July 30, 2021

शहीद उधम सिंह को याद करने की जरूरत

देश की आजादी के लिए उधम सिंह जैसे हजारों-हजार क्रांतिकारियों ने शहादत दी थी। उनका ख्वाब था कि भारत में भूख, गरीबी, बेरोजगारी, शोषण-उत्पिडन न हो। मजदूर-मेहनतकशों का राज हो। उधम सिंह का साफ मानना था कि भारत में कौमी एकता को खंडित करने वाले सांप्रदायिक, उपद्रवी, कट्टरपंथी तत्वों की साजिश का भंडाफोड़ किया जाना चाहिए। भारत के मजदूर, किसानों, उत्पिड़ित तबको, समुदाय का हित कौमी एकता को बनाए रखने में ही है। लेकिन उधम सिंह की शहादत को इतना लंबा समय बीत जाने और अंग्रेजो से आजादी भी मिलने के बाद भी देश की जनता परेशान है। 
शहीद उधम सिंह एक महान क्रांतिकारी और देश प्रेमी थे। जिनके दिल में सिर्फ और सिर्फ देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के प्रति क्रोध भरा हुआ था। शहीद उधम सिंह भारत की आजादी के लड़ने वाले हजारों-हजार लोगों में से एक थे। शहीद उधम सिंह की शहादत को एक लंबा समय बीत गया है। तब भी शहीद उधम सिंह की शहादत को याद करने की आज भी सख्त जरूरत है। 
        शहीद उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम शेर सिंह था। उनके पिता मजदूर परिवार से थे। उनके पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह जम्मू व मां का नाम नरेन कौर था। 8 वर्ष की छोटी उम्र में ही पहले पिता और बाद में मां की मृत्यु हो गयी। माता-पिता की मृत्यु के बाद उधम सिंह और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह ने अमृतसर के खालसा अनाथालय में अपना जीवन यापन किया। जहां इनका नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह रखा गया। वहां इनको सिख धर्म की दीक्षा दी गई। 1917 में इनके भाई की भी मृत्यु हो गई। इन मुश्किलों ने उधम सिंह को दुखी तो बहुत किया लेकिन इसके साथ ही उनकी हिम्मत और संघर्ष करने की ताकत को और बढ़ाया। अनाथालय में ही इन्होंने दस्तकारी और कला का प्रशिक्षण लिया। 1918 में उधम सिंह ने हाई स्कूल पास किया और 1919 में अनाथालय छोड़ दिया। उधम सिंह देश व पंजाब की राजनीतिक उथल-पुथल से रूबरू थे ही, अब राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गए।
1919 में ही रोलेट एक्ट के विरोध में पंजाब के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई। जिसमें लगभग 20 हजार लोग शामिल थे। शांतिपूर्ण चल रही सभा में माइकल ओडवायार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। उस समय माइकल ओ डवायर पंजाब का गवर्नर था। माइकल ओ डवायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेगिनेल्ड डायर ने सैनिकों के साथ मिलकर सभा में उपस्थित लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। जलियांवाला बाग की ऊंची-ऊंची दीवारें होने के कारण लोग वहां से निकल नहीं पाए। इससे जलियांवाला बाग कांड में लगभग  एक हजार लोगों की मौत हो गई और दो हजार लोग घायल हो गए। शहीद उधम सिंह जलियांवाला बाद में एकत्रित लोगों को अनाथालय की ओर से पानी पिलाने आए थे। वे इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। जलियांवाला बाग कांड का नरसंहार उधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा,  जिसने नौजवान उधम सिंह को पूरी तरह हिला कर रख दिया और यह उधम सिंह की जिंदगी का मोड़ बिंदु बन गया था। 
इसके बाद उधम सिंह सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने ठान लिया कि भारत के निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले और करवाने वाले को उसके किए की सजा जरूर देंगे। उधम सिंह ने अपने द्वारा किए गए संकल्प को पूरा करने के लिए अलग-अलग देशों की यात्राएं की और वहां अलग-अलग पेशों पर आधारित रोजगार कर अपना जीवन भी चलाया। पुलिस से अपनी पहचान छुपाने के लिए उन्होंने अपने कई नाम भी बदले। उधम सिंह, भगत सिंह के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उधम सिंह, भगत सिंह की राह पर चलने लगे। उधम सिंह अंग्रेजी हुकूमत के साथ-साथ साम्राज्यवाद व सांप्रदायिकता का भी पुरजोर विरोध करते थे। इसीलिए उधम सिंह ने अपना नाम बदलकर राम-मोहम्मद-सिंह-आजाद रख लिया था। इसके जरिए उन्होंने देश में कौमी एकता का संदेश दिया। 
 1924 में उधम सिंह गदर पार्टी में शामिल हो गए और फिर भगत सिंह, चंद्रशेखर के संगठन "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन" में शामिल हो गये। इसके जरिए विदेशों में रह रहे भारतीय लोगों को क्रांति के लिए तैयार करने का काम करने लगे। 1927 में भगत सिंह के कहने पर वह भारत वापस लौट आए। उधम सिंह जब वापस लौटे तब उनके साथ 25 सहयोगी, रिवाल्वर व गोला बारूद था। जिसके कारण उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 4 साल उन्होंने जेल में ही बिताए।
