September 2, 2022

बिल्किस बानो केस में अपराधियों की रिहाई के पीछे की राजनीति

आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर अमृत महोत्सव मनाया गया। इस दिन लाल किले की प्रचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में महिलाओं के सशक्तिकरण, उनके सम्मान का खास तौर पर जिक्र किया। उन्होंने महिलाओं के अपमान को लेकर अपनी पीड़ा भी जाहिर की। 

लेकिन उसी दिन गुजरात उन्ही की पार्टी के लोगों ने बिलक़ीस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया। बिलक़ीस बानो का मामला 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित सबसे गंभीर और घृणित मामलों में से एक था। 
लेकिन आज़ादी के अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता दिवस पर इन दोषियों की रिहाई सवालों के घेरे में है।
 2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास एक गाँव में उन्मादी भीड़ ने उनके परिवार पर हमला किया था। इस दौरान पाँच महीने की गर्भवती बिलकीस बानो के साथ 11 लोगों ने गैंगरेप किया। उनकी तीन साल की बेटी सालेहा को पत्थर पर पटक पटक कर बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की माँ, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 7 लोग मारे गए थे।

 इस मामले के इन 11 लोगों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। फिर अहमदाबाद में केस का ट्रायल शुरू हुआ। बिलक़ीस बानो ने इस पर आपत्ति जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा एकत्रित सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2004 में इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।
मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को हत्या और सामूहिक बलात्कार का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। इस मामले में 5 पुलिसकर्मी और 2 डॉक्टर सहित सात लोगों को कुछ दंड देकर छोड़ दिया गया था। सीबीआई ने मुंबई उच्च न्यायालय में दोषियों के लिए और कड़ी सज़ा की मांग की थी। इसके बाद मुंबई उच्च न्यायालय ने मई, 2017 में बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व न निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दोषी ठहराया था।
हाल ही में 15 अगस्त को गुजरात की गोधरा जेल में बंद बिलक़ीस बानो मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी योजना (क्षमा नीति) के तहत रिहाई दे दी गई। इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काटने के बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि चूकि मुंबई उच्च न्यायालय ने इन अपराधियो को सजा सुनाई थी इसलिए उनकी रिहाई का फैसला भी वहीं से होगा। लेकिन जब मामला मुंबई उच्च न्यायालय में गया तब मुंबई उच्च न्यायालय ने यह कहा कि चूकि अपराध गुजरात में हुआ था इसलिए गुजरात सरकार ही इस पर विचार करे। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई, 1992 की क्षमा नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है।

क्षमा नीति कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है। फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है कि अपराध किस प्रकृति का है। यानी अपराध किसी विशेष व्यक्ति 9 जुलाई, 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है।

क्षमा नीति कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है। फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है।9 जुलाई, 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और कहा था कि दो महीने के अंदर फैसला किया जा सकता है।

क्षमा नीति कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है। फिर आवेदन पर सरकार विचार करती है कि अपराध किस प्रकृति का है। यानी अपराध किसी व्यक्ति विशेष पर गया है या फिर समुह और समाज के खिलाफ़ किया गया अपराध है। अगर अपराध समूह/समाज के खिलाफ़ है तो उसमे क्षमा नीति के तहत रिहाई नहीं मिल सकती है। 
लेकिन गुजरात सरकार ने इन सारे तथ्यों को दरकिनार कर इन 11 अपराधियों रिहा कर दिया।
संघ, भाजपा और तथाकथित हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने इन अपराधियो के जेल से छुटने पर जश्न मनाया, मिठाईयां बाटी, अपराधियों को फूल मालाएं पहनाई। जैसे कि वे लोग 14 वर्ष का वनवास खत्म करके लौटे हैं।
*प्रगतिशील महिला एकता केंद्र इस घटना को निंदनीय मानता है और अपराधियों को रिहा करने के फैसले को महिला विरोधी बताते हुए अपराधियों को वापस जेल में डालने का पक्षधर है।*
देश की मेहनतकश जनता, न्याय प्रिय लोग भी इस घटना और अपराधियों के जेल से छूटने पर उनके बीच भारी आक्रोश है। दुसरी तरफ हमारे देश के सत्ताधारी नेता, मंत्री चुप लगाकर बैठे हैं।

