June 27, 2021

26 जून 1975: घोषित आपातकाल से अघोषित आपातकाल तक

स्वतंत्र भारत के इतिहास में 26 जून 1975 को एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है। 25  जून 1975 की मध्य रात्रि को श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कैबिनेट की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल के आदेश पर हस्ताक्षर किए। 26 जून की सुबह श्रीमती इंदिरा गांधी ने रेडियो पर आपातकाल की घोषणा की इसके लिए संविधान की धारा 352 का इस्तेमाल किया गया। आपातकाल के लिए सरकार ने मीसा कानून Maintenance of Internal Security Act (MISA) का इस्तेमाल यह कहते हुए किया गया कि देश में बेरोजगारी व भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन भारत की आंतरिक शांति के लिए खतरा है। इस प्रकार श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने सरकार के विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए आपातकाल का इस्तेमाल किया। इसकी अहम वजह 12 जून 1975 को इलाहाबाद के हाईकोर्ट का श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया। उनके चुनाव को खारिज कर दिया गया। इंदिरा गांधी पर 6 साल तक चुनाव लड़ने तथा किसी तरह का पदभार ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी गई। संसद में वोट देने पर पाबंदी लगा दी। श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस आदेश को मानने के स्थान पर सुप्रीम कोर्ट में 24/6/1975 को अपील की और 25/6/1975 को रात को आपातकाल लगा दिया। इस आपातकाल में जनता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया।  सरकार विरोधी जुलूस, सभा तथा जुलूस-प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई ।सभी विरोधियों - जयप्रकाश नारायण, जार्ज फर्नाडीज, अटल बिहारी बाजपेई आदि को जेल में डाल दिया गया। प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई। बड़े पैमाने पर नसबंदी कार्यक्रम लागू किया गया। आपातकाल के विरोध में अधिकारों को वापस हासिल करने के लिए पूरे देश में जन आंदोलन खड़े हो गये।लगभग 2 साल बाद 21 मार्च 1977 को यह आपातकाल खत्म हुआ। यह वह दौर था जब जनता को, प्रेस को व अन्य संस्थाओं को यह पता था कि उनके अधिकार छीन लिए गए व उन्हें वापस हासिल करना है।
लेकिन आज हम देखते हैं कि जनता के पास उसके सभी मौलिक अधिकार मौजूद हैं लेकिन मेहनतकश जनता अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। कभी गौमांस के नाम पर, तो कभी धर्म के नाम पर, तो कभी संस्कृति के नाम पर उनके अधिकारों को छीनने, काँट छाँट कर उन्हें सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है। विरोध के हर स्वर को दबा दिया जा रहा है। असहमति के अधिकार का अपराधीकरण किया जा रहा है। जिहाद के नाम पर महिलाओं को उनके कानून सम्मत अधिकारों- प्रेम करने,अपनी इच्छा से विवाह करने के अधिकार पर डाका डाला जा रहा है। सरकार के नुमाइंदों द्वारा खाने पीने, पहनने ओढ़ने पर एक के बाद एक फ़तवे जारी किये जा रहे हैं। 
CAA-NRC कानून के ज़रिये अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया गया। जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म कर दिया गया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। मीडिया पर कोई घोषित सेंसरशिप नहीं है लेकिन खबरों को मैनेज किया जा रहा है। कृषि कानून, श्रम कानून, नई शिक्षा नीति जैसे एक के बाद एक जनविरोधी नीतियों को लागू किया जा रहा है। 
वास्तव में आज हम एक अघोषित आपातकाल में जी रहे हैं।ऐसा अघोषित आपातकाल जिसमें कहने के लिए हमारे पास सभी कानूनी अधिकार हैं लेकिन व्यवहार में हमसे हमारे अधिकार छीन लिये गए हैं। ऐसे में एक बार
फिर देश की सड़कों पर इस नारे को बुलंद करने की ज़रूरत है कि 

"सिंहासन खाली करो, जनता आती है! "

