September 29, 2023

नारी शक्ति वंदन अधिनियमः खोदा पहाड़ निकली चुहिया

 


नई संसद के पहले दिन 19 सितम्बर को मोदी सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक बिल नारी शक्ति वंदन बिल (संविधान में 128 वें संशोधन के द्वारा) पेश किया। यह बिल लोक सभा से पास होने के बाद राज्य सभा में भेजा गया और वहां पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अधिनियम में बदल जायेगा। इस अधिनियम के बाद लोक सभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू हो जायेगा। अभी लोकसभा के अंदर महिलाओं की उपस्थिति 15 प्रतिशत है।


हालाँकि लोक सभा में 2 सांसदों ने इसके विरोध में मतदान किया और इसके अलावा सभी ने इस बिल का समर्थन किया साथ ही इसमें ओ बी सी महिलाओं के आरक्षण की मांग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने आवाज़ उठायी। फिलहाल इसमें अभी एस सी और एस टी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

इस बिल की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं -

1. ‘नारी शक्ति वंदन बिल’ के तहत प्रावधान है कि महिला आरक्षण लागू होने के बाद अगले 15 साल तक लागू रहेगा, लेकिन इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन अभ्यास के बाद रोटेट किया जाएगा।

2. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और सीधे चुनाव से भरी जाएंगी। साथ ही, आरक्षण राज्यसभा या राज्य विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।

3. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की एक-तिहाई सीटें इन्हीं जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। महिलाओं के लिए आरक्षित कुल एक तिहाई सीटों में से एस सी-एस टी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर शेष सीटों पर किसी भी जाति की महिला चुनाव लड़ सकेगी। 

4. अधिनियम के प्रावधान ‘संविधान (128 वां संशोधन) अधिनियम 2023 के शुरू होने के बाद ली गई पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होने’ के बाद निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या पुनर्निर्धारण के बाद लागू होंगे।

5. लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 महिला लोकसभा सदस्यों से बढ़कर 181 हो जाएगी यानी कुल 543 लोकसभा सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। जिनमें 43 सीटें एस सी-एस टी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र शुरु होने तक इस बात पर रहस्य बनाये रखा कि संसद के विशेष सत्र में क्या होने वाला है और जब संसद में नारी शक्ति वंदन बिल पेश हुआ तो ऐसा लगा कि अब लोक सभा और विधान सभाओं में शीघ्र ही महिलाओं की मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ हो जाएगी और भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण होने के लिए बस इसी बिल की कमी थी। लेकिन धीरे धीरे परतें हटने लगीं और एक बार फिर मोदी सरकार के बारे में यह सच साबित हुआ कि वे जादूगर की तरह एक खेल दिखाते हैं और जब तक जनता को यह समझ में आता है कि वह ठगी गयी है तब तक वे अपना झोला उठाकर चलते बनते हैं एक और नया खेल दिखाने के लिए। 

दरअसल जिस बिल के जरिये वे महिलाओं को संसद और विधान सभा के अंदर 33 प्रतिशत आरक्षण की बात कर रहे थे वह कब तक लागू होगा इसके बारे में अभी कोई स्पष्ट रूप रेखा नहीं है। इस बिल को लागू होने के लिए पहले जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन। इसके बाद ही यह बिल लागू होगा। और जनगणना कब होगी, यह 2026 के बाद होगी। जनगणना की कोई निश्चित तिथि अभी घोषित नहीं है। कम से कम यह तो तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने वाला नहीं है। 

देश की आबादी में 50 प्रतिशत की आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर मोदी कह रहे हैं कि इस महान काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का मोदी का यह मर्ज़ पुराना है। हर काम की शुरुवात वे ऐसे करते हैं मानो इससे पहले किसी ने यह काम किया ही न हो। 

दरअसल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल 1996 में पहली बार पेश किया गया था। उसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में भी इसे पेश किया गया और अंतिम बार इसे 2010 में यू पी ए सरकार के समय राज्य सभा से पास कर लोक सभा में भेजा गया था। उसके बाद भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी। अगर मोदी चाहते तो उसी समय यह बिल लोक सभा से पास हो जाता लेकिन मोदी को अपने 10 साल शासन के अंतिम समय में इस बिल की याद आ रही है और अभी भी यह कब लागू होगा यह मालूम नहीं है।

इस बिल के द्वारा किन महिलाओं का सशक्तिकरण होगा यह साफ है। यह दरअसल शासक वर्ग की महिलाओं का ही सशक्तीकरण होगा। महिला आरक्षण बिल पर ज्यादातर राजनैतिक दलों की औपचारिक सहमति के बावजूद इसका लगभग 3 दशक तक लटकना दिखाता है कि शासक वर्ग अपने वर्ग की महिलाओं को भी लोक सभा और विधान सभाओं में आने देना नहीं चाहता रहा है (राज्य सभा और विधान परिषद में यह आरक्षण लागू नहीं होगा)। और 1996 से इस बिल को लटकाये हुए है। यह दरअसल भारतीय समाज के पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान होने को ही दिखाता है। पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत जिला प्रमुख, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान के रूप में जो महिलाएं चुनी जाती हैं उनकी जगह पर उनके पति ही काम संभालते दिखाई देते हैं। कुछ जगह पर ही महिलाएं वास्तव में अपनी स्वतंत्र पहलकदमी लेती दिखाई पड़ती हैं।