ऐसे में ये सवाल उठना लाजिम है कि जो लोग जय श्रीराम का नारा लगाने वाले, राम मंदिर के लिये प्राण न्यौछावर करने वाले, भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले हिन्दुत्ववादी इतने खूंखार कैसे हो सकते हैं? वो बलात्कारियों के साथ कैसे खडे हो सकते हैं? क्या हिन्दू धर्म ऐसे अपराध को जायज ठहराता है? 
 जाहिर सी बात है कि हिन्दू धर्म या कोई भी धर्म ऐसी हिंसा को कभी जायज नहीं ठहराता है। फिर भी ऐसी घटनाएं हो रही है तो हमे समझना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि अगर ये नहीं समझेंगे तो उस मानसिकता को नहीं समझ पायेंगे जो दंगों में औरतों का पेट फाड़ते हैं। मासूम बच्चों को जिंदा जला देते हैं। गर्भवती महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं।
ऐसी संघी मानसिकता के लोगों के गुरु विनायक दामोदर सावरकर ने  भारतीय इतिहास की वो व्याख्या की है। अपना दृष्टिकोण पेश किया है। जिसने देश में ऐसा नफरती माहौल तैयार किया।
 सावरकर ने भारतीय इतिहास के छह वैभवशाली युग पुस्तक लिखी। जिसमें उन्होने लिखा कि दूसरो की औरतों को अगवा करना और उनके साथ बलात्कार करना, अपने आप में परम धार्मिक कर्तव्य है।
सावरकर कहते है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार करना उचित है और जब ऐसा अवसर हो और ऐसा नहीं किया जाता है, तो वह सदाचारी या उदार नहीं बल्कि उसे कायरता माना जाएगा।
सावरकर के अनुसार किसी भी युद्ध में शत्रु के साथ किसी भी तरह की रियायत आत्महत्या है। घाटे का सौदा है और अगर शत्रु को परास्त करने के लिये उनकी औरतों के साथ बलात्कार भी करना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिये।
यानी इसमें कोई संदेह नहीं है कि सावरकर औरतों के साथ बलात्कार की वकालत करते रहे थे।
सावरकर का दर्जा हिंदुत्व विचारधारा में सबसे ऊंचा है।उनका कहा एक-एक शब्द वेद-वाक्य है। उनके समर्थकों को लगता है कि जब वो मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर रहे होते हैं तो वो हिंदू धर्म के लिये महान काम कर होते हैं। देश का वैभव बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
सावरकर के अनुसार शत्रु का मनोबल तोड़ने के लिये बलात्कार को युद्ध नीति के तौर पर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकना चाहिए।
सावरकर का इतिहास को देखने का ये गलत नजरिया है। ये नजरिया इतिहास की समझ से परे है। ये जानबूझ कर गढ़ा हुआ दृष्टिकोण है।
सावरकर के इस दृष्टिकोण उनकी मानसिकता के कारण ही आज देश के अंदर ऐसा नफरती माहौल बन रहा है। आज धर्म, राष्ट्र के नाम पर लोगों को उन्मादी बनाया जा रहा है। सावरकर की शिक्षा के कारण ही ऐसे किसी भी सांप्रदायिक दंगो में तथाकथित धर्म की रक्षा के नाम पर उन्मादी भीड़ द्वारा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार करना, गर्भवती महिलाओं का पेट चीरकर भूर्ण निकालकर त्रिशूल पर टांग कर जय श्री राम के नारे लगाना, छोटी छोटी बच्चियों को पटक पटक कर मार देना गर्व की बात होती है। 
लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि मेहनतकश जनता ने बड़े से बड़े तानाशाह, कट्टरपंथी, फासीवादी, हिटलर जैसे शासकों  को धूल चटाई है। और भविष्य में भी मेहनतकश जनता ऐसा ही करेगी।

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी

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