November 27, 2023

बढ़ती महिला हिंसा के खिलाफ जंतर-मंतर पर आक्रोश प्रदर्शन

समाज में बढ़ती महिला हिंसा और उसके प्रति शासकों की उदासीनता के खिलाफ आम मजदूर मेहनतकश महिलाओं को आवाज को बुलंद करने की अपनी मुहिम में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र ने देश की राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर 26 नवंबर को एक आक्रोश प्रदर्शन किया जिसमे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश हरियाणा था दिल्ली से सैकड़ों महिलाओं तथा विभिन्न जन संगठनों ने भागीदारी की। 
कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की महासचिव रजनी जोशी और कार्यकारिणी सदस्य ऋचा ने किया।
जंतर-मंतर पर आयोजित सभा में शुरुआती वक्तव्य रखते हुए संगठन की उपाध्यक्ष ने कहा कि 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। हमारे देश की सरकार ने भी महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया है। लेकिन महिला हिंसा खत्म होने के बजाय बढ़ती जा रही है। ओपचारिक तौर पर घोषणा करने मात्र से महिला हिंसा को खत्म नहीं किया जा सकता है। इसको सीधे तौर पर देखा जा सकता है कि देश में हर साल महिला हिंसा के आंकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। बुजुर्ग महिलाओं से लेकर छोटी बच्चियों तक के लिए भारतीय समाज असुरक्षित बनता जा रहा है। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, छेड़छाड़ आदि तरीकों से महिलाएं निरंतर हिंसा की मार सह रही हैं।*बढ़ती महिला हिंसा के खिलाफ जंतर-मंतर पर आक्रोश प्रदर्शन*
महिला हिंसा की घटनाएं न केवल सार्वजनिक स्थलों पर हो रही है बल्कि घरों की चारदीवारी में, कार्यस्थलों पर, जातीय दंगों के दौरान और यहां तक की खुद राज्य सत्ता द्वारा भी महिलाओं के साथ हिंसा, यौन हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रही है।
सभा में वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में कहा कि बी एच यू जैसे कॉलेज परिसर में आई आई टी की छात्रा के साथ छेड़ छाड़ व सामूहिक बलात्कार जैसी जघन्य घटना को अंजाम दिया गया। हाल ही मे हुए मणिपुर दंगों में दो कुकी जाति की महिलाओं को नग्न कर सड़क पर दौड़ाया गया। गुजरात दंगों के दौरान बिल्किस बानो के साथ जैसी तमाम घटनाएं घटी जिनमें मुस्लिम समुदाय के घरों में घुस कर मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया उन महिलाओं की आंखो के सामने ही उनके छोटे छोटे बच्चों को पत्थर पर पटक पटक कर मार दिया गया। बिल्किस बानो ने काफी संघर्ष किया तब जाकर उसके 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा मिली थी लेकिन 15 अगस्त 2022 में उन 11 अपराधियों को भाजपा सरकार ने रिहा कर दिया। इससे यह साबित होता है कि भाजपा सरकार महिलाओं के साथ अपराध करने वालो को बचाने का काम कर रही है।
सभा में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भाजपा सरकार अपने फासीवादी ऐजडे के तहत आम मेहनतकश जनता के जनवादी अधिकारों को सीमित करती जा रही है। उसी में वह महिलाओं के जनवादी अधिकारों को भी खत्म कर 150 साल पुरानी स्थिति में पहुंचा देना चाहते है। भाजपा सरकार एक तरफ तो महिला सशक्तिकरण की बड़ी बड़ी बाते करती है लेकिन वहीं दूसरी तरफ महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले बृजभूषण शरण को सजा देने के बजाय उसको बचाने का काम कर रही है। इसी जंतर मंतर पर देश दुनिया में नाम कमाने वाली महिला पहलवानों पर लाठी चार्ज करने, उनके धरने को खत्म करने का काम किया। जब देश का नाम ऊंचा करने वाली महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है तो सोच सकते हैं कि आम मजदूर महिला को इस शासन में कैसे न्याय मिल पायेगा? 
महिलाओं को आगे बढ़ाने के, उनको आत्म निर्भर बनाने की बड़ी बड़ी बाते करती है लेकिन स्कीम वर्कर (भोजनमाता, आंगनबाड़ी, आशा वर्कर आदि) को न्यूनतम मानदेय देकर उनका आर्थिक शोषण के साथ-साथ मानसिक उत्पीड़न भी किया जा रहा है।
सभा के अंतिम वक्ता के तौर पर प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की अध्यक्ष बिन्दु गुप्ता ने कहा कि महिला हिंसा को खत्म करने के लिए उसके कारणो को खत्म करने की जरूरत है। यानी घरेलू दासता, पुरानी सामंती मूल्य मान्यताओं की दासता और उजरती दासता से जब तक महिलाओं को मुक्त नही किया जाएगा तब तक महिला हिंसा को भी खत्म नहीं किया जा सकता है। 
साथी ने आहवान करते हुए कहा कि समाज के मजदूर मेहनतकशों को एकजुट होकर इस पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा कर एक नए समाज समाजवाद के लिए संघर्ष को तेज करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र, बेलसोनिका मजदूर यूनियन (गुड़गांव), क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, सीमेंस वर्कर्स यूनियन, एवरेडी मजदूर यूनियन (हरिद्वार), इंटरार्क मजदूर संगठन (रुद्रपुर पुर), इफ्टू (सर्वहारा), जन संघर्ष मंच (हरियाणा), गार्गी महिला टीम, मजदूर सहयोग केंद्र विमुक्तता स्त्री मुक्ति संगठन, एसोसीएशन फौर डैमोक्रेटिक राइट्स, मजदूर सहयोग केंद्र, संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन आदि संगठनों के साथियों ने अपने वक्तव्य रखे और कार्यक्रम का समर्थन किया।

