यापक भागीदारी हो या फिर चंड़ीगढ़ में हुई छेड़-छाड़ की घटना के विरोध में देश भर में जगह-जगह पर रात को सड़कों पर निकला महिलाओं और लड़कियों का हुजूम या फिर बनारस विश्विद्यालय के गेट के बाहर चल रहा छात्राओं का विशाल प्रदर्शन। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी और पितृसत्तामक मूल्यों को तोड़कर आगे आने वाली और महिलाओं की समानता और अधिकार के लिए लड़ रही इन सभी बहादुर महिलाओं को क्रांतिकारी सलाम करता है और उनके इस संघर्ष के साथ एकजुटता जाहिर करता है। 

September 14, 2017

राजस्थान के किसान आंदोलन में भरी महिलाओं ने ऊर्जा



सोवियत क्रांति के नेता व्लादीमिर इल्यिच लेनिन ने कहा था कि महिलाओं की भागीदारी के बिना कोई भी क्रांति अधूरी है। इतिहास ने इस बात को प्रमाणिक किया है कि जिस भी आंदोलन में महिलाओं ने भागीदारी की है उसके तेवर ज्यादा जुझारू और दूरगामी रहे हैं। और लेनिन की यह बात एक बार फिर प्रमाणित हुई राजस्थान के किसान आंदोलन में।

1 सितंबर 2017 से राजस्थान के सीकर में किसानों का एक बड़ा आंदोलन शुरु हुआ। 13 दिन चले इस आंदोलन में करीब 30 से 40 हजारों किसानों ने भागीदारी की। किसानों द्वारा कर्जा माफ़ी सहित 11 मांगों को लेकर किया जा रहा आंदोलन दिन-ब-दिन और ज्यादा तेज होता गया। राजस्थान के लाखों किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं और प्रशासन से सीधी मुठभेड़ लेने को तैयार थे । 12 सितंबर को वार्ता की उम्मीदें विफल होने के बाद अखिल भारतीय किसान महासभा ने पूरे राज्य में 13 सितम्बर को फिर से चक्का जाम करने का आह्वान किया । किसान पूरे प्रदेश में रोड जाम कर बैठ गए। जयपुर-सीकर हाइवे 10 सितंबर से जाम कर दिया गया। बाकी संपर्क मार्ग जाम कर दिए गए। किंतु किसानों की इस व्यापक और उग्र भागीदारी के बावजूद 13 सितंबर की रात आंदोलन के नेतृत्व ने सरकार के साथ समझौता कर लिया। सरकार ने वायदा किया कि वह किसानों के 50,000 तक के कर्जे माफ करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। समर्थन मूल्य बढ़ाए जाने के लिए भी समिति के गठन का आश्वासन दिया गया। गाय के बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटाने की मांग पर भी विचार करने का वायदा किया गया। इस तरह से सरकार की तरफ से किसी भी तरह की ठोस कार्रवाई के बिना मात्र वायदों पर यह ऐतिहासिक आंदोलन समाप्त कर दिया गया। हर बार की तरह इस बार भी पूरे जोश और आर-पार की लड़ाई के लिए संकल्पबद्ध किसानों के साथ राजनीतिकि अगुवाकारों ने धोखा किया और बिना किसी परिणाम के मात्र जुमलेबाजी से आंदोलन वापस ले लिया गया।
सीकर के किसान आंदोलन का वही हश्र हुआ जो इस व्यवस्था के भीतर राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व में चल रहे आंदोलनों का होता है किंतु जब इस आंदोलन की प्रक्रिया को देखते हैं तो पाते हैं कि यह आदोंलन महिलाओं की भागीदारी के संदर्भों में एक शानदार आंदोलन रहा।

पूरे आंदोलन के दौरान महिलाओं ने अदम्य जोश और साहस का परिचय दिया। 10 सितंबर को तो अकेले सीकर में 4 हजार महिलाओं ने भागीदारी की। 11 सितंबर से 13 सितंबर तक हुए चक्का जाम की सफलता का श्रेय महिलाओं को गया। सीकर जयपुर हाइवे पर बकायदा महिलाओं ने जेली लेकर गश्त लगाई। जगह-जगह पर किसान चौकियां बनाई गई थीं। इन चौकियों पर बैठकर महिलाओं ने पूरी-पूरी रात पहरा दिया। 12 सितंबर की वार्ता की विफलता के बाद जब महापड़ाव जारी रखने का संकल्प लिया गया उस समय महिलाओं ने चक्का जाम जारी रखने पर जोर दिया और उन्होंने जारी भी रखा। सिर्फ आंदोलन की गतिविधियों के दौरान ही नहीं महिलाएँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए आंदोलन में जोश का संचार करती रहीं। दिन भर आंदोलन की गतिविधियों के बाद रात को जब सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरु करते तो लड़ाई एक जश्न का रूप ले लेती। किसान आंदोलन के समर्थन में डी.जे यूनियन ने अपनी गाड़ियां सड़कों पर उतार कर जम कर आंदोलन के गाने बजाए। इन डी.जे.के गानों पर महिलाएं बिना किसी संकोच के नाचीं।


