84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को उम्र के अंतिम पड़ाव व बीमारी की स्थिति में भीमा कोरेगांव प्रकरण में अन्य धाराओं के साथ-साथ यूएपीए के तहत फ़र्ज़ी मुकदमा दर्ज कर बीते साल अक्टूबर में जेल में डाल दिया गया था।
इस दौरान उनकी तबियत लगातार खराब रही। उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई में अदालत ढिलाई दिखाती रही। एक 84 साल के बीमार बुज़ुर्ग से यह व्यवस्था इस कदर घबरा गयी कि इतनी खराब शारीरिक परिस्थिति के बावजूद उन्हें ज़मानत नहीं मिली।
अंतत: 5 जुलाई 2021 को उनकी मौत हो गयी। वास्तव में यह किसी बीमारी से होने वाली मौत नहीं, बल्कि फासीवादी सरकार द्वारा की गई परोक्ष हत्या है। इस हत्या के जिम्मेदार वो भी हैं जो पूंजीवादी न्यायिक संस्था की तख्त पर बैठकर 'न्याय' की बात करते हैं। समग्रता में यह भारतीय राज्य द्वारा अपने नागरिक की हत्या है।
फादर स्टेन स्वामी मानवतावादी दृष्टिकोण रखते थे। वह आदिवासियों के कल्याण के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे। फादर स्टेन 1975 से 1986 तक बेंगलुरु के इंडियन सोश्ल इंस्टीट्यूट के निदेशक रहे। बाद में झारखंड आकार वह आदिवासी समुदायों के बीच उनके उत्थान के लिए काम करते रहे। वह आदिवासी क्षेत्रों में पूंजीवादी तत्वों द्वारा किये जा रहे गैरकानूनी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाते रहे। झारखंड सरकार द्वारा आदिवासियों को झूठे मुकदमों में फंसाकर गिरफ्तार करने की मुहिम के खिलाफ भी फादर स्टेन लगातार प्रयास करते रहे, जिसकी वजह से वह झारखंड सरकार के आँखों की किरकिरी बन गये।
भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार ने उसे षड्यंत्र के रूप में प्रचारित किया और बहुत से जनपक्षधर कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारियां की इसमें फादर स्टेन भी शामिल थे। अन्य गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की तरह फादर स्टेन का भी यही जुर्म था कि वह इस देश की हाशिए पर खड़ी शोषित उत्पीड़ित आबादी की आवाज बन उन पर हो रहे अत्याचारों की कहानी सुना रहे थे।
प्रगतिशींल महिला एकता केंद्र मानवीय सरोकारों से जुड़े फादर स्टेन स्वामी की भारतीय राज्य द्वारा की गई परोक्ष हत्या की निंदा करता है ।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी
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