June 19, 2021

कॉमरेड शर्मिष्ठा को श्रद्धांजलि

अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन (AIRWO) की महा सचिव प्रिय कॉमरेड शर्मिष्ठा का दिनांक 13 जून 2021 को covid 19 व अन्य बीमारियों से जूझते हुए निधन हो गया। वे महिला मुक्ति के मोर्चे पर लम्बे समय से काम कर रही थीं। 
मजदूर आन्दोलन इस समय बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा है। पिछले एक साल ने वर्ग युध्द में लगे   हमारे कॉमरेड पाशा, कॉमरेड शिव राम,  कॉमरेड नगेन्द्र और कॉमरेड शर्मिष्ठा को हमसे छीन लिया। 
कॉमरेड शर्मिष्ठा महिला मुक्ति के मोर्चे पर सक्रिय थीं। उन्होंने भांगर आन्दोलन को नेतृत्व देने का काम किया। 
नारी मुक्ति के मोर्चे पर काम करने वाले जुझारू व समर्पित साथी का हमारे बीच से चले जाना। मजदूर आन्दोलन व महिला मुक्ति आन्दोलन के लिए बड़ी क्षति है। 
ऐसे साथी को सच्ची श्रद्धांजलि उनके संघर्षों को आगे बढ़ा कर ही दी जा सकती है। 
प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र उनके सपनों के समाज को बनाने के लिए संघर्षों को तेज करने उनको आगे बढाने का संकल्प लेता है। 
इंकलाब जिंदाबाद! 
कॉमरेड शर्मिष्ठा को लाल सलाम✊✊
प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र

June 16, 2021

कामरेड नगेन्द्र का शानदार इंकलाबी जीवन : एक भावभीनी श्रृद्धांजलि

 

