February 1, 2021

किसान आंदोलन पर हो रहे हमलों के विरोध में

 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में जो हुआ वह ऐतिहासिक था। लगभग 2-4 लाख किसान 2 लाख ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली परेड में शामिल हुए। एक तरफ जनपथ पर भारत सरकार द्वारा तीनों सेनाओं द्वारा शक्ति प्रदर्शन कर रही थी वहीं दूसरी तरफ इस देश के किसान अपने ऊपर थोपे जा रहे तीन कानूनों के खिलाफ अपने आंदोलन को एक नए स्तर पर ले जाने के लिए तैयार थे। तीनों कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ जून से ही किसान असंतोष दिखा रहे हैं। नवंबर अंत में किसानों ने अपने प्रदर्शन को दिल्ली लाने का प्रयास किया लेकिन सरकार द्वारा किए गए दमन की वजह से उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रुक जाना पड़ा। समय के साथ-साथ किसानों का आंदोलन व्यापक होता गया। देश के कोने-कोने से न केवल किसान
बल्कि आम जनता इस आंदोलन के समर्थन के लिए उमड़ पड़ी। और यही कुछ दिख रहा था 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों पर जहां न केवल किसान बल्कि आम जनता का एक बड़ा हिस्सा न केवल परेड में शामिल था बल्कि वह सड़कों पर किसानों के उपर फूल बरसा रही थी और उनका अभिनंदन कर रहा था।

उसके बाद घटना जिस तरह भी घटी, किसान किस तरह भी दिल्ली पहुंचे, झंडा किसी ने भी फहराया लेकिन इस देश के चौथे खंभे ने सरकार को वह परोस दिया जो वह लंबे समय से चाहती थी। लाल किले में घुसने और झंडा फहराने को गोदी मीडिया ने इस कदर प्रचारित प्रसारित किया कि पूरे आंदोलन पर एक सवाल ख़ड़ा हो गया। वह किसान जिसकी मेहनत से इस देश की जनता का पेट भरता है वह अचानक आतंकवादी और देशद्रोही हो गया। वह लाल किला जिसका प्रबंधन 2018 में मोदी सरकार ने डालमिया भारत समूह को सौंप दिया था उसे नुकसान पहुंचाने का आरोप लगने लगा। राष्ट्रवाद के नाम पर भाजपा और उसके संगठनों ने किसानों की उन तमाम न्यायिक मांगों को देशद्रोह साबित कर दिया जिसका असर न सिर्फ किसानों पर पड़ने वाला है बल्कि इस देश की आम मेहनतकश जनता की रोटी की जरूरत पर भी पड़ने वाला है।

लेकिन सच है कि इस तमाम परिघटना में अगर कुछ गलत है तो वह है वह तीन कानून जो मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट जगत के हित में पास किए हैं। यदि कुछ गलत हुआ है तो वह किसान जो किसान विरोधी नीतियों की वजह से आत्महत्या कर अपने परिवार को बेसहारा छोड़कर जाने पर मजबूर हुए हैं। यदि कुछ गलत हुआ है तो सर्वोच्च न्यायालय का वह बयान जिसके अनुसार महिलाएं आंदोलन में जगह नहीं रखती हैं। यह बयान न सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय की पितृसत्तामक नजरिए को दिखाता है बल्कि अब तक महिला किसानों को किसान का दर्जा न मिलने की आधारभूत वजह को समझाता है।

26 जनवरी के बाद से ही किसान आंदोलन लगातार हमले का शिकार हो रहा है। एक तरफ इस देश का बिका हुआ मुख्यधारा का मीडिया है जो इसे तोड़ने की कोशिश कर रहा है दूसरी तरफ स्थानीय लोगों के नाम पर भाजपा के गुंडे हैं जो लगातार किसान आंदोलन के सभी धरना स्थलों पर किसानों तथा उनके समर्थकों पर हमले कर रहे हैं। किसानों के साथ-साथ अब केंद्र सरकार ने उन पत्रकारों पर भी हमले शुरु कर दिए हैं जो किसानों की संघर्ष की असली तस्वीर जनता के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। मंदीप पुनिया की नाजायज गिरफ्तारी इस का स्पष्ट उदाहरण है। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र सरकार द्वारा किसानों की जायज मांग को लेकर चल रहे आंदोलन पर इस नाजायज हमले तथा आंदोलन स्थल पर किसानों के साथ-साथ उनके पक्षधर पत्रकारों पर हमले की निंदा करता है तथा किसान आंदोलन का पुरजोर समर्थन करता है।

किंतु जैसा कि इतिहास में हर बार हुआ है जब-जब जुल्मतों का दौर आया है विरोध के गीत और तीखे हुए हैं। उसी तरह किसान भी अपनी लड़ाई में डटे हुए हैं और उनके साथ डटी हुई हैं इस देश की तमाम प्रगतिशील तथा इंसाफपसंद ताकतें। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र किसानों की इस लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ खड़ा है और इसे इसके सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

इंकलाब जिंदाबाद

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कार्यकारिणी द्वारा पारित

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