पीडि़त महिला को न्याय दिलाने के लिए प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र व महिला समाख्या ने किया आन्दोलन
रामनगर में महिला गीता चौधरी को न्याय दिलाने के लिए प्रगतिशील
महिला एकता केन्द्र व महिला समाख्या द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन को जारी रखते हुए दिनांक 26 अक्टूबर को रामनगर में गीता चौधरी को न्याय दिलाने के लिए प्रगतिशील
महिला एकता केन्द्र व महिला समाख्या के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया। ज्ञात हो कि
गीता चौधरी का अपने पति से तलाक के संबंध में मुकदमा चल रहा था। उसने अपने
मुकदमे के संबंध में उसने एक वकील नियुक्ति किया था। वह वकील उसके बाप की
उम्र से भी बड़ा था। जैसा कि समाज में तलाकशुदा, परित्यक्ता, अकेली महिला
के साथ होता है वैसा ही गीता चैधरी के साथ भी हुआ। उस वकील ने
गीता चौधरी ने पहले तो उसको अश्लील प्रेम पत्र लिखे और बाद में उसको होटल
में चलने के लिए दबाव डालने लगा। उसने अपने घर में भी उसे अकेले बुलाकर
उसका यौन शोषण करना चाहा। गीता पहले तो उसकी इन नापाक हरकतों का सहन करती
रही बाद में उसने इसकी शिकायत उसकी पत्नी से की तो समाज में मौजूद पुरुष
प्रधान मानसिकता के चलते उसकी पत्नी ने गीता पर ही उसके पति को गलत ठहराने
का आरोप जड़ दिये। इससे वकील के हौंसले बढ़ गये। फिर एक दिन उस वकील ने
वेणु नेत्र संस्थान में इलाज कराने गयी गीता चौधरी का हाथ पकड़कर उसको कार
में खींचने की कोशिश की। गीता बड़ी मुश्किल से हाथ छुड़ाकर वहां से भागी।
अब गीता ने उसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करने की ठानी। इस सिलसिले में वह प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की कार्यकर्ताओं से मिली। उन्होंने गीता को साथ लेकर थाने में रिपोर्ट लिखा दी। एक गरीब मेहनतकश महिला के द्वारा उसकी नापाक हरकतों का विरोध करने पर वकील बौखला गया। उसने गीता को हौंसले को तोड़ने के लिए उसकी नौकरी छुड़वा दी। और उसके बाद वह जहां कहीं भी नौकरी करने गयी तो उसने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उसकी वहां से नौकरी छुड़ा दी। चूंकि यह मामला केवल गीता का ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ होने वाली एक आम समस्या है। इसलिए इस मामले को उठाते हुए महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न व अन्य प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ प्र.म.ए.के. व महिला समाख्या ने 26 अक्टूबर को रामनगर के मुख्य मार्गों से होते हुए एक जुलूस निकाला तथा एसडीएम कोर्ट पर एक सभा की।
जुलूस के दौरान ‘आरोपी वकील सुरेश चन्द्र गुप्ता का लाइसेंस रद्द करो’, ‘गीता चौधरी को न्याय दो’ आदि नारे लगाते हुए महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का विरोध किया गया। जुलूस में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, ठेका मजदूर कल्याण समिति मोहान, भोजन माता संगठन, महिला जागृति संघ आदि मजदूर व सामाजिक संगठन तथा सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
सभा में बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज कानून की किताबों में महिलाओं के लिए ढे़र सारे अधिकार मौजूद हैं परन्तु व्यवहार में उन पर अमल नहीं होता है। महिलायें अपनी बदनामी के डर से अपना मुंह बन्द रखना ही बेहतर समझती हैं। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में यदि आरोपित व्यक्ति गरीब है तब तो आरोपी व्यक्ति को सजा मिल भी जाती है। परन्तु जब आरोपित व्यक्ति अमीर होता है तो महिला को न्याय मिल पाना मुश्किल हो जाता है। समाज में महिला को ही कुल्टा, कुलक्षिणी कहकर बदनाम किया जाता है और पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते आरोपित व्यक्ति चैन से घूमता है और महिला को अपनी पहचान छुपाकर घूमना पड़ता है।
गीता चौधरी के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब गीता चौधरी अपने पति से तलाक के मुकदमे के संबंध में वकील से मिली तो बाप की उम्र के उस वकील ने गीता चौधरी की बेबसी, लाचारी व कमजोरी का फायदा उठाना चाहा लेकिन गीता चौधरी एक खुद्दार लड़की निकली और उसने वकील की नापाक हरकतों का विरोध किया। बाद में वकील की हरकतों से तंग आकर उसने उसके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी और फिर वकील ने उसे तोड़ने के लिए अपने रसूख का इस्तेमाल किया। वह जहां भी नौकरी करने जाती तो आरोपी वकील अपने सामाजिक संबंधों का फायदा उठाकर उसे नौकरी से निकाल देता। कोर्ट में गवाही के दौरान 15-20 वकील उस लड़की के साथ जिरह करके उस लड़की को तोड़ने की कोशिश करते रहे परन्तु गीता चौधरी ने हार नहीं मानी।
महेश जोशी ने अपने भाषण में कहा कि वह गीता चौधरी के साहस को सलाम करते हैं जो आज दृढ़तापूर्वक अपनी लड़ाई को लड़ रही है। उसके इस साहस से अन्य महिलायें भी अपनी लड़ाई लड़ने आगे आयेंगी।
