December 22, 2016

फरवरी क्रांति में महिलाओं की शानदार भूमिका

 (रूसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका-III)
इस लेख श्रृंखला के पहले हिस्से में बताया जा चुका है कि 23 फरवरी 1917 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन महिलाओं के व्यापक प्रदर्शन से जारशाही को समाप्त करने का आंदोलन उग्र हो गया था। वैसे 1914 से ही बोल्शेविक पार्टी महिला मजदूरों और सैनिकों की पत्नियों को संगठित करने के काम में लगी हुई थी। फरवरी क्रांति की शुरूआत में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता मजदूरों और सैनिकों की पत्नियों की जन सभायें कर रही थीं, काम के स्थान पर हड़तालें और जन प्रदर्शन आयोजित कर रही थीं, लोगों को हथियारबन्द करने के लिए हथियार के साथ-साथ राजनीतिक बन्दियों की रिहाई करा रही थीं तथा फर्स्ट एड इकाईयां गठित कर रही थीं।

    कुछ इतिहासकारों का यह कहना सही नहीं है कि 23 फरवरी के दिन सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने की शुरूआत करने वाली वे महिलायें थीं जो रोटी और ईंधन के लिए लम्बी कतारों में खड़ी रहती थीं। वस्तुतः सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए पेत्रोग्राद के व्याबोर्ग जिले की टेक्सटाइल महिला मजदूर सबसे पहले निकली थीं। वे कई संयंत्रों में काम करने वाली मजदूर थीं। उन्होंने सामूहिक तौर पर अपने औजार डाल दिये और मिलों को छोड़कर वे तेजी के साथ बड़े झुंडों में एक फैक्टरी से दूसरी फैक्टरी की ओर निकल पड़ीं। उन्होंने अपने सहयोगियों की तलाश टेक्सटाइल क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखी। उन्होंने अन्य उद्योगों, जिसमें उल्लेखनीय धातु उद्योग के मजदूर थे, के मजदूरों से सिर्फ नैतिक समर्थन देने की ही नहीं बल्कि सक्रिय हिस्सेदारी की मांग की। प्रत्येक पड़ाव पर महिलायें जोर देकर कहती थीं कि काम को बंद करने का समय आ गया है और यह समय मालिकों और सरकार को यह दिखा देने का है कि अंततः मजदूर अपना हक हासिल करने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हैं। महिलाओं ने फैक्टरियों की खिड़कियों और दरवाजोें पर पत्थर, बर्फ के गोले और डण्डे फेंके और इमारतों में घुस गयीं। वे समझाने- बुझाने के तरीकों का इस्तेमाल करके व्यापक मजदूरों को साथ लेती गयीं। प्रदर्शन में शामिल होने में हिचकिचाहट दिखाने वाले कुशल मजदूरों में से थे। 

    जैसे-जैसे पुरुष मजदूर शामिल होते गये, आंदोलन जोर पकड़ता गया। पुतिलोव फैक्टरी के मालिक ने तालाबंदी कर रखी थी। उसके हजारों मजदूर पहले से ही गुस्से में थे और बेचैन थे। 23 फरवरी को पेत्रोग्राद के कुल मजदूरों में 20 प्रतिशत हड़ताल में थे। लेकिन टेक्सटाइल मजदूर 30 प्रतिशत हड़ताल में थे। 25 फरवरी तक पेत्रोग्राद के कुल मजदूरों का 52 प्रतिशत हड़ताल पर चला गया। लेकिन टेक्सटाइल मजदूरों के 71 प्रतिशत हड़ताल पर थे। इस तरह यह देखा जा सकता है कि अन्य मजदूरों की तुलना में टेक्सटाइल मजदूर ज्यादा रफ्तार से हड़ताल में शामिल हो रहे थे। रोटी की मांग फरवरी क्रांति के साथ इतनी गहराई से जुड़ी हुई थी कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन पहले हड़ताली टेक्सटाइल मजदूरों के मुंहों से इसकी चर्चा की गयी थी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विरोध प्रदर्शन के दिन उन्होंने मांग की कि उनके आदमियों को मोर्चों से वापस बुलाया जाए। महिला प्रदर्शनकारियों को पुलिस और सैनिकों का उस समय सामना करना पड़ा जब वे उन्हें अपने जिले से बाहर जाने से रोकने लगे। पुलिस और सैनिकों के साथ झड़पों में कुछ मार दी गयीं। प्रदर्शनकारियों को यह लगने लगा कि उन्हें सिपाहियों को अपने पक्ष में करना होगा। 