November 6, 2023

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस में छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों, आवाज उठायें!

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस में IIT BHU में सेकेंड ईयर की एक छात्रा के यौन उत्पीड़न के विरोध में बी0एच0यू0 के हजारों छात्र-छात्राएं कक्षाएं छोड़कर धरने पर बैठे हैं। 1 नवंबर 2023 को देर रात  प्रॉक्टोरियल बोर्ड के बूथ से कुछ ही दूरी पर जहां बी.एच.यू. के सुरक्षाकर्मी कैम्पस व छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के लिये तैनात रहते हैं, वहां पर चार शोहदों ने IIT BHU में सेकेंड ईयर की एक छात्रा के साथ दुव्यवहार किया। मीडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुछ युवकों ने छात्रा के साथ मारपीट की, जबरन उसके कपड़े उतरवाए और तस्वीरें खींचीं। इस मामले में IPC की धारा 354, 506 की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। आई.आई.टी. डायरेक्टर द्वारा छात्रों से बात नहीं किया जाने के कारण प्रदर्शनकारी छात्र-छात्रायें दिन भर प्रदर्शन करते रहे। जिसके बाद बी.एच.यू. कैम्पस में बी.एच.यू. डायरेक्टर के आफिस में डायरेक्टर, पुलिस अधिकारी व अन्य अधिकारियों व जिम्मेदार लोगों के बीच बैठक हुई और इस दौरान भी छात्र अपनी मांगों को मनवाने के लिये बी.एच.यू. डायरेक्टर के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन कर डटे रहे। बैठक के बाद प्रदर्शनकारी छात्रों को उनकी सभी मांगों को माने जाने का आश्वासन दिये जाने के बाद प्रदर्शनकारी छात्रों ने बृहस्पतिवार की रात 11 बजे धरना खत्म कर दिया।  

बी.एच.यू. में ही पिछले महीने बीएचयू स्थित आईआईटी की दो शोध छात्राओं के साथ उनके हॉस्टल के पास ही चार युवकों ने छेड़खानी और बदसलूकी की थी। आईआईटी की एक शोध छात्रा देर रात अपनी एक सहपाठी के साथ हॉस्टल के समीप मौजूद थी। इसी दौरान चारपहिया वाहन सवार चार मनचले दुव्र्यवहार करने लगे। सभी शराब के नशे में धुत थे। लेकिन अपराधियों को पकड़ने, गिरफ्तार करने के स्थान पर हर बार छात्राओं पर और ज्यादा बंदिशें लगा दी जाती हैं।

आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं का कहना है कि बीएचयू में साल 2017 में हुई छेड़खानी के बाद अबकी बार हुई वारदात बेहद वीभत्स है। बी.एच.यू. कैंपस में आए दिन घटनाएं होती रहती हैं, छात्र धरना प्रदर्शन करते हैं प्रशासन आश्वासन देता है और धरना-प्रदर्शन खत्म हो जाते हैं। लेकिन शर्मनाक बात यह है कि इतना सब होने के बाद भी अभी तक यहां छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं किये गये हैं। 