सभा में एक अन्य वक्ता ने कहा कि ऐसे रसूखदार व्यक्तियों का जो समाज में अपराध करके अपने पैसे के दम पर कानून को खरीदकर छूट जाते हैं ऐसे व्यक्तियों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए ताकि दूसरे लोग भी गलत काम करने से सौ बार पहले सोचें। सभा के बाद एक ज्ञापन जिलाधिकारी नैनीताल को सौंपा गया तथा जिसमें महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित तीन मांगें रखी गयी है-
1. सुरेश चन्द्र गुप्ता को कड़ी सजा दी जाए व उसका लाइसेंन्स रद्द किया जाए।
2. न्यायालयों में महिलाओं से संबंधित मामलों के मुकदमों को लड़ने के लिए महिला वकीलों का एक पैनल गठित किया जाए तथा महिला वकीलों की फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया जाए।
3. न्यायालय द्वारा आदेशित गुजारा भत्ता की राशि के भुगतान करवाए जाने की गारंटी सरकार द्वारा सुनिश्चित की जाए। इन मांगों के साथ सभा समाप्त की गयी।
अब गीता ने उसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करने की ठानी। इस सिलसिले में वह प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की कार्यकर्ताओं से मिली। उन्होंने गीता को साथ लेकर थाने में रिपोर्ट लिखा दी। एक गरीब मेहनतकश महिला के द्वारा उसकी नापाक हरकतों का विरोध करने पर वकील बौखला गया। उसने गीता को हौंसले को तोड़ने के लिए उसकी नौकरी छुड़वा दी। और उसके बाद वह जहां कहीं भी नौकरी करने गयी तो उसने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उसकी वहां से नौकरी छुड़ा दी। चूंकि यह मामला केवल गीता का ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ होने वाली एक आम समस्या है। इसलिए इस मामले को उठाते हुए महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न व अन्य प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ प्र.म.ए.के. व महिला समाख्या ने 26 अक्टूबर को रामनगर के मुख्य मार्गों से होते हुए एक जुलूस निकाला तथा एसडीएम कोर्ट पर एक सभा की।
जुलूस के दौरान ‘आरोपी वकील सुरेश चन्द्र गुप्ता का लाइसेंस रद्द करो’, ‘गीता चौधरी को न्याय दो’ आदि नारे लगाते हुए महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा का विरोध किया गया। जुलूस में इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, ठेका मजदूर कल्याण समिति मोहान, भोजन माता संगठन, महिला जागृति संघ आदि मजदूर व सामाजिक संगठन तथा सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
सभा में बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज कानून की किताबों में महिलाओं के लिए ढे़र सारे अधिकार मौजूद हैं परन्तु व्यवहार में उन पर अमल नहीं होता है। महिलायें अपनी बदनामी के डर से अपना मुंह बन्द रखना ही बेहतर समझती हैं। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में यदि आरोपित व्यक्ति गरीब है तब तो आरोपी व्यक्ति को सजा मिल भी जाती है। परन्तु जब आरोपित व्यक्ति अमीर होता है तो महिला को न्याय मिल पाना मुश्किल हो जाता है। समाज में महिला को ही कुल्टा, कुलक्षिणी कहकर बदनाम किया जाता है और पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते आरोपित व्यक्ति चैन से घूमता है और महिला को अपनी पहचान छुपाकर घूमना पड़ता है।
गीता चौधरी के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब गीता चौधरी अपने पति से तलाक के मुकदमे के संबंध में वकील से मिली तो बाप की उम्र के उस वकील ने गीता चौधरी की बेबसी, लाचारी व कमजोरी का फायदा उठाना चाहा लेकिन गीता चौधरी एक खुद्दार लड़की निकली और उसने वकील की नापाक हरकतों का विरोध किया। बाद में वकील की हरकतों से तंग आकर उसने उसके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी और फिर वकील ने उसे तोड़ने के लिए अपने रसूख का इस्तेमाल किया। वह जहां भी नौकरी करने जाती तो आरोपी वकील अपने सामाजिक संबंधों का फायदा उठाकर उसे नौकरी से निकाल देता। कोर्ट में गवाही के दौरान 15-20 वकील उस लड़की के साथ जिरह करके उस लड़की को तोड़ने की कोशिश करते रहे परन्तु गीता चौधरी ने हार नहीं मानी।
महेश जोशी ने अपने भाषण में कहा कि वह गीता चौधरी के साहस को सलाम करते हैं जो आज दृढ़तापूर्वक अपनी लड़ाई को लड़ रही है। उसके इस साहस से अन्य महिलायें भी अपनी लड़ाई लड़ने आगे आयेंगी।
सभा में एक अन्य वक्ता ने कहा कि ऐसे रसूखदार व्यक्तियों का जो समाज में अपराध करके अपने पैसे के दम पर कानून को खरीदकर छूट जाते हैं ऐसे व्यक्तियों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए ताकि दूसरे लोग भी गलत काम करने से सौ बार पहले सोचें। सभा के बाद एक ज्ञापन जिलाधिकारी नैनीताल को सौंपा गया तथा जिसमें महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित तीन मांगें रखी गयी है-
1. सुरेश चन्द्र गुप्ता को कड़ी सजा दी जाए व उसका लाइसेंन्स रद्द किया जाए।
2. न्यायालयों में महिलाओं से संबंधित मामलों के मुकदमों को लड़ने के लिए महिला वकीलों का एक पैनल गठित किया जाए तथा महिला वकीलों की फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया जाए।
3. न्यायालय द्वारा आदेशित गुजारा भत्ता की राशि के भुगतान करवाए जाने की गारंटी सरकार द्वारा सुनिश्चित की जाए। इन मांगों के साथ सभा समाप्त की गयी।
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