    इसके बाद प्रदर्शनकारी महिलाओं ने पेत्रोग्राद शहर की परिवहन प्रणाली की ओर ध्यान दिया और वे ट्राम डिपो की ओर कूच कर गयीं। युद्ध ने ट्राम कम्पनियों को मजबूर कर दिया था कि वे अधिकाधिक संख्या में महिलाओं की भर्ती करें। महिलाओं ने ‘‘जारशाही का नाश हो’’ के नारे लगाते हुए ट्रामों को रोक दिया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन पहले तक हथियारबंद सैनिक ट्राम डिपो के बाहर तैनात थे। लेकिन 23 फरवरी की शाम तक वे मजदूरों के साथ हो गये। प्रदर्शनकारियों ने ट्रामों को उलट दिया और उनका इस्तेमाल बैरीकेड की तरह किया जिससे कि पुलिस और फौज को रोका जा सके। व्याबोर्ग जिले से आगे बढ़ कर प्रदर्शन में चमड़ा, कागज और पाइप उद्योग के मजदूर शामिल हो गये। अब यह आम हड़ताल हो गयी। युद्ध की समाप्ति के नारे और महिलाओं द्वारा उनके आदमियों की मोर्चे से वापसी के नारे सब जगह लगाये जाने लगे। महिलाओं ने सैनिकों को अपने पक्ष में करने का अभियान चलाया। गांवों से किसानों के बेटों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया गया था। इनमें से अच्छी खासी संख्या में राजधानी पेत्रोग्राद के गैरीसन में थे। महिलाएं इन सैनिकों के बीच प्रचार कार्य में लगी हुई थीं।

    जारशाही किसी भी असंतोष व गड़बड़ी से निपटने के लिए कज्जाक सेना पर निर्भर करती थी। जारशाही के लिए यह स्पष्ट था कि मौजूदा आंदोलन के पीछे बोल्शेविकों का हाथ था। लेनिन की बड़ी बहन आन्ना एलिजारोवा को फरवरी क्रांति से एक सप्ताह पहले गिरफ्तार कर लिया गया था। इसी प्रकार, एक दूसरी बोल्शेविक इलेना स्तासोवा को उनकी बीमारी के बावजूद 24 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। 24 फरवरी को बहुत सारी महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। 

    इन गिरफ्तारियों का सड़कों के प्रदर्शनों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। न ही अधिकारियों द्वारा महिलाओं से अपने घर लौटने की बातों या कज्जाकों के हिंसक हमलों का कोई असर पड़ रहा था। महिलायें घुड़सवार सैनिकों को देखकर भागने के बजाय उन्हें घेर लेती थीं। वे कज्जाक सिपाहियों से सीधे कहती थीं कि युद्ध में तुम्हारे-हमारे जैसे लोग गैर जरूरी तौर पर मारे जाते हैं और इससे मुनाफाखोर मुनाफा लूटते हैं। बोल्शेविक पार्टी की महिलायें सैनिकों के बीच लगातार प्रचार कर रही थीं कि वे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के अधिकारियों द्वारा दिये जाने वाले आदेश को मानने से इंकार कर दें। 

    और इस प्रचार का असर पड़ा। कज्जाकों ने उनको सुना और गोली चलाने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपनी राइफलें झुका लीं और अपने घोड़ों पर सवार होकर आंदोलनकारियों से दूर चले गए। महिलाओं ने जारशाही हुकूमत की अंतिम सुरक्षा पंक्ति को तोड़ दिया था। 25 फरवरी की एक घटना उल्लेखनीय है। जब 25 फरवरी को प्रदर्शनकारियों का कज्जाकों से सामना हुआ तो एक नौजवान लड़की धीरे-धीरे कज्जाक सेना की ओर बढ़ी। वह अपने कपड़ों के भीतर गुलाब के फूलों का गुच्छा लिए हुए थी। उसने उन्हें हाथ में लेकर एक अधिकारी की ओर बढ़ाया। अधिकारी ने इसे स्वीकार कर लिया। इस तरह, महिला मजदूरों और गृहणियों ने पेत्रोग्राद शहर की फैक्टरियों और आवश्यक सेवाओं को ठप कर दिया था तथा सैनिकों के बीच आंदोलन के प्रति सहानुभूति अर्जित कर ली थी। 

    तीन दिनों के भीतर, आम हड़ताल हो गयी थी। सेना विद्रोह कर चुकी थी और क्रांति के पक्ष में जा चुकी थी और जारशाही ध्वस्त हो चुकी थी।

    23 फरवरी (8 मार्च) के आंदोलन का जिक्र करते हुए 5 मार्च (18 मार्च) के प्राव्दा ने लिखा था:-

    ‘‘23 फरवरी को महिला दिवस के दिन अधिकांश फैक्टिरियों और संयंत्रों में हड़ताल की घोषणा कर दी गयी। महिलायें बहुत जुझारू तेवर में थीं- न सिर्फ महिला मजदूर बल्कि रोटी और ईंधन के लिए लम्बी कतारें लगाने वाली महिलायें भी। उन्होंने राजनीतिक सभायें कीं। वे सड़कों में निकलीं, वे शहर डूमा की ओर रोटी की मांग लेकर गयीं, उन्होंने ट्रामों को रोका। उन्होंने जोश-खरोश के साथ आहवान किया, ‘‘कामरेडों बाहर आओ!’’ वे फैक्टरियों और संयंत्रों में गयीं और मजदूरों से अपने औजार रख देने को कहा। कुल मिलाकर, महिला दिवस व्यापक रूप से सफल था और इसने क्रांतिकारी स्पिरिट को उन्नत किया।’’

