August 18, 2021

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा

दिनांक 16 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर अपना कब्जा कर लिया। अब पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का अपना कब्जा है और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर रेगिस्तान भाग गए हैं। जो कल तक अपनी राजधानी के विषय में महफूज थे कि कुछ नहीं होगl अब वह अपने देश की जनता को तानाशाहों के हाथों में छोड़ भाग गये।

अफगानिस्तान में अमेरिकी यूरोपीय यूनियन के साथ-साथ चीन एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में मौजूद है। उसके अपने हित इस क्षेत्र में किसी से भी नहीं छिपे हैं। भारत से भी सैन्य मदद की अपील गनी सरकार कई बार कर चुकी है, लेकिन साम्राज्यवादी खिलाड़ी अभी भारत को तरजीह नहीं दे रहे हैं। भारतीय शासकों के भी पर्दे के पीछे तालिबान से वार्ता की खबरें आती रही हैं पर अपनी और अमेरिकापरस्ती के चलते उसे तालिबान की बढ़त से अपने निवेश के डूबने का ही अधिक भय है। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन बातें कर रहे थे कि सेनाएं हटाए जाने के बाद तालिबान कुछ नहीं कर सकता है। लेकिन इस सबके पीछे अमेरिका के अपने हित मौजूद हैं। यह सियासत की चालें चलने वाले ही बेहतर समझ सकते हैं कि उनके मंसूबे क्या हैं

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का कहना है कि अफगानिस्तान की गुलामी की जंजीर टूट गई है। चीन अपना दोस्ती का हाथ तालिबान के साथ बढ़ा रहा है आमजन खतरे का अहसास कर अफरातफरी के माहौल में देश छोड़कर भाग रहा है तो कोई मौत का डर ना मानकर तालिबान के डर से मौत को गले लगा रहा है। समाचारों में कुछ ऐसा ही मंजर दिखाई देता है जब लोग हवाई जहाज के पहिए पकड़कर देश से भागने का प्रयास करने मैं ऊपर से गिर गये और 3 लोगों की मौत हो गयी।

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा एक मानवीय त्रासदी है। तालिबान कट्टर मुस्लिमपंथी शरीयत के कानून को मान्य और लागू करना चाहता है। इससे पहले 1999 से पूर्व तालिबान ने अफगानिस्तान में किया था लोग उस स्थिति से वाकिफ है। वह भयभीत मंजर अभी भी लोगों की जहन में मौजूद है। और अब एक बार फिर हम उस मंजर की पुनरावृत्ति देख रहे हैं जब महिलाओं और बच्चों के साथ खूब ज्यादा बर्बरता पूर्ण, दुर्दांत व्यवहार किया जा रहा था मानवीय भावनाओं को ताक पर रख दिया गया था जिनके पास पैसा है वह हवाई जहाज और एयर बसों से भाग रहे हैं परंतु आमजन क्या करें? आमजन महिलाएं और बच्चे घरों में कैद हो कर रहे गए हैं। रात ही एक अफगानिस्तानी व्यक्ति का इंटरव्यू सुना जो अपनी जान को बचाने के लिए तो भारत आ गया परंतु उसका परिवार वही मौत के मुंह में हैऐसे ही अनगिनत वाकए हैं। एक अफगानी लड़की जो भारत में ही शिक्षा पा रही है कहती है यकीन नहीं आता कि ऐसे वक्त में दुनिया के देशों ने अफगानिस्तान से अपना नाता तोड़ लिया। कोई भी देश अफगानिस्तान के साथ नहीं खड़ा है। दुनिया ने अफगानिस्तान को अकेला छोड़ दिया है। एक अन्य जेएनयू की राजनीति विज्ञान की छात्रा कहती है कि अफगानिस्तान में आम घरों की महिलाएं अपने घरों में कैद हो चुकी हैं। तालिबान ने यह कह ही रखा है कि बालिकाओं लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। सभी अपने अपने घर में रहे शरीयत को ही कानून, संविधान मानने वाला तालिबान महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करेगा, इसका उसके पूर्व के शासन से अंदाजा लगाया जा सकता है। इस समय वहां पर महिलाएं अत्यंत ही भयभीत हैं। वह कितना अपने को लाचार अनुभव कर रहे हैं इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता असमंजसता और अफरा-तफरी का गमगीन माहौल बन चुका है। तालिबान कितना ही कहे कि वह अमन चाहता है, इस पर विश्वास करना नामुमकिन है। शरीयत को ही संविधान मानने वाला, उसी को लागू करने वाले, तालिबान से कैसे अमन की उम्मीद कर सकते है जो तालिबान का एक जनवादी संविधान की पक्षधरता न करना साफ दर्शाता है कि तालिबान के मंसूबे बदले नहीं हैं। वह आधी आबादी को गुलामी की जंजीरों में जकड़ेगा ही, इसीलिए उसने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है महिलाओं और बच्चों की स्थिति और भी ज्यादा खौफनाक हो जाएगी

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र तालिबान की शरीयत के संविधान जिसमें महिलाओं की गुलामी दिखाई देती है का पुरजोर विरोध करता है। मानवता की गुलामी दुनिया में सबसे बड़ा अपराध है इसके लिए दुनिया के मानवता प्रेमी संगठनों को इसका विरोध करना चाहिए।

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र का साफ मनना है कि अफगानी जनता साम्राज्य वादियों द्वारा किए गए "लोकतंत्र" का दंश झेल रही है। एक और हस्तक्षेपकारी साम्राज्यवादी ताकतें और दूसरी और कट्टरपंथी तालिबानी हैं। जिन्हें खुद एक वक्त पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने ही खड़ा किया था उनके जीवन को नर्क बना रहे हैं। ऐसे में इन दोनों से ही लड़कर अफगान जनता बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकती है

(प्रगतिशील महिला केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी)

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