1931 में जेल से छूटने के बाद वह कश्मीर चले गए। जब तक उधम सिंह जेल से छूटे तब तक भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। किसी तरह पुलिस से बचते-बचाते उधम सिंह 1934 में लंदन पहुंच गए। उधम सिंह ने 21 साल तक जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने की इच्छा को अपने दिल में संजो कर रखा। उधम सिंह की ब्रिगेडियर जनरल रेगिनेल्ड को मारने की इच्छा पूरी नहीं हो पायी क्योकि वह पहले ही बीमारी के कारण मर चुका था। 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन में "कास्टन हाल" में बैठक थी। इस बैठक में माइकल ओ डवायर एक वक्ता के तौर पर आने वाला था। इस बैठक में पहुंचने के लिए उधम सिंह ने एक गाड़ी व रिवाल्वर का इंतजाम किया। कहा जाता है कि उधम सिंह अपनी रिवाल्वर को एक मोटी किताब में छुपा कर ले गए थे। जैसे ही माइकल ओ डवायर सभा में आया उधम सिंह ने रिवाल्वर निकालकर गोली चला दी। माइकल ओ डवायर को दो गोली लगी और उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। उधम सिंह घटना को अंजाम देकर भागे नहीं बल्कि गिरफ्तारी दे दी। उनको इस बात का गर्व था कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह करके दिखाया जो देश के सभी लोग चाहते थे।
लंदन में ही उधम सिंह पर  मुकदमा चलाया गया। अदालत में उधम सिंह ने अपना राजनीतिक बयान दिया। 4 जून 1940 को अदालत ने उधम सिंह को माइकल ओ डवायर की मृत्यु का दोषी घोषित कर दिया। 31 जुलाई 1940 को लंदन में जेल में फांसी की सजा दे दी गयी। आजादी के बाद उधम सिंह के मृत शरीर के अवशेषों को उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई 1974 के दिन भारत को सौंप दिया गया।
देश की आजादी के बाद देश से गौरे अंग्रेज तो चले गए लेकिन अपनी जगह काले अंग्रेजों को देश की सत्ता सौंप दी। आजादी के बाद से देश में दो वर्ग बने हुए हैं। एक तरफ  पैसे वाले लोग जिनके पास अथाह संपत्ति है और दूसरी ओर गरीब मेहनतकश लोग हैं। आज भारतीय शासक आम मेहनतकश जनता के साथ वैसा ही सलूक कर रहे हैं जैसा अंग्रेजी हुकुमत भारतीयों के साथ किया करती थी। 
अंग्रेजो ने भारत पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए "फूट डालो राज करो" की नीति अपनाई। इसके कारण देश की जनता के बीच सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का काम किया। आज भी भारतीय शासक इस नीति के तहत देश की जनता में सांप्रदायिक उन्माद फैला कर किसी भी तरह अपनी सत्ता को बचाए रखना चाहते हैं। तब भी उधम सिंह, भगत सिंह व देश की मेहनतकश जनता ने कौमी एकता के दम दम पर अंग्रेजों को मुंह तोड़ जवाब दिया था और आज भी देश की मेहनतकश जनता सांप्रदायिक उन्माद का अपने संघर्ष और एकता के दम पर भारतीय शासकों को जवाब दे रही है और आगे भी देगी। 
अंग्रेजी हुकूमत ने भी मेहनत का जनता का अथाह शोषण-उत्पीड़न किया और देश की संपत्ति अपने देश ले गए। अंग्रेजों के उस शोषण -उत्पीड़न व उस कार्यवाही का भारतीय जनता कोई विरोध न करें, एकजुट ना हो इसके लिए अंग्रेज कई प्रकार के काले कानून लेकर आये। इसी में रोलेट एक्ट जैसे कानून शामिल है। आज भारतीय शासक देश की मेहनतकश जनता का शोषण-उत्पीड़न कर रहे हैं, मेहनतकश जनता के विरोधी कानून पास कर रहे हैं, आज भी गरीब मेहनतकश जनता भूखी है, नौजवानों के पास रोजगार नहीं है, आज भी इलाज के अभाव में लोग दम तोड़ रहे हैं, देश गरीब बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही हैं।
आज भारतीय समाज पूर्णत: पूंजीवादी समाज बन चुका है। आज भारतीय समाज की भुख, गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, महिला हिंसा, शोषण-उत्पिडन सभी समस्याओं की जड़ पूंजीवादी व्यवस्था और उसको पालने-पोसने वाला एकाधिकार पूंजीपति वर्ग है। पूंजीवादी समाज का विकल्प समाजवादी समाज ही है। पूंजीपतियों के इस सड़े गले राज का विकल्प मजदूर मेहनतकशो का राज ही है। पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना ही भारतीय समस्याओं के समाधान का रास्ता है। 
 ऐसे में हमें देश के क्रांतिकारियों की शहादत को याद कर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है। भारत के वीर क्रांतिकारियों की हिम्मत, जज्बे, लगन, कुर्बानी, लक्ष्य के प्रति समर्पण आदि से सीख लेने की जरूरत है। 
आज भारतीय समाज की परिस्थितियों में उधम सिंह जैसे क्रांतिकारियों की जरूरत और अधिक बढ़ जाती है।

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