10 जून की रात 8 बजे कामरेड नगेन्द्र हमें छोड़कर चले गये। मोबाइल के जरिये यह खबर करीब और दूर के परिचितों के बीच एक-एक कर फैलती चली गयी। उन्हें जानने वाला हर इंसान इस खबर से स्तब्ध रह गया। स्तब्ध होना स्वाभाविक भी था। वे करीबी लोग भी दिमागी तौर पर इस खबर के लिए तैयार नहीं थे जिन्हें पता था कि वे दो वर्ष से अधिक समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं और बीते कुछ वक्त से कैंसर फैलने लगा था और कुछ दिन पहले ही डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। वे किसी चमत्कार की उम्मीद में भले न हों पर उन्हें भी उनके इतनी जल्दी जाने की उम्मीद न थी। शायद कामरेड नगेन्द्र से अन्तिम मुलाकातों में भी दर्द के बीच उनके चेहरे पर फैली निश्छल मुस्कराहट ऐसा कोई भान होने से रोक देती थी कि साथी इतनी जल्दी हमें छोड़कर चले जायेंगे। उनके निधन की खबर जैसे-जैसे फैलती गयी, उनके संगठन इंकलाबी मजदूर केन्द्र के साथियों के, अन्य संगठनों के साथियों के और उनसे परिचित, उनके संपर्क में आये ढेरों लोगों के श्रृद्धांजलि संदेश उनके निकट के साथियों के फोनों पर आते चले गये। ये संदेश बताते हैं कि कामरेड नगेन्द्र को चाहने वालों, उन्हें प्यार व सम्मान देने वालों की संख्या बहुत है। ये संदेश बताते हैं कि कामरेड नगेन्द्र ने अपना 28 वर्ष लम्बा शानदार इंकलाबी जीवन कुछ ऐसे जिया जिस पर गर्व किया जा सके, जिससे सीखा जा सके, उनकी ढेरों खूबियों को अपनाने का संकल्प लिया जा सके। 11 जून की सुबह कामरेड नगेन्द्र के पार्थिव शरीर को लाल झण्डे में लपेटकर शाहबाद डेरी लाया गया। यहां इंकलाबी मजदूर केन्द्र के केन्द्रीय कार्यालय पर उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनार्थ रखा गया। विभिन्न संगठनों, मित्रों, परिजनों ने लाल सलाम के साथ कामरेड को अंतिम विदाई दी। इसके पश्चात दिल्ली के निगम बोध श्मशान घाट के गैस शवदाह गृह में उनके पार्थिव शरीर को सुपुर्दे खाक कर दिया गया। कामरेड नगेन्द्र का जन्म 15 जुलाई 1975 को उत्तराखण्ड के भलट गांव, गनाई रानीखेत जिला अलमोड़ा में हुआ था। उनका शुरूआती बचपन अपने गांव में ही बीता। शुरूआती कुछेक वर्ष की शिक्षा गांव में होने के पश्चात ये काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) आ गये। यहां उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय काशीपुर में प्रवेश लिया। 1989 में यहीं से उन्होंने हाईस्कूल व 1991 में इण्टरमीडिएट किया। इसके पश्चात 1992 में इन्होंने काशीपुर के पॉलिटेक्निक कॉलेज में कैमिकल इंजीनियरिंग में 4 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश लिया और 1996 में पालीटेक्निक डिप्लोमा पास किया। इसी दौरान उन्होंने रामनगर के डिग्री कालेज में प्राइवेट छात्र के रूप में 1995 में बी ए भी पूरा किया। केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ने के दौरान ही वे सामान्य ज्ञान, नाटक, भाषण, एकांकी, अंताक्षरी आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लेते व पुरस्कार पाते रहे। विविध क्षेत्रों में उनकी यह रुचि उनके आगे के क्रांतिकारी जीवन के दौरान भी बनी रही। पालिटेक्निक कॉलेज के शुरूआती वर्षों में ही 1993 में वे क्रांतिकारी राजनीति से जुड़ गये। 1993 में ‘विकल्प’ मंच से जुड़ने के कुछ समय बाद ही कामरेड नगेन्द्र परिवर्तनकामी छात्र संगठन की स्थापना के प्रयासों में सक्रिय हो गये। 1996 में परिवर्तनकामी छात्र संगठन के स्थापना सम्मेलन से लेकर 2003 के संगठन के चौथे सम्मेलन तक वे संगठन की विभिन्न जिम्मेदारियों को उठाते रहे। इस दौरान वे लम्बे वक्त तक संगठन की केन्द्रीय कार्यकारिणी, सर्वोच्च परिषद के सदस्य रहने के साथ केन्द्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। इसी दौरान वे परचम पत्रिका के सम्पादक भी रहे। प.छा.स. के बैनर तले सक्रिय रहते हुए ही इन्होंने अपना पूरा वक्त इंकलाब के कामों में लगाने का निर्णय लिया। इन्होंने कई छात्र संघर्षों में हिस्सा लिया। इस समय वे नैनीताल में फड़-खोखे वालों के संघर्ष में भी सक्रिय रहे। कुमाऊं वि.वि. में चले फीस वृद्धि के खिलाफ संघर्ष में इन्होंने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया। 2003 के बाद से ही कामरेड नगेन्द्र मजदूर वर्ग को संगठित करने के प्रयासों में जुट गये। 2005 में ईस्टर (खटीमा) फैक्टरी के मजदूरों के लम्बे जुझारू संघर्ष में साथी ने नेतृत्वकारी भूमिका निभायी। 2006 में इंकलाबी मजदूर केन्द्र की स्थापना के वक्त से लेकर अपने जीवन के अंतिम वक्त तक ये मजदूर वर्ग को संगठित करने में जुटे रहे। इंकलाबी मजदूर केन्द्र में ये केन्द्रीय कमेटी व केन्द्रीय परिषद की जिम्मेदारियों के अलावा उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी निभाते रहे। इस दौरान ये खटीमा, फरीदाबाद और दिल्ली आदि जगहों पर विभिन्न मजदूर संघर्षों में सक्रिय रहे। 2016 से अपने जीवन के अंतिम समय तक ये नागरिक पाक्षिक समाचार पत्र के सम्पादक भी रहे। संघर्षों के दौरान वे जेल भी गये। दिल्ली में विभिन्न मसलों पर होने वाले साझा प्रदर्शनों, गोष्ठियों, सेमिनारों, बैठकों आदि में कामरेड नगेन्द्र लगातार इंकलाबी मजदूर केन्द्र के प्रतिनिधि व वक्ता रहे। अपने 28 वर्ष लम्बे इंकलाबी जीवन में इन्होंने ढेरों पर्चे-पुस्तिकायें-लेख लिखे। राजनैतिक मुद्दों पर अवस्थिति लेने में अपनी मजबूत विचारधारात्मक पकड़ व देश दुनिया के घटनाक्रमों से परिचित होने के चलते कामरेड नगेन्द्र ने हमेशा ही नेतृत्वकारी भूमिका निभायी। एक बेहतरीन वक्ता के बतौर उन्हें संगठन की गोष्ठियों-शिविरों-सेमिनारों में हमेशा जाना गया। भाषण देते वक्त उनका विषय का ज्ञान, शब्दों का चयन, भाषा का प्रवाह और चेहरे की भाव भंगिमा अक्सर ही श्रोताओं को उद्वेलित कर देती थी। आम तौर पर भी वे अपने विविधता भरे ज्ञान के चलते अक्सर ही अपने इर्द-गिर्द एक घेरा जुटा लेते थे। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से लेकर खेल, कला, साहित्य, संस्कृति, नाटक आदि विविध विषयों पर बहस करते हुए पाया जा सकता था। सहज, मित्रवत मिलनसार व्यक्तित्व के चलते उनसे पहली बार मिलने वाले साथी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। पढ़ने के वे शौकीन थे। उनके जानने वाले उनके झोले में तीन-चार विविध विषयों की पुस्तकों से कम कभी नहीं पाते थे। राजनैतिक-सैद्धांतिक विषयों से लेकर कहानी-उपन्यासों तक विभिन्न पुस्तकों को वह निरंतर पढ़ते रहते थे। वर्तमान समय में देश-दुनिया के क्रांतिकारी संघर्ष से लेकर भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में वे यथासंभव परिचित रहते थे। क्रांतिकारी आंदोलन में हो रहे परिवर्तनों पर बेबाकी से अपनी राय रखते थे। राजनीति, खेल, संगीत, संस्कृति सबके बारे में वर्तमान स्थिति से वे हमेशा परिचित रहते थे। इतने व्यापक क्षेत्रों में जानकारी के चलते ही उनके साथ वक्त बिताने वाले आम मजदूर से लेकर संगठन के कार्यकर्ता-नेता तक उनसे कुछ न कुछ सीखते रहते थे। मजदूर वर्ग के ध्येय क्रांति के मिशन पर उनका विश्वास अटूट था। संगठन में आने के पश्चात उन्होंने ढेरों लोगों को इंकलाब से पीछे हटते, पलायन करते देखा। पर इस सबका असर कभी भी उनके जीवन पर नजर नहीं आया। वे एकबारगी भी कमजोर पड़ते नहीं पाये गये। अपने संगठन और इंकलाब में उनका अटूट विश्वास जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा। पर इसका अर्थ यह नहीं था कि वे अपने संगठन के प्रति अंध विश्वास रखते थे। बल्कि बात उलटी है। वे अपने संगठन की नीतियों की, संगठन के साथियों की हर उस वक्त आलोचना करते थे जब उन्हें गलत लगता था। पर उनकी आलोचना का लक्ष्य अपने संगठन पर विश्वास करते हुए अपनी समझ से उसे दुरुस्त करने का होता था। उनका सरल सौम्य स्वभाव, निश्छल हंसी हर किसी को आकर्षित करती थी। वे अपनी कमियों-गलतियों को कभी छिपाने की कोशिश नहीं करते थे। बहुधा तो वे खुद की गलतियों के किस्से खुद ही सुनाते पाये जाते थे। एक क्रांतिकारी को जैसा जीवन जीना चाहिए उन्होंने न केवल वैसा ही जीवन जिया बल्कि बीमारी और मौत का भी एक क्रांतिकारी की तरह सामना किया। अक्सर ढेरों लोग यह जानने के बाद कि वे कैंसर की ऐसी असाध्य बीमारी से ग्रसित हैं जिसका इलाज संभव नहीं है, कमजोर पड़ जाते हैं, आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं। पर कामरेड नगेन्द्र ने बीमारी के आतंक को कभी अपने मस्तिष्क पर हावी नहीं होने दिया। वे बीमारी से बहादुरी से लड़ते रहे, इलाज कराते रहे और इंकलाब के कामों में जुटे रहे। वक्त-वक्त पर कैंसर के चलते शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द बढ़ता रहा, कुछ समय वे दर्द सहते, पड़े रहते पर दर्द से जरा भी राहत मिलते ही अपने कामों में सक्रिय हो जाते। बीते वर्ष जब कोरोना महामारी के नाम पर लॉकडाउन लगा तो उन्होंने कई विषयों पर आनलाइन वक्तव्य कैंसर से जूझते व लड़ते हुए ही दिये। पिछले कुछ माह से उनकी पीड़ा काफी बढ़ गयी थी पर अपने से मिलने वालों के सामने अक्सर वे इस दर्द को छुपाते हुए हंसते हुए बात करते पाये जाते थे। मृत्यु से कुछ दिन पूर्व तक अपने लिए वे किताबें जुटा रहे थे जिन्हें उन्होंने पढ़ने की सोच रखी थी। उनकी इस लगन को देखकर बरबस ही भगत सिंह याद आते हैं जो फांसी के फंदे पर चढ़ने से पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। कहना गलत नहीं होगा कि कामरेड नगेन्द्र ने बीमारी का सामना भी मजदूर वर्ग के बहादुर सिपाही की तरह किया। उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक को मजदूर वर्ग के मिशन में लगाने की कोशिश की। एक इंसान के बतौर वे, बच्चों के बीच बच्चे सरीखा बनने वाले, अपने साथियों का यथा संभव ख्याल करने वाले थे। उनके सीधे सरल स्वभाव के चलते कई दफा दूसरे लोग उनका नाजायज फायदा तक उठा लेते थे। क्रांतिकारी बदलाव में लगे साथियों के लिए कामरेड नगेन्द्र के जीवन में बहुत कुछ ऐसा था जिससे सीखा जाना चाहिए। कम्युनिस्ट जीवन मूल्य ऐसा ही एक गुण है। मजदूर वर्ग की दुःख, तकलीफ से द्रवित हो उठना, भावुक हो जाना, उनकी मदद को तत्पर हो जाते उन्हें अक्सर देखा जाता था। किसी बच्चे, किसी घरेलू महिला से लेकर सामान्य मजदूर-छात्र, भिन्न मत के लोगों तक को साथी नगेन्द्र पूरे ध्यान से सुनते थे, उनको पूरी इज्जत देते थे और फिर धैर्यपूर्वक अपनी बातों को उनके सामने सरलता से प्रस्तुत करते थे। लोग उनसे सहमत हों या नहीं, प्रभावित हुए बगैर नहीं रहते थे। इसीलिए लोग उन्हे पसंद करने लगते थे। वे अनुशासनशील प्राणी थे। वे किसी भी काम में जुटे हों पर अपने से बात करने आये साथियों को कभी निराश नहीं करते थे। इस चक्कर में निश्चित समय में काम पूरा करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करते थे। पर ज्यादातर वे दिये समय में काम पूरा कर डालते थे। कैसे सहजता-सरलता से कठिन विषयों को भी जनता के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है। इसकी वे मिशाल थे। इन सबसे बढ़कर वे एक योद्धा थे, मजदूर वर्ग के इंकलाबी मिशन के सिपाही थे जिन्होंने बीमारी को भी इंकलाबी सिपाही की तरह जवाब दिया। कामरेड नगेन्द्र आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके जाने से पैदा हुए निर्वात को भरना काफी कठिन है। उनकी कमी इंकलाबी मजदूर केन्द्र ही नहीं नागरिक समाचार पत्र तक में लम्बे वक्त तक महसूस की जायेगी। उनकी कमी को हमें पूरा करना ही होगा। उनके जीवन से सीखते हुए, उनके गुणों को अपनाते हुए संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। यही हमारी उनको सच्ची श्रृद्धांजलि होगी। कामरेड नगेन्द्र तु
म्हें अलविदा कहने का मन नहीं करता, फिर भी अलविदा साथी। 