यह वही उत्तर प्रदेश है जहां 2022 में यू0पी0 विधान सभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह कह रहे थे कि उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए इतना सुरक्षित हो गया है कि वह रात में 12 बजे भी गहने पहन कर अकेले बाहर जा सकती हैं। जबकि हकीकत हम देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के धार्मिक नगरी में स्थित छात्राओं को आये दिन छेड़छाड़ व हिंसा का शिकार होना पड़ता है।

पतित पूंजीवादी-साम्राज्यवादी उपभोक्तावादी नीति के प्रभाव में अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिये रात-दिन महिलाओं के सम्मान को गिराने वाली, महिलाओं का अश्लील चित्रण कर उनको उपभोग की वस्तु के तौर पर प्रदर्शित करने वाली सोच को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों व अश्लील फिल्मों को रोके बिना इन अपराधों में जरा भी कमी नहीं लायी जा सकती। 

इन घटनाओं के कारण ही बहुत से परिवार अपनी बहनों-बेटियों को उच्च शिक्षा के लिये घरों से दूर उच्च शिक्षा के लिये भेजने से कतराते हैं। लड़कियां इस तरह घटनाओं को घरों में नहीं बतातीं। इस डर से कि यदि वे अपने साथ घटी इन घटनाओं को घर में बतायेंगी तो उनकी पढ़ाई बीच में छुड़ाई जा सकती है। ऐसे में ये घटनायें छात्रों की आधी आबादी लड़कियों को उच्च शिक्षा के अधिकार से वंचित रखने में मदद करती हैं।

 लेकिन उन लोगों से छात्राओं की सुरक्षा के इंतजाम करने की उम्मीद करना बेमानी है, जिसके दर्जनों सांसद-विधायक महिलाओं से छेड़छाड़-बलात्कार के आरोपी हैं। कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानन्द, बृज भूषण शरण सिंह तो इसके मात्र प्रतिनिधिक उदाहरण मात्र हैं।  

 प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, BHU में छात्रा के साथ हुई यौन हिंसा का पुरजोर विरोध करता है। और मांग करता है कि परिसरों में छात्राओं के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित किया जाये। साथ ही देशभर के छात्र-छात्राओं व न्यायप्रिय लोगों से छात्राओं-महिलाओं के साथ हो रही हिंसा, यौन उत्पीड़न के विरोध में एकजुट होकर आवाज उठाने का आह्वान करता है।

 हम मांग करते हैंः- 

·         IIT BHU के निदेशक व लंका थाने के SHO इस्तीफा दो।

·         सभी संस्थानों में GSCASH की स्थापना करो।

·         छात्राओं-महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करो।

·         महिला विरोधी अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति पर रोक लगाओ।

 

 प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी

 

 

 

 

 

  

September 29, 2023

नारी शक्ति वंदन अधिनियमः खोदा पहाड़ निकली चुहिया

 


नई संसद के पहले दिन 19 सितम्बर को मोदी सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक बिल नारी शक्ति वंदन बिल (संविधान में 128 वें संशोधन के द्वारा) पेश किया। यह बिल लोक सभा से पास होने के बाद राज्य सभा में भेजा गया और वहां पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अधिनियम में बदल जायेगा। इस अधिनियम के बाद लोक सभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू हो जायेगा। अभी लोकसभा के अंदर महिलाओं की उपस्थिति 15 प्रतिशत है।


हालाँकि लोक सभा में 2 सांसदों ने इसके विरोध में मतदान किया और इसके अलावा सभी ने इस बिल का समर्थन किया साथ ही इसमें ओ बी सी महिलाओं के आरक्षण की मांग को लेकर विपक्षी पार्टियों ने आवाज़ उठायी। फिलहाल इसमें अभी एस सी और एस टी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

इस बिल की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं -

1. ‘नारी शक्ति वंदन बिल’ के तहत प्रावधान है कि महिला आरक्षण लागू होने के बाद अगले 15 साल तक लागू रहेगा, लेकिन इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन अभ्यास के बाद रोटेट किया जाएगा।

2. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और सीधे चुनाव से भरी जाएंगी। साथ ही, आरक्षण राज्यसभा या राज्य विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।

3. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की एक-तिहाई सीटें इन्हीं जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। महिलाओं के लिए आरक्षित कुल एक तिहाई सीटों में से एस सी-एस टी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर शेष सीटों पर किसी भी जाति की महिला चुनाव लड़ सकेगी। 

