November 11, 2021

1917 की समाजवादी क्रांति अमर रहे!

 

आज से लगभग 104 वर्ष पहले रूस में समाजवादी क्रांति हुई। अक्टूबर क्रांति रूस के इतिहास की तीसरी क्रांति थी। 1905-07 में पहली क्रांति हुई थी। यह क्रांति जारशाही का अंत तो नहीं कर सकी परंतु उसने जारशाही की चूलें ऐसी हिलाई कि उसके बाद वह दस साल भी नहीं टिक सकी।

जारशाही के काल में किसानों, मजदूरों की हालत बहुत खराब थी। उन्हें हर तरह से दबाया जाता था। जार ने रूस को राष्ट्रीयताओं का जेलखाना बनाया हुआ था। आम जनता को किसी भी प्रकार के अधिकार हासिल नहीं थे। भाषण देने, सभा करने, प्रदर्शन करने, संगठित होने, अखबार निकालने, यूनियन बनाने, हड़ताल करने जैसे जनवादी अधिकार भी उन्हें हासिल नहीं थे। 1905-07 की असफल क्रांति के पूर्व तक कोई निर्वाचित संस्था नहीं थी। 1905-07 की क्रांति के बाद बेहद मजबूरी में रूसी संसद का गठन जार ने किया।

जार ने रूस में क्रांति के मंडराते खतरे को टालने के लिए युद्ध को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। 1901 से ही मजदूरों, किसानों, छात्रों की एक से बढ़कर एक संघर्ष किए। खूनी इतवार की घटना के बाद क्रांति की शुरुआत हुई। पूरा रूस विद्रोह की आग में सुलग उठा।



1905-07 की असफल क्रांति के बाद जार ने कुछ संवैधानिक सुधारों के साथ खेती में तेजी से पूंजीवादी नीति अपनाई। इस दौरान जनता पर भीषण हमला बोला गया।

1914 में पहला विश्वयुद्ध फूट पड़ा। यह युद्ध साम्राज्यवादी लुटेरों के बीच का युद्ध था। लगभग चार वर्ष चले इस युद्ध में एक करोड़ साठ लाख लोग मरे। युद्ध के कारण फैली तबाही से देश के भीतर मजदूर, किसान भुखमरी के कगार पर पहुंच गए। देश की जनता त्राही-त्राही कर रही थी। तब पूंजीपति जमींदार अपनी संपत्ति बढ़ाने में लगे थे।

देश स्तर पर मजदूर, किसानों व आम जनता द्वारा बड़ी-बड़ी हड़तालें होने लगी। रूस में फरवरी क्रांति की शुरुआत 23 फरवरी (8 मार्च) को हजारों मेहनतकश महिलाएं भुखमरी, युद्ध और जारशाही के खिलाफ सड़कों पर उतर गईं। उन्होंने नारा दिया हमें रोटी दो। हमें युद्ध नहीं शांति चाहिए।

जारशाही व्यवस्था के खिलाफ महिलाओं के जोरदार प्रदर्शन और मजदूरों की हड़ताल ने मिलकर आम राजनीतिक प्रदर्शन का रूप धर लिया। 8 मार्च से फरवरी क्रांति की शुरुआत हो गई।

जारशाही का अंत हो गया। 1917 की फरवरी क्रांति सफल हो गई।

फरवरी क्रांति के सफल होते ही सत्ता को लेकर संघर्ष शुरु हो गया। एक तरफ पूंजीपतियों और भूस्वामियों ने अपनी अस्थाई सरकार का गठन कर सत्ता पर अपना कब्जा घोषित किया तो दूसरी तरफ सड़कों, कल-कारखानों पर मजदूरों व सैनिकों के प्रतिनिधियों की सोवियतों का कब्जा। देश एक परंतु सत्ता दो।

अस्थाई सरकार जनता को न तो शांति, न रोटी, न जमीन और न राष्ट्रीय उत्पीड़न से मुक्ति दिला सकती थी और न दिलाना चाहती थी। उलटे उनके सारे जनवादी अधिकार, जो कि फरवरी क्रांति ने दिए थे, छीन लेना चाहती थी।
क्रांति के आसन्न खतरे को देखकर पूंजीपति वर्ग नए-नए षड़यंत्र रचने लगा। वह किसी भी कीमत पर बोल्शेविक पार्टी और उसके नेतृत्व खासकर लेनिन के जान का प्यासा हो गया।

बोल्शेविक पार्टी का प्रभाव जनता में बढ़ने लगा। मजदूरों और सैनिकों के बाद अब गरीब किसान भी बोल्शेविक पार्टी के साथ खड़े होने लगे। बोल्शेविक पार्टी को देश के मजदूर, किसान और सैनिक दिलो जां से चाहने लगे। वह सच्चे नेतृत्व को पाकर क्रांति के लिए तैयार हो गए।

25 अक्टूबर (7 नवंबर को महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति के युग का आरंभ हो गया)। महान समाजवादी क्रांति में पहली बार बहुमत का राज्य कायम किया। उत्पीड़त व शोषितों का राज्य कायम किया। समाजवादी क्रांति में पहली बार मेहनतकश समुदाय को आजादी व बराबरी मिली। वहां हर व्यक्ति उत्पादक व उपभोक्ता था।
पूंजीवाद भले ही जनवाद के कितने ही ढोल पीटता हो लेकिन जनवाद को व्यवहार में समाजवाद ने लागू किया।
महिला मुक्ति के सवाल को समाजवाद ने हल किया। महिला मुक्ति मानव मुक्ति का अभिन्न हिस्सा है। महिलाओं की मुक्ति समाजवाद में ही संभव है। उसने महिलाओं को पितृसत्तात्मक सामंती मूल्यों, मर्दवाद व धर्म के बोझ से मुक्त कर दिया।
समाजवादी क्रांति ने किसानों, मजदूरों, छात्रों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों व राष्ट्रीयताओं के सवाल को चंद समय में ही हल कर दिया। पूंजी के आधीन हो चुकी मानवता को मुक्त कर नए इसांन व नए समाज का निर्माण किया।
पूंजीवादी हमले का जवाब समाजवाद है।

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