भाजपा के शासनकाल में गौवंश तस्करी व गौ मांस के नाम पर हो रही भीड़ हत्या, मारपीट व गिरफ्तारियों की घटना आम परिघटना हो गयी है। मीडिया रिपोर्टे व अखबार पीड़ित व्यक्ति को बिना किसी जांच पड़ताल व ट्रायल के पहले ही दोषी मनाकर उस पर किये गये अत्याचार को उचित कार्रवाही बता देती है जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे मामलों के जो मुकदमे दर्ज हुए हैं उनमे दस फीसदी से भी कम लोगों को सजाएं हुई हैं।
इसी तरह की एक घटना विगत 25 अगस्त को उत्तराखंड के रुड़की के माधोपुर गांव मे घटित हुई जिसमें वशीम नामक 22 वर्षीय युवक की मौत हो गई। सभी अखबारों व मीडिया रिपोर्टों की खबर बनी की वशीम गौमांस लेकर जा रहा था तथा सामने से आ रही पुलिस को देख कर भागने लगा व भागते समय तालाब में डूबने से उसकी मौत हो गई।
उत्तराखंड सरकार के मुखिया व उसके नेतागणों ने यह कहते हुए पुलिस की पीठ थपथपाई कि पुलिस की उक्त कार्रवाई सही थी तथा पुलिस इसमें कही भी दोषी नहीं है। कोई व्यक्ति पुलिस की घेराबंदी में या कस्टडी में तलाब में डूबकर कैसे मर सकता है? इस सवाल पर अखबार, मीडिया व सरकार पूर्णतः मौन है।
उपरोक्त घटना के बाद क्षेत्र वासी एंव अल्पसंख्यक समुदाय दहसत व रोष में है। बताते चले की घटना स्थल गंगनहर कोतवाली, रुड़की से मात्र 5 से 6 किमी की दूरी पर है।
नागरिक अखबार, इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की टीम उक्त जगह पर गयी तथा लोगों से बातचीत के आधार पर जो तथ्य सामने आए उससे कोई भी विवेक शील व्यक्ति सहज ही अंदाजा लगा सकता है कि असल में जो अखबारों व पुलिस द्वारा बताया जा रहा है वहीं सच है या मामला कुछ और है। इस बात का निर्णय पाठक खुद करे। क्षेत्र वासियों व पीड़ित परिवार व पुलिस द्वारा मौखिक तौर दिये गये बयानों के आधार पर अपनी रिपोर्ट पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
सर्वप्रथम हम आपको पुलिस द्वारा लिखे गए मुकदमे व बयान के बारे में बताते है 25 अगस्त समय लगभग रात 1 बजे पुलिसकर्मी (गौ संरक्षण दस्ता) सादी वर्दी मे माधोपुर गांव के पास तालाब के किनारे बनी गांव की सड़क पर गस्त पर है दो स्कूटर सवार विपरीत दिशा से आते हैं तथा पुलिस को देखकर स्कूटर छोड़कर भागने लगते हैं। एक आरोपी भागते समय तालाब में घुस जाता है तथा दूसरा फरार हो जाता है। स्कूटर के पास एक नीले रंग का कट्टा (बैग) पड़ा है। मुॅह बंधा है जिसमें संभवत गौमांस है। संभवतः हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पुलिस कह रही है। पुलिस ने 1 बजे रात से सुबह 7:30 बजे तक जब्ती की कारवाई तक नहीं की। सुबह 7:30 बजे तक पुलिस तालाब की घेराबंदी करती है तथा 7:30 बजे तालाब में मृतक वशीम की लाश तैरती हुई पायी जाती है। 7:30 बजे सुबह लगभग 150 लोगों की भीड़ आती है वह स्कूटर एवं गौ मांस का कट्टा(बैग) ले कर भाग जाती है। लाश को निकालने व भीड़ द्वारा स्कूटर व गौ मांस ले जाने की पुलिस के पास ना कोई फोटो है और ना ही वीडियो व गवाह? पुलिस के पास स्कूटर का फोटो है, उसके पास रखे तथाकथित गौमांस की फोटो है व स्कूटर ले जाते हुए एक व्यक्ति की फोटो है। दूसरे आरोपी अलाउद्दीन है जिसकी ओर से पुलिस के खिलाफ मुकदमा लिखवाया गया है उसके वयान लेते व चाय नाश्ता करने की फोटो है। जो पुलिस ने जांच दल को दिखायें। माधोपुर गांव जिसके तालाब में डूब कर वशीम की मौत होनी बताई जा रही है गांव दलित व मुस्लिम बहुलय गांव है। वहाँ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बचाओ बचाओ की आवाज सुन कर वे लोग घर से बाहर निकले तथा देखा कि एक व्यक्ति तालाब में तैर रहा है। तथा कुछ पुलिसकर्मी हथियारों से लैस तालाब के किनारे सड़क पर खडे़ है। जब भी यूवक किनारे पर आता है उसको डंडो से मार कर तालाब के अंदर धकेल देते हैं। गांव वालो के पूछने व उसको बचाने की बात करने पर पुलिस कहती हैं कि वह बदमाश है। अगर उसके बचाने के लिए कोई भी तालाब के अंदर जायेगा तो हम उसे गोली मार देगें। डूब रहे युवक वशीम की चीख पुकार सुन कर गांव के दो-तीन युवक तालाब के अंदर घुस जाते हैं। जिनको बंदूक दिखा कर पुलिसकर्मी बाहर निकाल देते हैं तथा उक्त कार्यवाही तब तक दोहरायी जाती है जब तक युवक दम नहीं तोड़ देता। मृतक वशीम सोहलपुर गाड़ा का रहने वाला है तथा उसके घर की दूरी घटना स्थल से लगभग 4 किमी है। वशीम माधोपुर कैसे पहुँचा इसके बारे मे जानने के लिए जांच