April 5, 2021

महिलाओं से रात की पाली में काम कराने का विरोध

केन्द्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र 2020 में श्रम संबंधी बिलों को पास करा लिया है। देशी-विदेशी पूंजीपति लम्बे समय से इन श्रम कानूनों में अपने पक्ष में बदलाव करवाना चाहते थे। पूंजीपतियों की इस इच्छा को मोदी सरकार ने पूरा कर दिया। सरकार ने इन श्रम सुधारों के नाम पर मजदूर-मेहनतकशों के अधिकारों पर हमला किया है। इन अधिकारों को मजदूरों ने अपने अकूत संघर्षों- बलिदानों की बदौलत हासिल किये थे।

सरकार ने 29 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं में बदलने का काम किया है। इन चारों श्र
म संहिताओं में सरलीकरण के नाम पर भारी असमंजसता, अस्पष्टता व भ्रम की स्थिति को पैदा कर दिया गया है। जो सरकार के द्वारा पूंजीपति वर्ग को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई कार्यवाही है। इन्हीं श्रम संहिताओं में एक बिन्दू महिलाओं का रात की पाली (नाइट शिफ्ट) में काम करने का है। इन चारों श्रम संहिताओं के साथ ही ‘‘महिलाओं का रात की पाली में काम’’ करवाने का कानून एक अप्रैल 2021 से पूरे देश में लागू हो जायेगा।

अभी तक औद्योगिक संस्थानों में महिलाओं से रात की पाली में काम कराने पर प्रतिबन्ध था जिसके तहत शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे तक महिलाओं से औद्योगिक संस्थानों में कार्य नहीं करवाया जा सकता था। किन्तु ‘‘व्यवसायिक संरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संबंधी संहिता 2020’’ की धारा 43 में इसे बदलकर रात की पाली में भी महिला मजदूरों से काम लेने का अधिकार पूंजीपतियों को सौप दिया गया है। साथ ही सरकार ने इस नये कानून में अब खतरनाक उद्योगों में भी महिला मजदूरों से काम कराने का रास्ता खोल दिया है। महिलाओं से रात की पाली में काम का प्रावधान ऊपरी तौर पर ‘‘स्त्री-पुरूष की बराबरी’’ और ‘‘महिला सशक्तिकरण’’ जैसी बातों को आधार बनाता है। परन्तु हकीकत यह है कि पूंजीपति वर्ग महिलाओं के सस्ते श्रम की हर समय आवक चाहता है और इस तरह महिलाओं का रात की पाली में काम करना पूंजीपति वर्ग के मुनाफे को और अधिक बढ़ाने का ही रास्ता है।

महिलाओं का रात की पाली में काम करने का देश के पूंजीपतियों सहित पूंजीवादी राजनैतिक-सामाजिक संगठनों ने स्वागत किया है। वे इसे ‘‘स्त्री-पुरूष की बराबरी’’ व महिलाओं को रोजगार में समानता और अवसर के रूप में देखते है। लेकिन महिलाओं द्वारा रात की पाली में काम करने के कारण उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और बच्चों के ऊपर पड़ने वाले घातक प्रभाव और निजी व पारिवारिक जीवन के चौपट होने का भूल कर भी कोई जिक्र नहीं करता है।

प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र महिलाओं से रात की पाली में काम कराने का पुरजोर विरोध करता है। यह एक सामाजिक सच्चाई है कि कुछ कानूनी या औपचारिक तौर पर ‘स्त्री-पुरूष की बराबरी’ के बावजूद महिलाओं और खासकर मजदूर-मेहनतकश महिलाओं को दोयम दर्जे का जीवन जीना पड़ता है। महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा की बात करें तो हम जानते ही हैं कि महिलाओं के साथ हर स्तर पर गैरबराबरी, हिंसा/यौन हिंसा और अत्याचार की घटनाऐं लगातार बढ़ रही हैं। छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाऐं दिन के उजाले में भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में रात के अंधेरे में कैसे सुरक्षित रह पायेंगी? हम देखते हैं कि देश के भीतर विशेष आर्थिक क्षेत्र में काम की परिस्थितियां बहुत कठिन हैं। हम जानते हैं कि मजदूरों को उद्योगों में जाने के लिए सार्वजनिक वाहन (ऑटो, बस) दूर पैदल यात्रा करके मिलते हैं। यह रास्ता कई बार सुनसान होता है। यानि अगर इस धारा के अनुसार यह मान भी लिया जाये कि औद्योगिक संस्थानों के अन्दर महिलाओं को सुरक्षा मिल भी जायेगी लेकिन घर से संस्थान तक जाने में महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी?