अगर भारतीय समाज में महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो सबसे पहले पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान समाज को बदलने की जरूरत है। क्या मोदी सरकार ऐसा करेगी।

नहीं! मोदी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। इसकी एक वजह खुद इसका आर एस एस जैसे संगठन से नाभिनालबद्ध होना है। आर एस एस अपनी मूल विचारधारा में महिला विरोधी संगठन है। यह संगठन हिटलर की तरह महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है और महिलाओं को केवल रसोई में झोंक देना चाहता है। खुद आर एस एस में कोई महिला पदाधिकारी केंद्रीय स्तर पर नहीं है। संघ प्रमुख पुरुष ही होता है। यह मनुस्मृति पर आधारित समाज बनाना चाहता है जिसमें महिलाओं का स्थान पशुओं के साथ रखा गया है। अगर आज संघ या भाजपा महिलाओं के सशक्तीकरण की बात करती हैं तो इसकी वजह उनकी इस मूल विचारधारा में परिवर्तन होना नहीं है वरन महिलाओं की समाज में उत्पादन या अन्य क्षेत्रों में बढ़ती भागीदारी है। वरना तो संघ और भाजपा नेता कभी महिलाओं से दस-दस बच्चे पैदा करने की बात करते हैं और उनके साथ होने वाली यौन हिंसा के लिए उनके चाल चलन को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले में अगर भाजपा के लोग लिप्त पाए जा रहे हैं यह दरअसल उनके महिला विरोधी रुख की वजह से भी है।

मोदी ने नई संसद में पहले दिन ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बिल पेश तो किया पर उन्हें संसद भवन के उद्घाटन के समय महिला पहलवानों के साथ उनकी सरकार का व्यवहार याद नहीं आया। ये महिला पहलवान कई महीनों से इस बात के लिए प्रदर्शन कर रही थीं कि उनके साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाले भाजपा सांसद ब्रज भूषण के खिलाफ कार्यवाही की जाये लेकिन मोदी सरकार ने ब्रजभूषण पर कोई कार्यवाही नहीं की उलटे उन महिला पहलवानों का प्रदर्शन भी जोर जबरदस्ती से ख़त्म करवा दिया।

इसी तरह जब वे महिला सशक्तीकरण की अच्छी-अच्छी बातें कर रहे थे तो मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की घटना याद आ गयी। बिल्कीस बानो की भी याद आयी और हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार दलित युवती के शव को किस तरह रात में जबरदस्ती जला दिया गया था यह घटना भी कोई नहीं भूल सकता। कठुआ की वह 8 साल की बच्ची आसिफा की भी याद आयी जिसके बलात्कारियों को बचाने के लिए भाजपा के मंत्री तिरंगा लेकर सड़क पर उतर पड़े थे। 

इसके अलावा मोदी सरकार ने महिला सशक्तीकरण के नाम पर 4 श्रम संहिताओं में महिलाओं को रात की पाली में काम करने की छूट देने का प्रावधान पहले ही कर चुकी है। इस प्रावधान के द्वारा मोदी ने महिलाओं के सस्ते श्रम को पूंजीपतियों को रात में भी लूटने का अधिकार दे दिया है। 

क्या मोदी का नारी शक्ति वंदन अधिनियम महिलाओं का सशक्तीकरण करेगा? इसे हम अभी की महिला सांसदों या विधायकों के व्यवहार से समझ सकते हैं। अभी संसद में जो महिला सांसद मौजूद हैं वे किसी भी पार्टी से हों लेकिन वे कभी महिलाओं के साथ हो रही घरेलू या यौन हिंसा के मामलों को लेकर सड़क पर नहीं उतरतीं। वे मज़दूर महिलाओं के लिए रात की पाली में काम करवाने वाले कानून के खिलाफ नहीं बोलतीं। वे कोरोना काल में हज़ारों किलोमीटर पैदल चलती और सड़कों पर बच्चे पैदा करती मेहनतकश महिलाओं के लिए आवाज़ नहीं उठातीं। वे लगातार देश के अंदर बढ़ती महंगाई से परेशान महिलाओं के लिए कोई राहत भरे कदम नहीं उठातीं। 

कुल मिलाकर नारी शक्ति वंदन अधिनियम अगर लागू भी हो जाता है तो इससे केवल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या ही बढ़ेगी और वो भी शासक वर्ग की, इससे आम महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं होने वाला। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए तो मेहनतकश महिलाओं को इस पितृसत्तात्मक और पूंजीवादी समाज के खिलाफ संघर्ष छेड़ना होगा। 