दल वशीम के गांव गया तथा परिवार के लोगों से बातचीत की। जांच दल द्वारा अपना परिचय देने पर वशीम के पिता फूट-फूटकर रोने लगे काफी सान्त्वना देने के बाद उन्होंने बताया कि उनके पांच बेटे हैं जिसमें वशीम सबसे छोटा जिसकी अभी शादी नही हुई। वशीम गांव के बाहर सड़क पर एक जिम सेंटर चलाता है। घटना वाले दिन रात लगभग 11बजे सेंटर बंद करने के बाद वशीम माधोपुर गांव में अपनी स्प्लेंडर मोटर साइकिल पर रिश्तेदारी में शादी समारोह में शामिल होने यह कह कर गया था कि वह घर नहीं आयेगा। बल्कि उसी गांव में अपनी बहन जिसकी शादी माधोपुर में हुई है उसके घर पर ही रुक जायेगा। उन्हें मृतक के मरने की सूचना सुबह माधोपुर गांव के लोगों ने मृतक की पहचान होने के बाद फोन पर दी है। उसके बाद वो लोग माधोपुर पहुचें। जबकि पुलिस ने 150 अज्ञात व वशीम के पूरे परिवार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया हुआ है और पुलिस बार बार गांव में आकर उनको डरा धमका रही है कि पुलिस के विरुद्ध बयान बाजी ना करे नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।
उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार है जिसके मुखिया से लेकर हरिद्वार के पूर्व विधायक एक स्वर मे वशीम को अपराधी बता चुके हैं तथा उक्त कृत्य को पुलिस द्वारा किया गया सराहनीय काम बता चुके हैं पुलिस द्वारा किये गये उक्त काम को किस तरह सता का संरक्षण प्राप्त है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मृतक का पोस्टमार्टम दो सरकारी डाक्टर के पैनल ने किया जिसने लिखा है कि वशीम की मौत पानी मे डूबने से हुई है तथा शरीर पर कोई गम्भीर चोट नहीं है जबकि जांच दल को गांव के लोगों द्वारा जो फोटो उपलब्ध कराये गये हैं उनमें साफ साफ देखा जा सकता कि मृतक का पूरा चेहरा खून से लथपथ है व गले पर भी तथा चेहरे व आंख के चोट के नीचें निशान है। मृतक के शरीर से कमीज भी गायब है।
उपरोक्त घटना से जो सवाल उभर कर आये हैं वो यह कि
1- शादी समारोह से मृतक तालाब तक कैसे पहुँचा?
2- मृतक के मुँह व शरीर पर चोटों के निशान कैसे बने जिनका खुलासा न पोस्टमार्टम रिपोर्ट व न पुलिस की एफआईआर में किया गया है?
3- लाश को तालाब से निकलवाने की वीडियोग्राफी क्यों नहीं कराई गयी?
4- पंचनामा घटना स्थल पर क्यों नहीं किया गया?
5- बरामद समान गौमांस व स्कूटर पुलिस द्वारा जब्त क्यों नहीं किये गये?
6-मृतक के शरीर से गायब कमीज कहा है?
7- डूब रहे व्यक्ति चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो बचाने के लिए गोताखोरों को क्यों नहीं बुलाया गया?
8-पुरे घटनाक्रम की पुलिस के पास कोई विडियो या फोटो क्यों नहीं है?
9- तथाकथित भीड़ द्वारा पुलिस को बंधक बनाने का कोई साक्ष्य क्यों नहीं है?
ऐसे बहुत सारे सवाल है जो पुलिस की उक्त कार्यवाही को पूरी तरह संदिग्ध बनाने के लिए काफी है। जवाब किसी के पास नहीं है लेकिन तथ्य चीख-चीख कह रहे है कि वशीम ने आत्महत्या नहीं की और न ही यह कोई दुर्घटना है बल्कि अगर पुलिस की फिल्मी कहानी पर विश्वास कर भी लिया जाय तो सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या किसी आरोपी को इसलिए तालाब मे मरने के लिए छोड दिया जाये कि वह अपराधी था? क्या हर नागरिक के जान व माल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है?
यह हक सरकार राज्य मशीनरी व मीडिया को किसने दिया कि मृतक चुंकि मुस्लिम था इसलिए वह अपराधी ही है?
यहां यह सवाल पैदा होगा ही कि अगर मान भी लिया जाए कि मृतक अपराधी था तथा उसकी मौत स्वतः ही तालाब मे डूबकर हुई तब ऐसे हालात पैदा कैसे हुए?
ऐसे हालात पैदा करने वालो कि विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही नही होनी चाहिए?
ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब जिनका जवाब शायद ही कभी मिल पाए।
मौजूदा दौर में जब फासिस्ट ताकतें सत्तारूढ हों तथा मुसलमानो पर लगातार हमलें हो रहे होंऔर हमलावरों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त हो,कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक में हिन्दु फासीवादी मानसिकता के लोग काबिज हों तब तक न जाने कितने "वशीम " ऐसे ही मारे जाते रहेंगे ।
इन फासीवादी ताकतों को जनता की व्यापक गोलबंदी ही फैसलाकुन शिकस्त दे सकती है।
"मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है
किससे फरियाद करें, किससे मुंसफी चाहें।