साभारः नागरिक डॉट कॉम, अधिकारों को समर्पित

June 11, 2021

कॉमरेड नगेंद्र को लाल सलाम

इंकलाबी मज़दूर केंद्र के उपाध्यक्ष तथा जुझारू कार्यकर्ता कामरेड नगेंद्र ने 47 वर्ष की अल्पायु में ही हमारा साथ छोड़ दिया। 10 जून को रात करीब 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। साथी पिछले 2 साल से अधिक समय से कैंसर से जूझ रहे थे। अपने अंतिम समय तक वह अपने ध्येय के लिये समर्पित रहे। 

अपने छात्र जीवन से ही कामरेड नगेंद्र क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गये और उसके बाद से ही उनका पूरा जीवन क्रांति के उद्देश्यों के प्रति समर्पित रहा।

साथी नगेन्द्र लम्बे समय तक परिवर्तनकामी छात्र संगठन से जुड़े रहे। साथी पछास के उपाध्यक्ष भी रहे। साथी ने लंबे समय तक 'परचम' पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी उठाई। मौजूदा समय में साथी 'नागरिक' समाचार पत्र के संपादन की जिम्मेदारी उठा रहे थे।

 प्रगतिशील महिला एकता केंद्र उन्हें क्रांतिकारी लाल सलाम पेश करता है और क्रांतिकारी आंदोलन को तेज करने का संकल्प लेता है। 
     
 इंकलाब जिंदाबाद !
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र
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