    फरवरी प्रदर्शनों को शुरू करने में महिलाओं की भूमिका और उसकी गति को बरकरार रखने में उनकी भूमिका जारशाही को उखाड़ फेंकने में बहुत महत्वपूर्ण थी। लेकिन इसी दौरान, पूंजीवादी नेताओं के साथ समाजवादी क्रांतिकारी और मेंशेविकों ने सांठगांठ करके एक अस्थायी सरकार का गठन कर लिया। समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी और मेंशेविकों का पेत्रोग्राद सोवियत में बहुमत था। ये सोवियतें मजदूरों और सैनिकों की सोवियतें थीं। ये फरवरी क्रांति के दौरान ही अस्तित्व में आ गयी थीं। मजदूरों और सैनिकों की सोवियतों के समर्थन के बिना अस्थायी सरकार कुछ नहीं कर सकती थी। ये दोनों अपनी-अपनी शक्ति बढ़ाने में लगी हुयी थीं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के समय युद्ध समाप्त करने, अपने आदमियों को मोर्चे से वापस बुलाने और रोटी व ईंधन की जो मांग जोर से उठायी गयी थी, उन पर सरकार ने कुछ नहीं किया। अस्थायी सरकार ने युद्ध जारी रखने का फैसला किया। जारशाही के ध्वस्त होने के बावजूद, हालात वैसे ही बने रहे। 

    ऐसे ही समय में बोल्शेविक पार्टी ने समाजवादी क्रांति का नारा दिया। ‘‘सारी सत्ता सोवियतों को’’ के नारे के साथ अस्थायी सरकार के विरुद्ध मजदूरों, सैनिकों और किसानों के बीच काम शुरू किया गया।

    महिलाओं में सबसे उत्पीड़ित सैनिकों की पत्नियों ने अपनी हालत में सुधार न होने के विरुद्ध आवाज उठाना शुरू कर दिया। 11 अप्रैल को 15000 सैनिकों की पत्नियों ने पेत्रोेग्राद सोवियत के सदर मुकाम के सामने प्रदर्शन किया। सोवियत का अध्यक्ष एफ.आई.डान नामक मेंशेविक था। वह युद्ध का समर्थक था। उसने महिलाओं की बात अनसुनी कर दी। 

    महिला मजदूरों का अस्थायी सरकार के विरुद्ध असंतोष बढ़ता जा रहा था। 21 अप्रैल को मुख्यतया टेक्सटाइल महिला मजदूरों ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया।

    गर्मियों तक अस्थायी क्रांतिकारी सरकार के विरुद्ध महिलाओं का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। अब महिलाओं का यह गुस्सा फैक्टरी मजदूरों तक ही सीमित नहीं था। इसका विस्तार सेवा क्षेत्र की महिला मजदूरों तक हो गया था। 1 मई 1917 में 40,000 लाउण्ड्री में काम करने वाली महिला मजदूर वेतन और काम के हालात में सुधार के लिए हड़ताल पर चली गयीं। उस समय तक पहली अस्थायी सरकार ध्वस्त हो चुकी थी। दूसरी अस्थायी सरकार अस्तित्व में आयी। इस सरकार में मेंशेविक और समाजवादी क्रांतिकारी साझी सरकार में शामिल हो गये। इस सरकार ने भी युद्ध में शामिल रहने की नीति जारी रखी।

    बोल्शेविक पार्टी ने लाउण्ड्री मजदूरों की हड़ताल का सक्रियतापूर्वक समर्थन किया और उसे नेतृत्व प्रदान किया। इसके अतिरिक्त उसने सेवा क्षेत्र के अन्य मजदूरों को संगठित करने का कार्य तेजी से अपने हाथ में लिया।

    अस्थायी सरकार के विरुद्ध समूचे मजदूर वर्ग सहित महिला मजदूरों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। मई में डाई मजदूरों की हड़ताल हुई। जून में होटलों में काम करने वाले वेटरों की हड़ताल हुई। 

    जारशाही को उखाड़ फेंकने में महिला मजदूरों और गृहणियों ने जिन मांगों व मुद्दों को उठाया था, वे दोनों अस्थायी सरकारों के काल में जारी ही नहीं रहीं बल्कि और ज्यादा घनीभूत होती गयीं।

    बोल्शेविक पार्टी महिला मजदूरों सहित समूचे मजदूर वर्ग को समाजवादी क्रांति करने के लिए संगठित करने में लग गयी। जुलाई, 1917 के बाद से स्थितियों में बदलाव आना शुरू हुआ। मजदूरों और सैनिकों की सोवियतों में बोल्शेविकों की साख बढ़ती गयी। महिला मजदूरों के बीच बोल्शेविकों का काम और ज्यादा सघन होता गया।

    इन सबने मिलकर अक्टूबर क्रांति को जन्म दिया और इस महान समाजवादी क्रांति ने इतिहास में पहली बार नारी को पुरुषों के समक्ष समान आधार पर साथ मिलकर लड़ने का मार्ग प्रशस्त किया।
आभारः रूसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका-III

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