सड़कों पर चक्का जाम को सफल करा रही महिलाएं हर आने-जाने वाले से यही बोल रहीं थीं कि जब तक सरकार कर्जा माफ नहीं करती, हम नहीं उठेंगे।

इन सभी बातों में यह ध्यान देने वाली बात है कि राजस्थान का यह शेखावटी इलाका पूरी तरह से सामंती इलाका है। बिना पर्दे के महिलाएं घरों से बाहर नहीं निकल सकतीं। सामाजिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी वृद्ध होने के बाद ही होती है। युवा महिलाएं घरों की चाहरदीवारी के अंदर सीमित रहीं है। घोर पितृसत्तामक इस समाज में लड़कियां 14-18 साल के बीच ही ब्याह दी जाती हैं जिसके बाद उनका पूरा जीवन घर के अंदर परिवार की जिम्मेदारियां संभालते ही बीत जाता है। ऐसे सामंती और पितृसत्तामक समाज के बीच रहने वाली इन महिलाओं की किसान आंदोलन में यह व्यापक भागीदारी लेनिन की इस बात को फिर पुष्ट कर देती है कि कोई भी क्रांति महिलाओं के बिना संभव नहीं है।



September 6, 2017

बोल की लब आजाद हैं तेरे, बोल जबां अब तक तेरी है

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र हिंदुत्व फासीवादी ताकतों द्वारा गौरी लंकेश की हत्या का पुरजोर  विरोध करता है


अपने निर्भीक, बेबाक तथा धर्म निरपेक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जानी वाली वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की 5 सितंबर की शाम हिंदुत्व फासीवादियों ने बंगलुरु में उनके घर पर गोली मार कर हत्या कर दी। गोविंद पांसारे, नरेंद्र दाभोलकर तथा प्रोफेसर एम.एम.कलबुर्गी की तरह ही गौरी लंकेश भी समाज में तार्किकता तथा इंसाफ के लिए आवाज उठाती रही थीं। गौरी लंकेश को पहले भी कई बार धमकियां मिल चुकी थीं इसके बावजूद उन्होंने लेखन के जरिए मौजूदा केंद्र सरकार की सरपरस्ती में चल रहे हिंदुत्व फासिवादियों द्वारा देश में चलाए जा रहे सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ आवाज उठाना निरंतर जारी रखा और इसी की कीमत चुकाई उन्होंने 5 सितंबर की शाम को गोली खाकर।
दाभोलकर, पांसारे, कलबुर्गी या फिर गौरी लंकेश की हत्या मात्र व्यक्तियों की हत्या नहीं है। यह फासीवादी ताकतों द्वारा एक लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या है। गौरी लंकेश की हत्या इस बात का सूचक है कि मौजूदा शासनतंत्र अपने ही बनाए जनवाद को बनाए रख पाने में अक्षम है। आज देश में शासक वर्ग के विरोध में उठी हर आवाज को देशद्रोही करार कर उसे हर कीमत पर दबाया जा रहा है। जनता के अपने न्यायोचित अधिकारों के लिए हो रहे आंदोलन भारी राज्य दमन का शिकार हो रहे हैं। देश की हर मेहनतकश आबादी आज जीने के मूल अधिकारों से वंचित हो रही है और उसके समर्थन में उठ रही आवाजों का वही हश्र हो रहा है जो गौरी लंकेश का हुआ।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र हिंदुत्व फासीवादियों द्वारा की गई गौरी लंकेश की हत्या की कठोर निंदा करता है तथा संकल्प लेता है कि वह हिंदुत्व फासीवादियों द्वारा देश में फैलाए जा रहे आतंक तथा मौजूदा उत्पीड़नकारी व्यवस्था के विरुद्ध आम मेहनतकश तबके के संघर्षों को आगे बढ़ाता रहेगा।
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक् तेरी है
                                           फैज़


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