फिलहाल आनन-फानन में महिला आरक्षण बिल संसद से पास करना 2024 के चुनाव के लिए मोदी सरकार की बैचेनी का परिणाम है। आगामी चुनाव में मोदी खुद को महिलाओं के सबसे बड़े हितेषी के रूप में पेश करेंगे। यह इसके बावजूद कि 2024 के चुनाव में इस बिल के प्रावधानों की वजह से महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। संसद-विधान सभाओं में महिला आरक्षण लम्बे वक्त से महिला आंदोलन की मांग रही है। अब महिला वोटरों को लुभाने की खातिर ही सही महिला विरोधी संघ-भाजपा इस बिल को पारित करने को मजबूर हुई है। इस तरह एक मायने में यह महिला आंदोलन की जीत है। अब महिला आंदोलन को इस बिल को जल्द से जल्द व्यवहार में उतारने का संघर्ष करना होगा। 

यह संघर्ष इसलिए भी जरूरी है कि एक बार व्यवहार में लागू होने के बाद ही व्यापक महिलाओं को यह समझाना आसान होगा कि उनकी दुर्दशा की वजह किसी आरक्षण या अन्य क़ानूनी प्रावधानों की नामौजूदगी नहीं बल्कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था है। तभी मेहनतकश महिलाओं के सामने यह स्पष्ट होगा कि सांसद-मंत्री किसी महिला के बन जाने से उनके बदहाल जीवन में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है। बुनियादी बदलाव के लिए इंक़लाब जरूरी है।

#नारी_शक्ति_वंदन_अधिनियम

साभारः 


नागरिक

बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण पर हुए हमले का विरोध करो

23 सितंबर 2023 को हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार चंडीगढ, हरियाणा सरकार ने ठेका मजदूर को सदस्यता देने के मामले को लेकर   शनिवार, को छुट्टी के दिन अपना कार्यालय खोल कर बेलसोनिका इम्पलाइज यूनियन के पंजीकरण को रद्द कर दिया है। जबकि इस मामले को लेकर यूनियन की सदस्यता से सस्पेंड ठेका वर्कर तथा यूनियन दोनों के अलग अलग केस में माननीय उच्च न्यायालय चंडीगढ से प्रबंधन व श्रम विभाग को नोटिस हो चुके हैं। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार ने प्रबंधन के पत्र के बाद ही यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की थी और उच्च न्यायालय के नोटिस का जवाब देने की जगह पर यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया गया।

बेलसोनिका कंपनी में प्रबंधन व यूनियन के बीच पिछले ढाई साल से संघर्ष चला हुआ है। प्रबंधन बड़ी संख्या में स्थाई व पुराने ठेका श्रमिकों की छंटनी करना चाह रहा है जिस काम में यूनियन द्वारा चलाया जा रहा संघर्ष निरंतर आड़े आ रहा है। 

हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा उठाया गया यह कदम आज इस व्यवस्था की हकीकत बयां करती है जहां अब पूंजीपति वर्ग जनतंत्र के आवरण को हटाकर खुलकर मजदूर वर्ग के शोषण उत्पीड़न के लिए सामने आ चुका है और इसमें उसकी मदद कर रही है पूरी प्रशासन व्यवस्था। श्रम कानूनों में बदलाव कर लेबर कोड्स लाने से लेकर तमाम फैक्ट्री संस्थानों में छंटनी, तालाबंदी, इत्यादि मजदूर कार्रवाईयों में भारत के पूंजीपति वर्ग को राज्य द्वारा पूर्ण संरक्षण प्राप्त हो रहा है।

ऐसी मजदूर विरोधी हालातों में बेलसोनिका यूनियन अपने मजदूर साथियों के साथ लगातार प्रबंधन तथा श्रम विभाग की मनमानियों का जवाब दे रही है। बेलसोनिका यूनियन द्वारा लगातार चलाए जा रहे इस संघर्ष पर मारूती प्रबंधन के इशारे पर प्रशासन द्वारा यूनियन पंजीकरण को रद्द कर तीखा प्रहार किया गया है लेकिन यूनियन अभी भी मजदूरों के हितों के लिए चल रहे अपने संघर्ष को लगातार आगे बढ़ा रही है। 

बेलोसनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने के माध्यम से किया गया यह हमला सिर्फ बेलसोनिका यूनियन पर नहीं बल्कि मजदूर वर्ग पर हमला है । यह आने वाले उस खतरे की घंटी है जिसमें यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में मजदूर वर्ग द्वारा अपने शोषण-उत्पीड़न के लिए उठाई गई हर आवाज को यूं ही कुचला जाएगा। ऐसे में अब यह मजदूर आंदोलन का कार्यभार बनता है कि वह एकजुट हो एक दूसरे के संघर्षों में भागीदारी कर अपनी लडाई को मजबूत करें। 


प्रगतिशील महिला एकता केंद्र हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने की इस मजदूर विरोधी कृत्य की तीखी निंदा करता है तथा बेलसोनिका यूनियन के इस संघर्ष में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इंकलाब जिंदाबाद
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी
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