4. अधिनियम के प्रावधान ‘संविधान (128 वां संशोधन) अधिनियम 2023 के शुरू होने के बाद ली गई पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होने’ के बाद निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या पुनर्निर्धारण के बाद लागू होंगे।

5. लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 महिला लोकसभा सदस्यों से बढ़कर 181 हो जाएगी यानी कुल 543 लोकसभा सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। जिनमें 43 सीटें एस सी-एस टी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र शुरु होने तक इस बात पर रहस्य बनाये रखा कि संसद के विशेष सत्र में क्या होने वाला है और जब संसद में नारी शक्ति वंदन बिल पेश हुआ तो ऐसा लगा कि अब लोक सभा और विधान सभाओं में शीघ्र ही महिलाओं की मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ हो जाएगी और भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण होने के लिए बस इसी बिल की कमी थी। लेकिन धीरे धीरे परतें हटने लगीं और एक बार फिर मोदी सरकार के बारे में यह सच साबित हुआ कि वे जादूगर की तरह एक खेल दिखाते हैं और जब तक जनता को यह समझ में आता है कि वह ठगी गयी है तब तक वे अपना झोला उठाकर चलते बनते हैं एक और नया खेल दिखाने के लिए। 

दरअसल जिस बिल के जरिये वे महिलाओं को संसद और विधान सभा के अंदर 33 प्रतिशत आरक्षण की बात कर रहे थे वह कब तक लागू होगा इसके बारे में अभी कोई स्पष्ट रूप रेखा नहीं है। इस बिल को लागू होने के लिए पहले जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन। इसके बाद ही यह बिल लागू होगा। और जनगणना कब होगी, यह 2026 के बाद होगी। जनगणना की कोई निश्चित तिथि अभी घोषित नहीं है। कम से कम यह तो तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने वाला नहीं है। 

देश की आबादी में 50 प्रतिशत की आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर मोदी कह रहे हैं कि इस महान काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का मोदी का यह मर्ज़ पुराना है। हर काम की शुरुवात वे ऐसे करते हैं मानो इससे पहले किसी ने यह काम किया ही न हो। 

दरअसल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल 1996 में पहली बार पेश किया गया था। उसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में भी इसे पेश किया गया और अंतिम बार इसे 2010 में यू पी ए सरकार के समय राज्य सभा से पास कर लोक सभा में भेजा गया था। उसके बाद भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी। अगर मोदी चाहते तो उसी समय यह बिल लोक सभा से पास हो जाता लेकिन मोदी को अपने 10 साल शासन के अंतिम समय में इस बिल की याद आ रही है और अभी भी यह कब लागू होगा यह मालूम नहीं है।

इस बिल के द्वारा किन महिलाओं का सशक्तिकरण होगा यह साफ है। यह दरअसल शासक वर्ग की महिलाओं का ही सशक्तीकरण होगा। महिला आरक्षण बिल पर ज्यादातर राजनैतिक दलों की औपचारिक सहमति के बावजूद इसका लगभग 3 दशक तक लटकना दिखाता है कि शासक वर्ग अपने वर्ग की महिलाओं को भी लोक सभा और विधान सभाओं में आने देना नहीं चाहता रहा है (राज्य सभा और विधान परिषद में यह आरक्षण लागू नहीं होगा)। और 1996 से इस बिल को लटकाये हुए है। यह दरअसल भारतीय समाज के पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान होने को ही दिखाता है। पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत जिला प्रमुख, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान के रूप में जो महिलाएं चुनी जाती हैं उनकी जगह पर उनके पति ही काम संभालते दिखाई देते हैं। कुछ जगह पर ही महिलाएं वास्तव में अपनी स्वतंत्र पहलकदमी लेती दिखाई पड़ती हैं।

अगर भारतीय समाज में महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो सबसे पहले पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान समाज को बदलने की जरूरत है। क्या मोदी सरकार ऐसा करेगी।