दूसरे महिलाओं में प्रत्येक माह होने वाली माहवारी और गर्भावस्था के दौरान हॉरमोन्स बदलते रहते हैं। ऐसे समय में कठिन परिस्थितियों में काम, थकान व नींद पूरी न होने के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हम यह भी जानते हैं कि महिलाऐं आम तौर पर आराम नहीं कर पाती हैं। जब महिलाऐं रात की पाली में रात भर जग कर काम करेंगी और फिर घर व बच्चों की जिम्मेदारियों के कारण दिन में भी आराम नहीं कर पाती हैं। यह अभी रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं (अस्पतालों, कॉल सेन्टरों, सुरक्षा बलों व सेवा संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं) के जीवन में अच्छे से देखा जा सकता है। इसका सबसे ज्यादा कुप्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा।

महिलाओं का रात की पाली में काम के सवाल को एक और नजरिये से सोचने की जरूरत है। पूंजीवाद ने अपने एकदम शुरूआती दौर में महिलाओं को सामाजिक उत्पादन में खींच लिया था। लेकिन ऐसा करते समय उसकी मंशा महिलाओं को बराबरी या मुक्ति दिलाने की नहीं रही। इसलिए उसने कभी भी महिलाओं को घरेलू श्रम से मुक्त करने की बात तक नहीं की। उसे तो सिर्फ और सिर्फ सस्ता श्रम चाहिए था। इसलिए इस पूंजीवादी व्यवस्था ने मजदूर-मेहनतकश वर्ग की महिलाओं को किसी भी कीमत पर अपना सस्ता श्रम बेचने को मजबूर कर दिया।

क्रांतिकारी संगठनों के साथ-साथ समूचे मजदूर-मेहनतकश वर्ग को महिलाओं का रात की पाली में काम करने का तीखा विरोध करना चाहिए। ‘महिला श्रम की मुक्ति’ और ‘लिंग भेद का अन्त’ आदि पूंजीपतियों के जुमलों का विरोध करना चाहिए। पूंजीपति वर्ग की इन नीतियों का भण्डाफोड़ करने की जरूरत है। हकीकत में पूंजीवाद सस्ते श्रम की लूट व लिंग भेद को खत्म करना नहीं चाहता है और न ही इस पूंजीवाद में यह खत्म हो सकता है। महिलाओं की सामाजिक बराबरी, आर्थिक स्वतन्त्रता व महिलाओं की पूर्ण मुक्ति का सवाल इतिहास से जुड़ा हुआ है। और इस सवाल को इस पूंजीवादी व्यवस्था में हल नहीं किया जा सकता है। यानि मजदूर राज समाजवाद में ही महिलाओं को हर स्तर पर बराबरी व पूर्ण मुक्ति मिल सकती है। समाजवाद में महिलाओं को सामाजिक बराबरी व आर्थिक समानता मिल सकती है। समाजवाद में ही ‘‘सस्ते श्रम से मुक्ति’’ व ‘‘लिंग भेद का अन्त’’ हो सकता है।

आज से 150 वर्ष पूर्व मजदूरों के पहले राज पेरिस कम्यून ने अपने 72 दिन के शासन में ही सबको एक समान वेतन (6 हजार फ्रैंक सालाना) व रात की पाली में नानबाईयों के काम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था। 1917 में रूस में समाजवाद ने महिलाओं को घर के कामों से मुक्त कर सामाजिक उत्पादन में उनकी पूर्ण भागीदारी बनाई। छोटे बच्चों के कार्यक्षेत्रों में क्रेच की व्यवस्था, बच्चों के लालन-पालन व शिक्षा व बुजुर्गो की देखभाल की जिम्मेदारी सरकार ने ले ली। समाजवादी व्यवस्था ने ही महिलाओं की पूर्ण मुक्ति के सवाल को हल किया। हमें भी आज पूंजीपतियों की नीतियों का भण्डाफोड़ कर पूंजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त करने की जरूरत है। समाजवादी व्यवस्था का निर्माण करने की जरूरत है।

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