सोवियत क्रांति के नेता व्लादीमिर इल्यिच लेनिन ने कहा था कि महिलाओं की भागीदारी के बिना कोई भी क्रांति अधूरी है। इतिहास ने इस बात को प्रमाणिक किया है कि जिस भी आंदोलन में महिलाओं ने भागीदारी की है उसके तेवर ज्यादा जुझारू और दूरगामी रहे हैं। और लेनिन की यह बात एक बार फिर प्रमाणित हुई राजस्थान के किसान आंदोलन में।
1 सितंबर 2017 से राजस्थान के सीकर में किसानों का एक बड़ा आंदोलन शुरु हुआ। 13 दिन चले इस आंदोलन में करीब 30 से 40 हजारों किसानों ने भागीदारी की। किसानों द्वारा कर्जा माफ़ी सहित 11 मांगों को लेकर किया जा रहा आंदोलन दिन-ब-दिन और ज्यादा तेज होता गया। राजस्थान के लाखों किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं और प्रशासन से सीधी मुठभेड़ लेने को तैयार थे । 12 सितंबर को वार्ता की उम्मीदें विफल होने के बाद अखिल भारतीय किसान महासभा ने पूरे राज्य में 13 सितम्बर को फिर से चक्का जाम करने का आह्वान किया । किसान पूरे प्रदेश में रोड जाम कर बैठ गए। जयपुर-सीकर हाइवे 10 सितंबर से जाम कर दिया गया। बाकी संपर्क मार्ग जाम कर दिए गए। किंतु किसानों की इस व्यापक और उग्र भागीदारी के बावजूद 13 सितंबर की रात आंदोलन के नेतृत्व ने सरकार के साथ समझौता कर लिया। सरकार ने वायदा किया कि वह किसानों के 50,000 तक के कर्जे माफ करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। समर्थन मूल्य बढ़ाए जाने के लिए भी समिति के गठन का आश्वासन दिया गया। गाय के बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटाने की मांग पर भी विचार करने का वायदा किया गया। इस तरह से सरकार की तरफ से किसी भी तरह की ठोस कार्रवाई के बिना मात्र वायदों पर यह ऐतिहासिक आंदोलन समाप्त कर दिया गया। हर बार की तरह इस बार भी पूरे जोश और आर-पार की लड़ाई के लिए संकल्पबद्ध किसानों के साथ राजनीतिकि अगुवाकारों ने धोखा किया और बिना किसी परिणाम के मात्र जुमलेबाजी से आंदोलन वापस ले लिया गया।
सीकर के किसान आंदोलन का वही हश्र हुआ जो इस व्यवस्था के भीतर राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व में चल रहे आंदोलनों का होता है किंतु जब इस आंदोलन की प्रक्रिया को देखते हैं तो पाते हैं कि यह आदोंलन महिलाओं की भागीदारी के संदर्भों में एक शानदार आंदोलन रहा।

सड़कों पर चक्का जाम को सफल करा रही महिलाएं हर आने-जाने वाले से यही बोल रहीं थीं कि जब तक सरकार कर्जा माफ नहीं करती, हम नहीं उठेंगे।
इन सभी बातों में यह ध्यान देने वाली बात है कि राजस्थान का यह शेखावटी इलाका पूरी तरह से सामंती इलाका है। बिना पर्दे के महिलाएं घरों से बाहर नहीं निकल सकतीं। सामाजिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी वृद्ध होने के बाद ही होती है। युवा महिलाएं घरों की चाहरदीवारी के अंदर सीमित रहीं है। घोर पितृसत्तामक इस समाज में लड़कियां 14-18 साल के बीच ही ब्याह दी जाती हैं जिसके बाद उनका पूरा जीवन घर के अंदर परिवार की जिम्मेदारियां संभालते ही बीत जाता है। ऐसे सामंती और पितृसत्तामक समाज के बीच रहने वाली इन महिलाओं की किसान आंदोलन में यह व्यापक भागीदारी लेनिन की इस बात को फिर पुष्ट कर देती है कि कोई भी क्रांति महिलाओं के बिना संभव नहीं है।
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