नहीं! मोदी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। इसकी एक वजह खुद इसका आर एस एस जैसे संगठन से नाभिनालबद्ध होना है। आर एस एस अपनी मूल विचारधारा में महिला विरोधी संगठन है। यह संगठन हिटलर की तरह महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है और महिलाओं को केवल रसोई में झोंक देना चाहता है। खुद आर एस एस में कोई महिला पदाधिकारी केंद्रीय स्तर पर नहीं है। संघ प्रमुख पुरुष ही होता है। यह मनुस्मृति पर आधारित समाज बनाना चाहता है जिसमें महिलाओं का स्थान पशुओं के साथ रखा गया है। अगर आज संघ या भाजपा महिलाओं के सशक्तीकरण की बात करती हैं तो इसकी वजह उनकी इस मूल विचारधारा में परिवर्तन होना नहीं है वरन महिलाओं की समाज में उत्पादन या अन्य क्षेत्रों में बढ़ती भागीदारी है। वरना तो संघ और भाजपा नेता कभी महिलाओं से दस-दस बच्चे पैदा करने की बात करते हैं और उनके साथ होने वाली यौन हिंसा के लिए उनके चाल चलन को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले में अगर भाजपा के लोग लिप्त पाए जा रहे हैं यह दरअसल उनके महिला विरोधी रुख की वजह से भी है।

मोदी ने नई संसद में पहले दिन ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बिल पेश तो किया पर उन्हें संसद भवन के उद्घाटन के समय महिला पहलवानों के साथ उनकी सरकार का व्यवहार याद नहीं आया। ये महिला पहलवान कई महीनों से इस बात के लिए प्रदर्शन कर रही थीं कि उनके साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाले भाजपा सांसद ब्रज भूषण के खिलाफ कार्यवाही की जाये लेकिन मोदी सरकार ने ब्रजभूषण पर कोई कार्यवाही नहीं की उलटे उन महिला पहलवानों का प्रदर्शन भी जोर जबरदस्ती से ख़त्म करवा दिया।

इसी तरह जब वे महिला सशक्तीकरण की अच्छी-अच्छी बातें कर रहे थे तो मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की घटना याद आ गयी। बिल्कीस बानो की भी याद आयी और हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार दलित युवती के शव को किस तरह रात में जबरदस्ती जला दिया गया था यह घटना भी कोई नहीं भूल सकता। कठुआ की वह 8 साल की बच्ची आसिफा की भी याद आयी जिसके बलात्कारियों को बचाने के लिए भाजपा के मंत्री तिरंगा लेकर सड़क पर उतर पड़े थे। 

इसके अलावा मोदी सरकार ने महिला सशक्तीकरण के नाम पर 4 श्रम संहिताओं में महिलाओं को रात की पाली में काम करने की छूट देने का प्रावधान पहले ही कर चुकी है। इस प्रावधान के द्वारा मोदी ने महिलाओं के सस्ते श्रम को पूंजीपतियों को रात में भी लूटने का अधिकार दे दिया है। 

क्या मोदी का नारी शक्ति वंदन अधिनियम महिलाओं का सशक्तीकरण करेगा? इसे हम अभी की महिला सांसदों या विधायकों के व्यवहार से समझ सकते हैं। अभी संसद में जो महिला सांसद मौजूद हैं वे किसी भी पार्टी से हों लेकिन वे कभी महिलाओं के साथ हो रही घरेलू या यौन हिंसा के मामलों को लेकर सड़क पर नहीं उतरतीं। वे मज़दूर महिलाओं के लिए रात की पाली में काम करवाने वाले कानून के खिलाफ नहीं बोलतीं। वे कोरोना काल में हज़ारों किलोमीटर पैदल चलती और सड़कों पर बच्चे पैदा करती मेहनतकश महिलाओं के लिए आवाज़ नहीं उठातीं। वे लगातार देश के अंदर बढ़ती महंगाई से परेशान महिलाओं के लिए कोई राहत भरे कदम नहीं उठातीं। 

कुल मिलाकर नारी शक्ति वंदन अधिनियम अगर लागू भी हो जाता है तो इससे केवल संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या ही बढ़ेगी और वो भी शासक वर्ग की, इससे आम महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं होने वाला। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए तो मेहनतकश महिलाओं को इस पितृसत्तात्मक और पूंजीवादी समाज के खिलाफ संघर्ष छेड़ना होगा। 

फिलहाल आनन-फानन में महिला आरक्षण बिल संसद से पास करना 2024 के चुनाव के लिए मोदी सरकार की बैचेनी का परिणाम है। आगामी चुनाव में मोदी खुद को महिलाओं के सबसे बड़े हितेषी के रूप में पेश करेंगे। यह इसके बावजूद कि 2024 के चुनाव में इस बिल के प्रावधानों की वजह से महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। संसद-विधान सभाओं में महिला आरक्षण लम्बे वक्त से महिला आंदोलन की मांग रही है। अब महिला वोटरों को लुभाने की खातिर ही सही महिला विरोधी संघ-भाजपा इस बिल को पारित करने को मजबूर हुई है। इस तरह एक मायने में यह महिला आंदोलन की जीत है। अब महिला आंदोलन को इस बिल को जल्द से जल्द व्यवहार में उतारने का संघर्ष करना होगा। 

