उत्तर प्रदेश में लगातार महिलाओं के खिलाफ हिंसा व यौन अपराध की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। एक घटना भूलती नहीं कि दूसरी घटना घट जाती है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ने वाली हिंसा व यौन अपराध की बेतहाशा बढ़ती घटनाओं ने उत्तर प्रदेश के नेता जी मुलायम सिंह यादव का बयान "लड़के हैं लड़कों से गलतियां हो जाती हैं" तथा "यदि हम सत्ता में आये तो बलात्कारियों की सजा कम करेंगे" की घोषणा अपना रंग दिखने लगी है। ऐसा नहीं की अन्य हिस्सों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा नहीं हो रही है बल्कि पूरे देश व समाज में ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा व यौन अपराध की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
विगत 28 मई को यूपी के बदायूं जिले में दो नाबालिग बहनों की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी। मानवता को प्यार करने वाला शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिसका अखबारों में पेड़ से लटकती लाशों की तस्वीरों को देखकर दिल ना दहला हो।
जनदवाब के चलते यूपी सरकार ने आरोपियों को गिरफतार व तीन पुलिस कर्मियों को निलंबित कर रस्म अदायगी कर दी है। 16 दिसम्बर रेपकाण्ड के बाद भी आरोपियों को गिरफतार कर लिया गया था और महिला हिंसा को रोकने के लिए कड़े कानून भी बनाए गए थे। परन्तु सच्चाई ठीक इसके उल्टी है। महिला हिंसा से जुड़े मामले घटने के बजाए लगातार बढ़ रहे हैं।
विगत 28 मई को यूपी के बदायूं जिले में दो नाबालिग बहनों की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी। मानवता को प्यार करने वाला शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिसका अखबारों में पेड़ से लटकती लाशों की तस्वीरों को देखकर दिल ना दहला हो।
जनदवाब के चलते यूपी सरकार ने आरोपियों को गिरफतार व तीन पुलिस कर्मियों को निलंबित कर रस्म अदायगी कर दी है। 16 दिसम्बर रेपकाण्ड के बाद भी आरोपियों को गिरफतार कर लिया गया था और महिला हिंसा को रोकने के लिए कड़े कानून भी बनाए गए थे। परन्तु सच्चाई ठीक इसके उल्टी है। महिला हिंसा से जुड़े मामले घटने के बजाए लगातार बढ़ रहे हैं।
हरियाणा की चार दलित लड़कियों के साथ बलात्कार के विरोध में लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए उनके परिजन 16 अप्रैल से धरने पर बैठे हैं। उनको न्याय का दिलासा भी राज्य सरकार ने नहीं दिया था कि तब तक और दो अन्य दलित लडकियों के साथ बलात्कार कर हत्या की घटना ने देश में महिलाओं की स्थिति के सम्बन्ध में सवाल खड़ा
कर दिया है। दरअसल बात यह है कि आजाद भारत में भी गरीब, दलित, शोषितों व महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. समाज में महिलाओं को पुरुष की संपत्ति
समझे जाने का ही परिणाम है कि अक्सर ही एक दूसरों को नीचा दिखने व बदला
लेने के लिए महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है. ये जातिगत दंगे हों या सांप्रदायिक दंगे हों या युद्ध ही क्यों न हो इन सब में महिलाएं और बच्चे आसान शिकार
होते हैं।
दूसरों को नीचे दिखने के लिए इसे एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सामाजिक संरचना इसे मज़बूती प्रदान करती है। हमारा यह स्पष्ट मानना जब तक महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति, घर की इज्जत के साथ जोड़कर देखा जाता रहेगा, घृणास्पद पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ कायम रहेगा, पूंजीवादी व्यवस्था जो महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल कर अपना मुनाफा बढ़ाती है, जो महिला-पुरूषों के बीच गैर बराबरी बढ़ाती है, महिलाओं को सेक्स-सिंबल के बतौर स्थापित करती रहेगी, महिला विरोधी अश्लील संस्कृति -फिल्मों-गीतों-विज्ञापनों को समाज में प्रचारित कर समाज की सोच को कुंठित करती रहेगी तब तक बदायूं जैसी घटनाओं को नहीं रोका जा सकता। इसलिए यह समय की मांग है कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था व पूंजीवादी व्यवस्था का सामंतवाद के साथ गठजोड़, जो इस सब की जिम्मेदार है। उसको उखाड़ फेंका जाये। अपने संघर्षो को पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ के खिलाफ लक्षित किया जाये।
दूसरों को नीचे दिखने के लिए इसे एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सामाजिक संरचना इसे मज़बूती प्रदान करती है। हमारा यह स्पष्ट मानना जब तक महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति, घर की इज्जत के साथ जोड़कर देखा जाता रहेगा, घृणास्पद पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ कायम रहेगा, पूंजीवादी व्यवस्था जो महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल कर अपना मुनाफा बढ़ाती है, जो महिला-पुरूषों के बीच गैर बराबरी बढ़ाती है, महिलाओं को सेक्स-सिंबल के बतौर स्थापित करती रहेगी, महिला विरोधी अश्लील संस्कृति -फिल्मों-गीतों-विज्ञापनों को समाज में प्रचारित कर समाज की सोच को कुंठित करती रहेगी तब तक बदायूं जैसी घटनाओं को नहीं रोका जा सकता। इसलिए यह समय की मांग है कि मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था व पूंजीवादी व्यवस्था का सामंतवाद के साथ गठजोड़, जो इस सब की जिम्मेदार है। उसको उखाड़ फेंका जाये। अपने संघर्षो को पूंजीवादी-सामंतवादी गठजोड़ के खिलाफ लक्षित किया जाये।
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