हरियाण के हिसार जिले के भगाना गांव में चार नाबालिग दलित लडकियों का बलात्कार की घटना ने एक बार फिर देश में दलितों व उनकी महिलाओं के स्थिति के सम्बन्ध में सवाल खड़ा कर दिया है. दलित जाती की महिलाओं के साथ होने वाली ये कोई अकेली या अनोखी घटना नहीं है. लेकिन यह तथा इस तरह की घटनाएँ ये बताती हैं कि आजादी के 65 से भी ज्यादा वक़्त बीत जाने के बाद भी बहुलांश दलित आबादी की सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. समाज में महिलाओं को पुरुष की संपत्ति समझे जाने का ही परिणाम है कि अक्सर ही एक दूसरों को नीचा दिखने व बदला लेने के लिए महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है. ये जातिगत दंगे (खैरलांजी, मिर्चपुर और अब भागना), सांप्रदायिक दंगे (भारत विभाजन, गुजरात, मुजफ्फरपुर) हों या युद्ध इन सब में महिलाएं और बच्चे आसान शिकार होते हैं और दूसरों को नीचे दिखने का कारगर हथियार। हमारा मानना है की जब तक महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति, घर की इज्जत के साथ जोड़कर देखा जाता रहेगा, पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ कायम रहेगा तब तक महिलाओं की स्थिति में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं हो सकता। इसके लिए जरुरी है कि इस घृणास्पद पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ को ख़त्म करने के लिए प्रगतिशील क्रन्तिकारी संघर्षों को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ें।
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