यह संघर्ष इसलिए भी जरूरी है कि एक बार व्यवहार में लागू होने के बाद ही व्यापक महिलाओं को यह समझाना आसान होगा कि उनकी दुर्दशा की वजह किसी आरक्षण या अन्य क़ानूनी प्रावधानों की नामौजूदगी नहीं बल्कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था है। तभी मेहनतकश महिलाओं के सामने यह स्पष्ट होगा कि सांसद-मंत्री किसी महिला के बन जाने से उनके बदहाल जीवन में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला है। बुनियादी बदलाव के लिए इंक़लाब जरूरी है।

#नारी_शक्ति_वंदन_अधिनियम

साभारः 


नागरिक

बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण पर हुए हमले का विरोध करो

23 सितंबर 2023 को हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार चंडीगढ, हरियाणा सरकार ने ठेका मजदूर को सदस्यता देने के मामले को लेकर   शनिवार, को छुट्टी के दिन अपना कार्यालय खोल कर बेलसोनिका इम्पलाइज यूनियन के पंजीकरण को रद्द कर दिया है। जबकि इस मामले को लेकर यूनियन की सदस्यता से सस्पेंड ठेका वर्कर तथा यूनियन दोनों के अलग अलग केस में माननीय उच्च न्यायालय चंडीगढ से प्रबंधन व श्रम विभाग को नोटिस हो चुके हैं। ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार ने प्रबंधन के पत्र के बाद ही यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की थी और उच्च न्यायालय के नोटिस का जवाब देने की जगह पर यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया गया।

बेलसोनिका कंपनी में प्रबंधन व यूनियन के बीच पिछले ढाई साल से संघर्ष चला हुआ है। प्रबंधन बड़ी संख्या में स्थाई व पुराने ठेका श्रमिकों की छंटनी करना चाह रहा है जिस काम में यूनियन द्वारा चलाया जा रहा संघर्ष निरंतर आड़े आ रहा है। 

हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा उठाया गया यह कदम आज इस व्यवस्था की हकीकत बयां करती है जहां अब पूंजीपति वर्ग जनतंत्र के आवरण को हटाकर खुलकर मजदूर वर्ग के शोषण उत्पीड़न के लिए सामने आ चुका है और इसमें उसकी मदद कर रही है पूरी प्रशासन व्यवस्था। श्रम कानूनों में बदलाव कर लेबर कोड्स लाने से लेकर तमाम फैक्ट्री संस्थानों में छंटनी, तालाबंदी, इत्यादि मजदूर कार्रवाईयों में भारत के पूंजीपति वर्ग को राज्य द्वारा पूर्ण संरक्षण प्राप्त हो रहा है।

ऐसी मजदूर विरोधी हालातों में बेलसोनिका यूनियन अपने मजदूर साथियों के साथ लगातार प्रबंधन तथा श्रम विभाग की मनमानियों का जवाब दे रही है। बेलसोनिका यूनियन द्वारा लगातार चलाए जा रहे इस संघर्ष पर मारूती प्रबंधन के इशारे पर प्रशासन द्वारा यूनियन पंजीकरण को रद्द कर तीखा प्रहार किया गया है लेकिन यूनियन अभी भी मजदूरों के हितों के लिए चल रहे अपने संघर्ष को लगातार आगे बढ़ा रही है। 

बेलोसनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने के माध्यम से किया गया यह हमला सिर्फ बेलसोनिका यूनियन पर नहीं बल्कि मजदूर वर्ग पर हमला है । यह आने वाले उस खतरे की घंटी है जिसमें यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में मजदूर वर्ग द्वारा अपने शोषण-उत्पीड़न के लिए उठाई गई हर आवाज को यूं ही कुचला जाएगा। ऐसे में अब यह मजदूर आंदोलन का कार्यभार बनता है कि वह एकजुट हो एक दूसरे के संघर्षों में भागीदारी कर अपनी लडाई को मजबूत करें। 


प्रगतिशील महिला एकता केंद्र हरियाणा ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार द्वारा बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने की इस मजदूर विरोधी कृत्य की तीखी निंदा करता है तथा बेलसोनिका यूनियन के इस संघर्ष में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इंकलाब जिंदाबाद
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी
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