April 5, 2021

लॉकडाउन का एक वर्ष व महिलाओं की स्थिति

 कोविड-19 (कोरोना) महामारी को एक वर्ष पूरा हो गया है । अलग-अलग देशों तथा भारत के अलग-अलग शहरों में यह बीमारी भले ही हल्की
पड़ी हो पर सारी दुनिया के पैमाने पर यह अभी भी चढ़ती पर है । कोविड-
19(कोरोना)  फिर नई लहरों के रूप में सामने आ रहा है जिसका असर भारत में भी दिखने लगा है।

एक वर्ष पूर्व सरकार ने कोरोना वायरस की रोकथाम के नाम पर 22 मार्च 2020 को अचानक जनता कर्फ्यू और बाद में पूर्ण लॉकडाउन लगाया । सरकार ने लॉकडाउन से पूर्व मजदूर मेहनतकश जनता को होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए कोई तैयारी नहीं की, न ही जनता को भरोसे में लिया। जिस वजह से प्रवासी मजदूरों, वृद्ध,  छोटे-छोटे मासूम बच्चों, गर्भवती महिलाओं में कईयों को कई हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ी । गर्भवती महिलाओं को सड़क पर बच्चे जनने पड़े। सरकार के तुगलकी तरीके से लगाए लॉकडाउन व बीमारी के कारण लाखों लोगों ने अपनी जान गवाई । स्वास्थ्य सेवाओं की हालत हमारे देश में पहले से ही खस्ताहाल थी। खस्ताहाल अस्पतालों से मजदूर मेहनतकश जनता को मामूली सी राहत मिलती मिलती थी । सरकार ने उन अस्पतालों को भी कोविड सेंटरों में बदल  दिया। जिस वजह से इलाज ना मिलने के कारण कईयों ने अपनी जान गवाई । बड़ी संख्या में रोजगार खत्म हो गए । रोजगार छिनने से गृह क्लेश व घरेलू हिंसा बढ़ी। राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन मे सामान्य परिस्थितियों की अपेक्षा घरेलू अपराध व हिंसा में दोगुनी वृद्धि हुई । नशाखोरी व्यापक स्तर पर बड़ी जिससे घरेलू अपराध में वृद्धि हुई ।

कोविड-19 (कोरोना ) महामारी के इस पूरे दौर में दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था जो पहले से ही कमजोर थी और रसातल में गई । ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल में भारतीय एकाअधिकारी पूंजीपतियों की अपनी संपत्ति में 35% की बढ़ोतरी हुई तो दूसरी तरफ असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों ने लगभग 12 करोड़ 20 लाख नौकरियां खोई। मजदूर मेहनतकश से बड़े स्तर पर रोजगार छीना गया । बेरोजगारी की सर्वाधिक मार गरीब मजदूर मेहनतकश लोगों में भी महिलाओं पर पड़ी है। जिन महिलाओं की नौकरी बची हुई है उसमें 83% की कमी आई है । लॉकडाउन में कई महिलाएं अनैच्छिक गर्भवती हुई जिसमें 1800000 महिलाओं ने गर्भपात कराया। गर्भपात कराने के दौरान 2 .165 महिलाएं मौत की ग्रास बनी। रोजगार छीने जाने की वजह से घरेलू अपराधों व हिंसा में 60% की बढ़ोतरी हुई। महिला व बाल कुपोषण में पहले से ज्यादा कई गुना वृद्धि हुई । देश के कोने-कोने में मासूम बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद नृशंस हत्या का चक्र बढ़ गया है।

एक तरफ सरकार स्वास्थ्यकर्मियों पर फूल बरसा रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली के कई अस्पतालों में कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दी गई । यही हाल देश के अलग-अलग हिस्सों में भी हो रहा है ।

कोविड-19 महामारी की रोकथाम पर लगे लॉकडाउन को सरकार ने आपदा को अवसर में बदला। पिछले वर्ष की शुरुआत में हो रहे एनआरसी आंदोलन व कई अन्य आंदोलनों को खत्म किया । श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर 29 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिता में बदलकर मजदूरों पर हमला बोला वहीं कृषि में सुधार के नाम पर काले कृषि कानून का किसानों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद लागू किए जाने की कवायद जारी है । शिक्षा नीति में सुधार के नाम पर नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। इन सभी कानूनों , संहिताओं व शिक्षा नीति लागू होने से मजदूर मेहनतकश जनता के जीवन में पहले से ही व्याप्त कष्ट-पीड़ा, अशिक्षा, भुखमरी, कुपोषण में और तेजी के साथ वृद्धि होगी। सरकार द्वारा लाई गई वैक्सीन को वैज्ञानिक प्रयोगों की कसौटी पर सही से उतारा नहीं गया । दवाई का सही ट्रायल नहीं हुआ है। वैक्सीन के प्रयोग से कईयों की मौत हुई है।

सरकार द्वारा लाई गई जन विरोधी नीतियों का विरोध करने वालों पर सरकार ने लॉकडाउन लगाने के साथ ही कई सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज , फर्जी मुकदमा लगाकर जेल में डालने का कार्य शुरू कर दिया जो लगातार जारी है।

सरकार एक तरफ दमन कर रही है तो उसकी प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध का स्वर मुखर से मुखर हो रहा है । संभावनाएं अब वहां पहुंच रही हैं कि यह प्रतिरोध सरकार के विरोध से आगे बढ़ कब व्यवस्था बदलाव तक चले जाएगा। मजदूर मेहनतकश की व्यवस्था समाजवाद के निर्माण तक कब जाएगा यह समय की बात है पर यह होना लाजमी है।

केंद्रीय कमेटी

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