फिल्में समाज का आइना कही जाती हैं। एक दौर में सामूहिक एकता और सामूहिक संघर्ष पर आधारित फिल्में बनाई जाती थीं, क्योंकि वह दौर समाज में संघर्षो का दौर था और उस समय संघर्षों को स्थापित किया जाता था।
लेकिन अब जब से समाज में सांप्रदायिक/फासीवादी ताकतों ने ध्रुवीकरण शुरू किया है और ये ताकतें देश की सत्ता पर काबिज हुई हैं तब से वे समाज में अपने वोट बैंक के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज करने के लिए फिल्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित फिल्मों में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, गलत तथ्यों पर फिल्में बना रहे हैं। कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी जैसी फिल्मों के माध्यम से समाज में ध्रुवीकरण करने का काम कर रहे हैं।
इन दिनों 'द केरल स्टोरी' फिल्म चर्चा में है। द केरल स्टोरी का ट्रेलर पहले 2 नवंबर 2022 को यूट्यूब पर अपलोड किय गया था। ट्रेलर में दिखाया जा रहा था कि ये केरल की 32,000 महिलाओं की कहानी है। फिल्म निर्देशक सुदिप्तो सेन ने दावा किया था कि मैंगलुरु और केरल से वर्ष 2009 से लेकर अब तक 32,000 इसाई और हिंदू लड़कियों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन किया गया और उन्हें सीरिया और अफगानिस्तान जैसे इलाकों में आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों में भेजा गया है।
फिल्म के इस दावे को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और फिल्मकार अपने दावे की प्रमाणिकता साबित नहीं कर पाए। जिस वजह से उस ट्रेलर को यूट्यूब से हटाना पड़ा। दोबारा तथ्यों की छानबीन करने पर 32,000 का आंकड़ा घटकर 3 पर आ गया। कहां 32,000 और कहां 3 इतना बड़ा अंतर कैसे हो सकता है इस पर गंभीर सवाल खड़े होते है। इस तरह की फिल्म के माध्यम से फिल्मकार जानबूझकर इस तथ्यविहीन झूठ को फैला रहे थे। इसके माध्यम से समाज में मुसलमानो और इस्लामिक राज्यो के प्रति नफरत फैलाने का काम कर रही है।
अब अगर तथ्यों की बात करे कि किस धर्म के कितने लोगो ने अपना धर्म छोड़ा और दूसरे धर्म को अपनाया है। 2021 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार केरल में वर्ष 2020 में 222 लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ा है जबकि अन्य धर्मों से 241 लोगों ने हिंदू धर्म अपनाया है। 242 लोगों ने इसाई धर्म छोड़ा है जबकि अन्य धर्म के 119 लोगों ने इसाई धर्म अपनाया है। इसी प्रकार 40 लोगों ने इस्लाम धर्म छोड़ा है और अन्य धर्म के 144 लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया है।
इन तथ्यों को देखे तो सभी धर्मो के कुछ लोगो ने अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाया है। लेकिन समाज में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि बड़ी संख्या में हिंदुओं को जबरन धर्मांतरण करवाया जा रहा है। जबकि आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि सबसे ज्यादा लोगो ने हिंदू धर्म को अपनाया है। इससे स्पष्ट जाहिर होता है कि इस तरह के मुद्दे उठा कर केवल सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का काम किया जा रहा है।
फिल्म में दूसरा दावा किया गया है कि हजारों मासूम लड़कियों का केरल में योजनाबद्ध तरीके से गायब कर उनका धर्म-परिवर्तन कराया गया और उन्हें आतंकवाद की तरफ धकेल दिया गया।
भाजपा केरल को आतंकवाद के गढ़ के तौर पर दिखाने की कोशिश करती है और गुजरात को विकास के मॉडल की तरह पेश करती है। केरल के लिए पहले कहा गया कि 32,000 लड़कियां लापता हुई हैं और वे आईएसआईएस में भर्ती हो गई हैं और इसे इस तरह से पेश किया गया जैसेकि लापता होने वाली केरल की हर लड़की आईएसआईएस में भर्ती हो जाती है। ये तर्क एकदम बेतुका है। अगर लापता लड़कियों के आंकड़े की भी बात करें तो गुजरात राज्य में लड़कियों के गायब होने की संख्या बहुत अधिक है जहां भाजपा की सरकारें हैं और भाजपा गुजरात को एक मॉडल के तौर पर प्रस्तुत करती है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में 8,290 महिलाओं के लापता होने की सूचना है। गुजरात में 5 साल के दौरान 41,000 से अधिक महिलाओं के लापता होने के मामले सामने आए हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में 7,105, वर्ष 2017 में 7,712, वर्ष 2018 में 9,246 और वर्ष 2019 में 9,268 और वर्ष 2020 में 8,290 महिलाएं लापता हुई है।इतने सालों में तो किसी को गुजरात स्टोरी बनाने की याद नहीं आई। 5 सालो में इतनी ज्यादा गायब लड़कियों पर तो गुजरात स्टोरी बनाई ही जानी चाहिए।
दूसरी बात लड़कियों का लापता होना गंभीर विषय है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लापता होने वाली सभी लड़कियां आईएसआईएस में शामिल हो गई है।
जैसा कि आज समाज में बड़े स्तर पर मानव तस्करी हो रही है। हो सकता है कि उसमे हिस्से के बतौर ये लापता लड़कियां मानव तस्करी का शिकार हुई हो और उनको दूसरे राज्यों में ले जाकर बेच दिया जाता है। इसके अलावा एक जगह से लड़कियों को गायब कर दूसरी जगह पर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। इसके अलावा भी लड़कियों के गायब होने के और भी कारण होते हैं।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र का स्पष्ट मानना है कि 'द केरला स्टोरी' तथ्यों और सच्चाई से परे है और समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए भाजपा का पूरा तानाबाना (नेताओ से लेकर आई टी सेल तक) इस फिल्म का प्रचार कर रहे हैं। कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस फिल्म को अपने राज्यों में टैक्स फ्री कर दिया है। भाजपा के अनुसार ये फिल्म आतंकवादी गतिविधियों और उनकी साजिश को बेपर्दा करती है। इसी तरह कुछ समय पहले कश्मीर फाइल फिल्म का प्रचार भाजपा के द्वारा किया गया था। इस तरह की फिल्मों के माध्यम से हिन्दू फासीवादी समाज में धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यानी अपने नफरती उन्मादी विचारों को फैलाने के लिए फिल्मों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
ऐसी सांप्रदायिक उन्मादी विचारों को फैलाने वाली फिल्मों पर तत्काल प्रतिबंधित करना चाहिए।
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